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और इसी प्रयास में आज हम मनोरंजन के साथ-साथ हमें शिक्षित करने वाली Jadu Ki Kahani लेकर आप सभी पाठक महोदय के समक्ष उपस्थित हैं तो आनंद उठाइए New Jadu ki kahani Hindi Mai…..
Jadu ki kahani Hindi Mai |
प्राचीन समय की बात हैं महाभारत का युद्ध समाप्त हो चूका था पांडव अपने राज्य का भली-प्रकार से सञ्चालन शुरू कर दिए थे. हर तरफ एक बार पुनः धर्म की स्थापना स्थापित हो चुकी थी. राज्य के दूर पश्चिम दिशा में एक बहुत ही विशाल और घना वन था.
एक से बढ़कर एक मायावी और जादूगरनियों का कभी अड्डा हुआ करता था. जिसमे से अधिकतर दुष्ट जादूगरनियाँ और दुष्ट जादूगरों ने कौरव का साथ देने की वजह से युद्ध में मार दिए गए थे उसमे जो कुछ बच गए थे वो दूर गहरे जंगल में अपने अस्तित्व की रक्षा करने लगे.
जगह उन्ही जंगलो के बिच बसे दुर्गम पहाड़ियों के उसपार थी जहाँ महाभारत युद्ध से बच निकले राक्षस और दानव रहते थे. पांडवो के युद्ध कौशल और श्री कृष्ण का भय ही था की उन लोगो द्वारा होने वाली दुष्टता में बहुत कमी आई थी.
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लेकिन अब तो श्रीकृष्ण भी जा चुके थे और पांडवो ने भी हमेशा के लिए हिमालय में जाने का और वही शरीर त्यागने का निर्णय कर लिया था. और यही समय था की उन बुरे जादूगरों के टोले में ख़ुशी का माहौल था. उनको लगने लगा की अब उन्हें अपने उत्पात मचाने का समय मिल गया था.
उन जादूगरों के समूह में एक बहुत ही वृद्ध जादूगरनी थी जो सबकी प्रमुख थी उसकी उम्र लगभग 400 साल से ज्यादा थी लेकिन फिर भी वो अपने तंत्र के जादू से अभी भी एक दम नौजवान और खूबसूरत दिखती थी. वह अपना रूप बदलने में भी माहिर थी उसकी एक छोटी बहन भी थी वो भी बहुत सुन्दर थी लेकिन दोनों बहनो में मतभेद रहता था.
बड़ी बहन अपने जादू को लेकर अहंकार में रहती थी उसको लगता था की वो विश्व की सबसे शक्तिशाली और सुन्दर जादूगरनी हैं. और इसी घमंड में अंधे होकर वह अपने शक्तियों का उपयोग निर्दोष मनुष्यों जानवरों यहाँ तक की अपनी गुलामी नहीं स्वीकारने के कारण अपने बहन को भी जादू के दम पर मारने का प्रयास कर चुकी थी.
वही छोटी बहन भले ही बुरे जादूगरों के घर जन्म ली थी लेकिन बचपन से ही उसका हृदय कोमल और सबके प्रति प्रेम रखने वाला था. जादू तो उसे बचपन से ही आती थी लेकिन उसकी बड़ी बहन ने निर्दोष जानवरो और मनुष्यों की बली बुरी शक्तियों को देकर तथा उनकी पूजा कर उससे अधिक सिद्धि, शक्तियाँ और जादू हासिल कर चुकी थी.
और इसी कारण वो घमंडी हो गई थी और वो बार-बार और ज्यादा शक्तियाँ पाने के लिए निर्दोष प्राणी के खोज में रहती थी ताकि उसकी बलि चढ़ा कर वो और शक्तियाँ हासिल कर सके. और हमेशा-हमेशा के लिए जवान और अमर हो सके.
Jadu ki kahani |
अनेक अमावस्या बिता कई वर्ष बीते उस जादूगरनी का आतंक जारी रहा पांडवों को भी हिमालय जाकर शरीर त्यागे हुवे कई वर्ष बित चुके थे। उस जंगल के आस-पास के जितने भी गाँव थे हर तरफ उस जादूगरनी के दहशत का माहौल था. बगीचे खेल के मैदान यहाँ तक की उस जंगल के आस-पास के गुरुकुल भी बंद होने शुरू हो गए थे.
