ज्ञान(वेद,उपवेद,उपनिषद,पुराण,इतिहास आदि) हमेशा समय के बंधन से मुक्त रहता है ज्ञान अनादि अनंत और महाकाल होता है इसीलिए शायद महाकाल को महादेव या विश्वगुरु कहते है। विश्वगुरु अर्थात सभी कलाओं या ज्ञान का जो श्रोत है वही महाकाल(the great time) वही महादेव हैं, वही महागुरु हैं। ब्रह्मा जी जब भी सृस्टि का निर्माण करते है अपने मानस पुत्रो को वेद का ही ज्ञान देते है जो सभी कल्पो या युगो में एक जैसा है वेद सत्य है जो कभी नही बदलता।
वेद सहस्त्रो या कोटि साल पुराना नही, ज्ञान समय से पहले भी था समय के बाद भी रहेगा इस सृष्टि की बात की जाए तो लगभग 2 अरब साल पहले ही सारा ज्ञान सारा टेक्नोलॉजी a-z जिसको अभी मॉडर्न वेद का उदगम मोदी जी 5 हजार साल पहले कहते है तो कनाडा जिसने इसी वर्ष संस्कृत भाषा को अपने सिलेबस में डाला वो भी गर्व से कहता है कि मात्र 3500 सौ साल पुराना विलुप्त हो रहे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को हम बचाने का प्रयास कर रहे है।
जबकि संस्कृत जो देव भाषा है देव जो समय से परे है क्या उनके भाषा का समय कुछ कोटि या हजार साल का हो सकता है संस्कृत भाषा मे ही सत्य का बोध हो सकता है किसी भी मनुष्य की क्षमता नही की वो संस्कृत जैसे देव भाषा का अविष्कार या खोज कर सके। संस्कृत भाषा को देव भाषा इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य की उत्पत्ति पहले और विनास के बाद भी देव रहते है अतः उनका भाषा भी रहता है
Gurukul |
संस्कृत मनुष्य के समय के पैमाने का गुलाम नही हैं वो तो ईश्वर की परम अनुकंपा हुई कि हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों को संस्कृत या वेद का ज्ञान प्राप्त हुआ उनके आशीर्वाद से ही आम जन तक यह देव भाषा पहुँच सकी लेकिन उसी ईश्वर के विधान की वजह से आज कलयुग में संस्कृत जैसे देव भाषा को उपेक्षित ही नही कथित बुद्धजीवीयों द्वारा मात्र कुछ हजार साल का बताए जाते है।
मुझे आज तक कभी समझ नही आया कि मंदिर मंदिर घूमने वाले मोदी जी त्रिपुंड लगाने वाले मोदी जी रूद्राक्ष धारी मोदी जी गुफाओं में तपस्या करने वाले मोदी जी कभी सनातन कैलेंडर या जब हम विश्व गुरु या सोने का हाथी थे उस अनुसार क्यों नही विचार करते है हम भी विकास चाहते है लेकिन सस्टेनेबल विकास चाहते है। और सनातन का रास्ता ही सबसे उचित और सिद्ध रास्ता हैं।
दुनिया के सबसे बड़े यूनिवर्सिटीयों के कई बुद्धजीवी बोल चुके हैं की आयुर्वेदा के दम पर भारत दुनिया का चिकित्सा राजधानी बन सकता है कई ने कहा कि वेद उपनिषद के दम पर भारत दुनिया का शैक्षणिक राजधानी बन सकता हैं। वर्तमान अमेरीकी अर्थव्यवस्था को चुनौती दे कर भारत चाणक्य के दम पर विश्वगुरु बन सकता है यदि पतञ्जलि के पवित्रता के सूत्र को ध्यान में रखा जाए जो भारत पूरे दुनिया का पर्यटन राजधानी बन सकता हैं।
भारतीय संस्कृति जो मुख्यतः हिन्दू संस्कृति है यदि भौतिक विकास की जगह भारतीय जो कभी किसी कारणों से विश्व गुरु और सोने का हाथी थे उन्ही कारणों को फिर आजमाने की जरूरत है वो ओल्ड नही वो नियम गोल्ड हैं शत प्रतिशत कारगर है क्योंकि उन नियमो को शुद्ध तपस्वियों ने ईश्वर के आदेशानुसार बनाया है इन्ही ऋषि मुनियों के ज्ञान का कॉपी पेस्ट करके न्यूटन जैसे कई कथित महान मॉडर्न सही में कहे तो वेस्टर्न वैज्ञानिक हुवे जिन्होंने गोलबल वार्मिंग या भौतिकवाद को बढ़ावा दिया
