Navratra Vrat Katha Vidhi |
यह नवरात्र व्रत सर्व मनोकामनाओ की पूर्ति करने वाला हैं। यह नवरात्र व्रत कथा कुष्ठियों को कुष्ठ जैसे असाध्य रोग से पूर्ण रूप से मुक्ति दिलाने वाला हैं। यह व्रत पुत्र की कामना करने वालो को पुत्र, धन की लालसा करने वाले को धन, विद्या की कामना करने वाले को विद्या, सुख की इक्षा करने वाले को सुख प्रदान करने वाला व्रत हैं।
हे बृहस्पति जिसने सबसे पहले इस महाव्रत को किया हैं वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूँ तुम ध्यान लगा कर सुनो। इस प्रकार ब्रह्माजी का वचन सुन कर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण मनुष्य का कल्याण करने वाली इस नवरात्र व्रत कथा के इतिहास को कहे, मैं सावधान होकर सुन रहा हूँ। मैं आपके शरण में आया हूँ मुझपर कृपा करें।
ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पठित नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसको सर्वगुणसम्पन्न सुमति नाम की बहुत ही सुन्दर एक कन्या हुई। वो दिन प्रतिदिन बड़ी हो रही थी और उसकी सुन्दरता भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
पिता द्वारा कहे गए ऐसे वचन सुन कर सुमति को बहुत दुःख हुआ और सुमति ने कहा की पिताजी मैं तो आपके अधीन हूँ मेरे लिए आपकी आज्ञा का पालन करना ही मेरा धर्म हैं यदि आप मेरे विवाह कुष्ठ रोगी से कर देंगे और भाग्य में भी वही लिखा होगा तो मैं ख़ुशी-ख़ुशी उस कुष्ठ रोगी के साथ जीवन-यापन कर लूँगी ।
सुमति के निर्भयता भरे वचन सुनकर उसके पिता को और क्रोध आया और उन्होंने सुमति का विवाह एक कुष्ठ रोगी से कर दिया और बोला पुत्री अपने कर्मो का फल भुगतो और देखते हैं भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो?
उस गरीब बालिका का ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व जन्म पुण्य के प्रभाव से सुमति के आगे प्रकट हुई और बोली हे दिन ब्राह्मणी! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वो वर माँग सकती हो। भगवती देवी के ऐसे वचन सुन सुमति ने कहा- आप कौन हैं कृपया विस्तार से बातये ?
मैं तुम्हे तुम्हारे पूर्व जन्म में किए गए पुण्य कर्म की कहानी सुनाती हूँ। पूर्व जन्म में तुम निषाद(भील) की स्त्री थी, तुम बहुत ही पतिव्रता भी थी। एक दिन तुम्हारे पति निषाद ने चोरी की फिर उसके बाद सैनिको ने तुम दोनों को कारगर में बंद कर दिया और भोजन भी नहीं दिया।
ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पति! उस ब्राह्मणी की स्तुति सुन माँ भगवती उस पर प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी तुझे उदालय नामक अत्यंत बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान, जितेंद्रिये पुत्र शीघ्र ही उत्पन्न होंगे। ऐसा वर देने के बाद माँ भगवती ने ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी और जो कुछ इक्षा हो तो बोलो। नवरात्र के नौ दिन मै ही नौ रूपों को धारण करती हूँ और अपने भक्तों के दुःख को दूर करती हूँ।
माँ भगवती दुर्गा के नौ रूप के बारे में पढ़े।
महात्म्य बोले- और इस प्रकार सुमति के वचन सुन माँ दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें सम्पूर्ण पापो को नाश करने वाली नवरात्र व्रत की विधि के बारे में बताती हूँ जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिनों तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर न कर सके तो एक समय का भोजन करे।
बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती हैं, जायफल से अर्घ्य देने कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य सिद्ध होती हैं। आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति होती हैं, और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती हैं। इसप्रकार फूलो और फलो से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवे दिन यथा विधि हवन करें।
खांड, घी, गेहूँ, शहद, जौ, तिल, बिल्व, नारियल, दाख और कदम्ब आदि से करें। गेहूँ से हवन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं, खीर व चम्पा के पुष्पों से धन की, बेल के पत्तो से तेज और सुख की प्राप्ति होती हैं। आँवले से कीर्ति तथा केले से हवन करने पर पुत्र की प्राप्ति होती हैं। कमल से राजकीय सम्मान की तो दाख से सम्पदा प्राप्ति होती हैं।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि-विधान से व्रत समाप्त कर होम कर आचार्य विनम्रता से प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा देकर संतुष्ट करें। इस प्रकार बताई विधि द्वारा जो मनुष्य व्रत करता हैं उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें थोड़ा सा भी संशय नहीं हैं।
माँ भगवती दुर्गा के नौ रूप के बारे में पढ़े।
ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को नवरात्र व्रत कथा की विधि और फल बता कर देवी अंतर्ध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को करता हैं उसे इस लोक में तो सुख को प्राप्त कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता हैं। हे बृहस्पते! यह इस नवरात्र व्रत का माहात्म्य हैं जो मैंने तुम्हे सुनाया हैं।
जय माता दी।
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