लोग अपने बच्चों को घर से बहार जाने देने से भी डरने लगे. उस जादूगरनी ने इतने वर्षो से अनेक लोगो को बच्चों को अपना शिकार बनाया था था उसने हमेशा मनुष्य रूप में अमर होने और सदा जवान रहने का वरदान प्राप्त कर लिया था.
इतनी शक्तियों के दम पर वह जादूगरनी अब और ज्यादा अहंकारी और घमंडी हो गई थी. महाभारत युद्ध में उसके कई परिचित और सगे-संबंधी मारे गए थे और उसकी बदले की आग में वह जल रही थी इतने वर्षो तक उसने अपनी शक्तियाँ बढ़ाने में लगाया अब उसने अपनी सेना बनानी प्रारम्भ कर दी.
उसने लोगो को अपने जादू से मोहित कर उनका दिमाग बदल कर उनकी स्मरण शक्ति गायब कर दी थी वह सभी सिर्फ उसकी जयजयकार करते और हथियार उठाकर युद्ध लड़ने को हमेशा तैयार हो जाते। उस जादूगरनी के प्रभाव से लोग अपना घरबार छोड़ उनको भूल जाता था और उसकी सेना में शामिल होने लगे थे और सभी नरभक्षी बनते जा रहे थे.
पहले तो लोगो को सिर्फ एक जादूगरनी का डर था अब तो उसकी सेना भी बन चुकी थी जो अपनी भूख मिटाने के लिए मनुष्यों को पकड़ना शुरू कर दिया था. सभी नगरों में त्राहिमाम-त्राहिमाम मच गया था. लोग अब अपने नगरों को छोड़कर अपने घर को छोड़कर जाना प्रारम्भ कर चुके थे.
उसी जगल में नदी किनारे एक गुरुकुल था. उस गुरुकुल के प्रमुख एक अत्यंत ज्ञानी और महान सिद्ध थे. वह भी इस जादूगरनी के समूल नाश का बहुत बार प्रयास कर चुके थे और एक बार और प्रयास में लग चुके थे. उन्होंने भी अपनी सिद्धियाँ बढ़ने के लिए और उसका नाश करने के लिए यज्ञ करना प्रारम्भ कर दिया।
उस जादूगरनी की छोटी बहन अपने बड़े बहन के गतिविधियों को देखकर बहुत दुखी रहती थी वह जानती थी की अधर्म अधिक समय तक नहीं चल सकता उसे एक दिन समाप्त होना ही हैं. उसने उसे अपने बातो से अपने जादू से बहुत समझाने और रोकने का प्रयास किया लेकिन उसके किसी भी कोशिश का उसकी बहन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था.
तभी उस छोटी जादूगरनी को पता चला की नदी किनारे जो गुरुकुल हैं उस गुरुकुल में एक सिद्ध महात्मा उसके बड़ी बहन के आतंक को ख़त्म करने के लिए यज्ञ कर रहे हैं, तब वह छोटी जादूगरनी छुपते-छुपते उस गुरुकुल के पास गई.
अपने धर्म की शक्ति से उस महात्मा को आभास हो गया था की कोई राक्षसी कुल का प्राणी उस आश्रम के आस-पास विचरण कर रहा हैं लेकिन उसका हृदय कोमल हैं वह सहयोग करने आई हैं. महात्मा ने कड़ी आवाज में कहा तुम जो भी सामने प्रकट हो मैं जनता हूँ तुम किस हेतु यहाँ विचरण कर रहे हो.
उस छोटी जादूगरनी को महत्मा पर विश्वास था उसने अपने आप को उस महात्मा के समक्ष प्रस्तुत किया और उन्हें प्रणाम किया और कहा-‘महाराज! आप जिस जादूगरनी के नाश के लिए यज्ञ कर रहे हैं मैं उसकी छोटी बहन हूँ लेकिन मैं उसके जैसा अधर्म नहीं करती।
मैं भी अपनी बहन के अत्याचार देखकर बहुत दुखी हूँ और आपका उसका राज बताने आई हूँ ताकि आपको उसके नाश करने में मदद मिले, मेरी बहन ने बली देकर मनुष्यरूप में सदा जवान और अमर रहने की शक्ति आ गई हैं वह कभी भी मनुष्यरूप में नहीं मर सकती उसे अमरता का वरदान प्राप्त हो चूका हैं।”
महात्मा ने शांत भाव से गंभीर स्वर में कहा- मैं अपने योगबल से सभी राज पहले से जानता था. और उसकी समाधान में भी लग चूका हूँ. kahani Hindi Mai.