ये पेड़ पौधे, ये भूमि, यह गगन, यह वायु, यह आग, यह नीर या जल, यही तो हमारे आधार है, यही तो हमारे भगवान् हैं इनके बिना कोई उद्देश्य नहीं, कोई देश नहीं, कोई धर्म अधर्म कोई संप्रदाय नहीं, यह प्रकृति ही हैं की हम सब हैं, प्रेम हैं नफरत हैं पंच प्रपंच हैं मोह है तो माया है सन्यास है मोक्ष हैं स्वर्ग है तो नरक भी हैं सारा लीला माँ प्रकृति ही हैं प्रकृति नहीं कुछ ही। लाखो प्रजातियों में मनुष्य ही एक ऐसा प्रजाति है जो इस प्रकृति के कीमत को जनता है फिर भी वही अकेला ऐसा प्रजाति है जो प्रकृति को नुक्सान ही नहीं पहुंचा रहा बल्कि युद्ध स्तर पर दोहन भी कर रहा हैं।
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जिनको हम जानवर बोल असभ्य बुद्धिहीन के श्रेणी में डाल कर अपने मनुष्यत्व का अभिमान करते है। बुद्धिजीवी होने का जो अभिमानन आज के समय में हम मनुष्य कर रहे है वास्तव में हमने मूर्खता की पराकाष्ठा पार कर ली हैं। आज हम असभ्य और जानवर बन गए हैं। बाकी सारी प्रजातियां सृस्टि के आरम्भ से ही बुद्धजीवी थी, है और आगे भी रहेगी। उन्हें पता हैं की उन्हें क्या करना हैं।
युगो युगो से वो प्रकृति को अपनी माँ समझ उस प्रकृति के गोद में सुखी पूर्वक बालक की तरह कई पीढ़िया बिता दी और प्रकृति के सबसे प्रिये पुत्र हम मनुष्य जिसे प्रकृति ने सोचने समझने की शक्ति दी स्वतंत्रता दी तो खूब प्यार दिया हमें सब कुछ दिया बिना मांगे। हम उस प्रकृति के ही दुश्मन बन चाँद मंगल पर पानी की खोज कर रहे है। प्रकृति के अमृत में हम जहर घोल रहे है और अंतरिक्ष में शुद्ध जल खोज रहे हैं। जितना सीरियस होकर हम अंतरिक्ष में जल खोजने में जल की तरह पैसा बहा रहे है यदि उसके आधा भी पैसा पृथ्वी के जल संरक्षण में लगा दे तो करोडो लोगो की कई सालो की प्यास बुझ सकती है उनके चेहरे पर भी तृप्ति और संतोष का भाव लिए हुवे मुस्कान दिखेगा
हम मनुष्यो को चाहिए की प्रत्येक जिव मात्रा के चेहरे पर ऐसे ही मुस्कान देखने को लक्ष्य घोसित करें | लोगो को चिंता तो है लेकिन प्रकृति के स्वास्थ्य की नहीं अपने स्वास्थ्य की लोगो को चिंता तो है लेकिन प्रकृति के घर पृथ्वी की नहीं अपने घर की हैं| आज का मनुष्य हजारो डॉलर प्रोटीन शेक हाई क्वालिटी पानी पिने में मेडिसिन प्रिकॉशन्स लेने में जिम करने में आदि में खर्च कर देते है लेकिन जीवन में कभी एक पेड़ नहीं लगाते ना ही कभी प्रयास करते है की प्लास्टिक चेमिकल्स पेस्टीसिड का उपयोग कम किया जाए |
हम कितना भी प्रोटीन शेक पि ले यदि प्रकृति स्वस्थ नहीं हैं तो ५० या ६० साल में ही स्वर्ग या नरक सिधार जायेंगे कितना भी मजबूत घर बना ले प्रकृति उसको भी बहा देगी या अपने अंदर ही समाहित कर लेगी हमे अपने स्वस्थ्य के साथ साथ प्रकृति के स्वस्थ्य का भी जिम्मेदारी से ध्यान रखना चाहिए बिलकुल माँ की तरह गलती हमारी नहीं हमारे दिमाग कचड़ा भर विनाशकारी वैज्ञानिक बनाने की पीछे शिक्षा निति का हाथ हैं यह एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है हमारी शिक्षा निति ही वह कारन है जिसने प्रकृति को विनाश के मुहाने पर खड़ा कर दिया हैं | आइये प्रकृति माँ के लिए इस सावन कुछ पेड़ लगाए तब जलाभिषेक करे।
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