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गाँव की प्रसिद्ध मनोरंजक और शिक्षाप्रद कहानियाँ

आज के परिवेश में गाँव का नाम आते ही उसकी परिभाषा एक शब्द में बता दिया जाता है कि “वही न! गाँव वाले गवार।” गवार नहीं यह उनका भोलापन हैं क्योंकि उनके संस्कार, उनकी शिक्षा ही ऐसी है जो प्रेम, शांति और संस्कृति का संरक्षण करना सीखा सके और वो लोग आज भी बहुत हद तक इस पुनीत कार्य मे सफल भी हैं।

आज भी गाँव में ज्यादा उम्र के कम बीमारी वाले अनेक स्त्री-पुरुष मिल जाएँगे साथ ही शुद्ध हवा मिल जाएगी, हरियाली भी मिल जाएगी क्या इनसे भी ज्यादा जरूरत जीवन के लिए कुछ हैं?
आज हमने उसी शिक्षा जो सिर्फ क्लासरूम में ब्लैकबोर्ड पर ही नहीं दी जाती थी, वो शिक्षा दादा-दादी या नाना-नानी द्वारा अपने नाती-पोतो को शाम के भोजन के बाद अपने साथ सुला कर दिया जाता था।  लगभग सभी बच्चें ये कहानियां सुनते-सुनते सो जाते थे।
मुझे भी अच्छी तरह याद है मेरे दादाजी जी हमेशा मुझे रामायण की कहानियाँ सुनाया करते थे बजरंगबली मेरे जीवन के सबसे पहले हीरो बने।
सोने से ठीक पहले बच्चों को कहानियाँ सुनाने के पीछे भी एक मनोविज्ञान हैं बच्चा यदि कहानियाँ सुनते-सुनते यानी कि उस कहानियों के किरदार का या विषयों का चिंतन करते-करते सोता है तो यह उसके मस्तिष्क का विकास उन कहानियों के विषयों के अनुसार करने सहायक हो सकता हैं।
तो चलिए आज हम उन्हीं कहानियों को जो आज के आधुनिकरण के गलत दिशा में जाने की वजह से, बदलते परिवेश और जीवनशैली की वजह से दादा-दादी या नाना-नानी और नाती-पोतो में दूरिया बढ़ चुकी है अतः हम इन कहानियों को भूलते जा रहे है।
मैं भी गाँव से हूँ और मेरी शिक्षा यह है कि अपने परम्परा का संरक्षण करने का अपना कर्तव्य निभाऊं ये सभी कहानियां सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं बड़ो के लिए भी है ताकि आप लोग भी पढ़ सके तभी शायद अपने आने वाली पीढ़ी को सुना सकेंगे और उनका सम्पूर्ण विकास में उनका सहयोग कर सकते हैं।
विषय सूचि 
 
1- पंडित जी और सतुआ, भुजा और चिउरा नामक भुत
2- वीर तिवारी की  कहानी
3-
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7-
8-
1-  पंडित जी और सतुआ, भुजा और चिउरा नामक भुत
बात उस समय की हैं जब हमारा देश भारत, परतंत्रता की आग में जल रहा था। सिर्फ भारत भूमि ही नहीं भारतीय संस्कृति तंत्र का भी रीढ़ की हड्डी टूट चुकी थी। विश्व गुरु साथ ही सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत, मुघलो के अत्याचार और शोषण से अत्यंत शोषित हो चूका था।
हजारो-लाखो गुरुकुल या विश्व विद्यालय बंद होने से शिक्षण कार्यों में लगे लाखों लोग बेरोजगार हो गए। गरीबी भुखमरी ने मानो कभी न जाने वाले अतिथि की तरह गृहप्रवेश कर लिया था।
बिहार के चम्पारण जिला के वाल्मीकिनगर में एक पंडित जी अपने पत्नी के साथ एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जो हर बरसात में टपकता था। गरीबी की हालत ऐसी थी की जैसे तैसे आस-पास के लोगो की सहायता से पेट का काम चल जाता था लेकिन कपड़ा और मकान जैसी मुलभुत सुविधाएँ मानो स्वप्न बन चुकी थी।
इन सभी कठिन परेशानियों को सहते हुवे भी पंडित जी अपने दैनिक पूजा-पाठ या धर्म-कर्म को पुरे अनुसाशन और भक्ति युक्त होकर नियमों का पालन करते थे।  जो भी दान में चावल नमक मिल जाता उसीसे संतुष्ट हो कर धर्म उत्थान का आर्य कर रहे थे।
गरीबी की मार और भुखमरी की मार को देखते हुवे एक बार पंडित जी की धर्मपत्नी ने गुस्से में पंडित जी से बोला की “आप बेईमानी तो कर नहीं सकते, लालची हैं नहीं पूरा जीवन वेद-उपनिषद के पाठ लोगो को पढाते रहे जो मिला दान रूप में उसी से संतुष्ट हो जाते हैं लेकिन जब विवाह किया हैं तो आपके संतुष्टि से क्या होगा हमारे बच्चों का क्या भविष्य होगा?