उन्होंने पुरे विस्तार से अपनी योजना का वर्णन किया और कहा – “राजधानी में पाण्डवों के पौत्र एक अपने पिता को मृत्यु का बदला लेने के लिए एक यज्ञ कर रहे हैं जिस वजह से सभी सर्पों का अंत तय हैं यदि तुम्हारी बड़ी बहन को मनुष्य से सर्प में बदल दिया जाए तो उसका भी अंत संभव हैं क्युकी मनुष्यरूप में उसे कोई नहीं मार सकता।”
महात्मा की बात सुनकर वह छोटी जादूगरनी ने आस्वस्त भाव से कहा -‘ महात्मा जी मुझे आप पर पूरा विस्वास हैं. उस यज्ञ को बड़े-बड़े शक्तिशाली ऋषि-मुनि संचालित कर रहे हैं उसका परिणाम कभी विफल नहीं हो सकता परन्तु मेरी बड़ी बहन को सर्प रूप में बदलने के लिए आपके पास क्या उपाय हैं?’
“पिछले एकादशी के शुभ मुहूर्त मैं उस जादूगरनी को सर्प रूप में बदलने के लिए यज्ञ प्रारम्भ कर दिया हैं इस यज्ञ से प्राप्त जल को उस जादूगरनी पर एकादशी के दिन ही छिड़क दिया जाए तो वह सर्प में परिवर्तित हो जाएगी और यज्ञ के प्रभाव से जल के भष्म हो जाएगी।” महात्मा जी ने कहा।
“एकादशी का वह शुभ दिन कल ही हैं और इसी प्रयोजन के सफलता हेतु तुमको मैंने ही बिलाया हैं” महात्मा ने छोटी जादूगरनी से कहा.
उसने हाथ जोड़ कर महात्मा जी के आदेश को स्वीकार किया और महात्मा से आशीर्वाद लेकर और वह पवित्र जल लेकर वापस जंगलो के बिच दुर्गम पहाड़ियों में बसे अपने अड्डे पर लौट आई. उसने उस जल को एक सुरक्षित जगह छुपा के रख दिया और रात बितने का इन्तजार करने लगी.
सूर्योदय होते ही उसने अपनी बड़ी बहन के पास जाने का निर्णय लिया वह डरती-डरती जल को अपने कपड़े में छुपाये अपनी बहन के पास पहुँची और उसको देखते ही महात्मा द्वारा दिया हुआ जल उसने उस बुरी जादूगरनी के ऊपर छिड़क दिया।”
जादूगरनी के शरीर पर उस पवित्र जल के पड़ते ही उसे जलन होने लगी और वह धीरे-धीरे सर्प रूप में परिवर्तित होने लगी जब वह पूर्ण सर्प बन गई तो जन्मेजय द्वारा संचालित यज्ञ के प्रभाव से उस जादूगरनी का नाश हमेशा-हमेशा के लिए हो गया.
उस जादूगरनी के मरते ही उसका प्रभाव कम होने लगा तथा जितने भी लोगो पर जादू किया था और अपनी सेना बनाई थी वो सभी लोगो पर से उसके जादू का प्रभाव ख़त्म हो गया और सभी आज़ाद हो गए और अपने-अपने घर वापस आ गए.
जादूगरनी के डर से जितने भी लोगो ने घर नगर छोड़ा था वो सब वापस आने लगे तथा सारे समाज में पुनः खुशहाली लौट आई बगीचे के झूले अब फिर से सजने और झूलने लगे थे खेल के मैदान में फिर से रौनक लौट आई थी. रोजगार और व्यापार में उन्नति होने लगी.
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Rohit
अपने महाभारत काल से संबंधित बहुत अछि कहानी तैयार की है ऐसी ही रोचक कहानी रामायण से संबंधित भी बनाये।
rizwyl
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