कुछ कीजिये राजधानी में जा कर यदि कुछ करने से हमारा परिवार बढ़िया से बस सके तो कुछ करने का प्रयास कीजिये।” पंडित जी भी अपनी पत्नी के बातों की आवश्यक्ता समझ रहे थे।  उन्होंने कहा- “देखो परतंत्रता के कारण ऐसा हो रहा हैं, दान कौन करता था? राजा या बड़े-बड़े उद्योगपति, वैश्य, शूद्र। इन सब के व्यापर, धन आदि सब पर इस परतंत्रता का असर पड़ा हैं।
मुघलो को टैक्स ही देने में पिछले सैकड़ो सालो से हमारी आधी सम्पन्नता इन विदेशियों ने हमसे जबरजस्ती छीन लिया हैं, फिर भी मैं राजधानी में जाकर कुछ शुभ संभावनाओं की खोज करता हूँ।”
फिर एक दिन शुभ मुहूर्त देखकर अपनी यात्रा प्रारम्भ करने का निश्चय किया और अपनी पत्नी से कहा की -” सुनो ! मैं आज ही जा रहा हूँ रास्ते में मेरे लिए सतुआ, भुजा और चिवरा बाँध दो ताकि भूख लगने पर मैं उसे खा सकू।”
पत्नी ने पंडित जी के कहे अनुसार सतुआ, भुजा और चिउरा को तीन पोटलियों में बाँध दिया। पंडित जी पोटलियों को अपने कंधे पर उठाया और आगे की यात्रा प्रारम्भ कर दी। चलते-चलते पंडित जी घर से कई कोश दूर आ चुके थे।
पंडित जी को अब थकान महसूस हो रही थी साथ ही उन्हें भूख और प्यास भी लग चूका था। पंडित जी ने सोचा की कही तालाब झील दिख जाता तो आराम भी कर लेता और अपनी भूख-प्यास भी मिटा लेता। अगल-बगल नजर दौड़ाई लेकिन उन्हें  कोई स्रोत नजर नहीं आया।
उन्होंने सोचा की थोड़ी दूर और चलते हैं जरूर कही न कही तालाब या नदी मिलेगी। चलते-चलते कुछ दूर पर एक स्वच्छ तालाब दिखा पास ही एक जामुन का बहुत ही विशाल वृक्ष था। पंडित जी मन ही मन प्रसन्न हुवे और उस जामुन के पेड़ के निचे अपना डेरा जमा दिया।
अपना सामान जामुन के निचे रख कर तालाब की तरफ यह कहते हुवे लपके की -“कब नहाऊ,  कब सतुआ खाऊ “- “कब नहाऊ, कब सतुआ खाऊ”   यह बात बार-बार पंडित जी दोहराते जा रहे थे।  संयोग से उस जामुन के वृक्ष पर एक भूत रहता था जिसका नाम सतुआ था।
सतुआ के तो मानो पैरों तले जमीन खिसक गई और अत्यंत आश्चर्यचकित हो गया उसे डर भी लगने लगा उसने मन ही मन सोचा- “अरे! बाप रे!! मैं तो खुद ही मनुष्यों को खाता हूँ और यह किस प्रकार का मनुष्य आ गया जो मुझे ही खाने की बात करता हैं, कही यह कोई बहुत पहुँचा हुआ सात्विक तांत्रिक तो नहीं? तभी तो मेरा नाम भी जानता हैं और मेरे रहने का ठिकाना भी।”
सतुआ नामक भूत बहुत डर गया। वह तुरंत ही वृक्ष से निचे उतर कर पंडित जी का पैर पकड़ लिया और बोला हे महात्मा मेरे गलतियों को क्षमा करें मुझे खाने की बात मत कीजिये आप बार-बार कह रहे थे कब नहाऊ कब सतुआ खाऊ तो अपना सतुआ नाम सुन कर मैं बहुत डर गया मुझे क्षमा कीजिये मैं वचन देता हूँ की  मैं जीवन भर आपका चेला बनकर आपके साथ रहूँगा आप जो कहेंगे वो करूँगा।
पंडित जी को अकस्मात् उत्पन्न हुई डरावनी स्थिति-परिस्थिति को समझने में कठिनाई हुईं लेकिन भूत के वचनो ने उनको सँभलने का मौका प्रदान कर दिया था।
पंडित जी ने चालाकी से पूछा- “तो तुम्हारा ही नाम सतुआ हैं, भूत ने हाथ जोड़ते हुवे हामी में सर को हिलाया।”  सारा माजरा समझ चुके थे। उन्होंने कहा की चलो ठीक हैं सतुआ मैं तुम्हे नहीं खाऊंगा लेकिन मुझे भूख लगी हैं और और तुमने बहुत ही पाप किया हैं, अब बताओ मैं क्या करूँ?
पंडित जी उसके दिए हुवे वचन को भी चेक कर लेना चाहते थे इसीलिए उन्होंने ऐसा कहा। भूत ने कहा की अरे पंडित जी मैंने आपको वचन दिया हैं आपको भूख लगी हैं तो मैं बढ़िया पकवान या मिष्ठान जो आप जैसे सात्विक ब्राह्मण को पसंद ही उसको अतिशीघ्र लाने को तैयार हूँ। आप बस आदेश करें और मुझे  अपने निर्णय पर विचार करें और सतुआ को क्षमा करें।” हाथ जोड़े सतुआ ने भरी हुई आँखों से पंडित जी से निवेदन किया।
पंडित जी को भूत के भयावह चेहरे पर तरसने का भाव दिखाई दिया। पंडित जी को भी उस पर दया आ गई उन्होंने कहा चलो ठीक हैं मैं सतुआ को नहीं खाऊँगा। ” लेकिन जिस दिन तुमने अपना वचन तोडा उस दिन मैं फिर, खा लूँगा।” सतुआ गिड़गिड़ाते हुवे कहा- “वह दिन कभी नहीं आएगा।”
पंडित जी ने आगे की यात्रा प्रारम्भ की और सतुआ भूत उनके पीछे-पीछे एक सेवक की भाँति चल दिया। पंडित जी की भूख बढ़ रही थी साथ ही थकान भी परीक्षा ले रही थी। उन्होंने सोचा रुक कर थोड़ा भुजा खा लेता हूँ और आराम कर लेता हूँ। और कहने लगे- “कब नहाऊ कब भुजा खाऊ” “कब नहाऊ, कब भुजा खाऊ।”
सतुआ का दिमाग और ख़राब हो गया वो मन ही मन सोचने लगा की -“अरे! बाप रे!! ये पंडित तो मेरे भाई भुजा को भी जानता हैं और उसी वृक्ष के तरफ जा रहा हैं, लगता हैं की ये तो मेरे पुरे खानदान को खाने का प्लान बनाकर आया हैं, अब भुजा को भी समझाना पड़ेगा नहीं तो यह पंडित भुजा को भी नहीं छोड़ेगा।”
सतुआ जैसे ही अपने भाई भुजा को समझाने के लिए आगे बढ़ा की देखता हैं की भुजा पहले से ही पंडित जी के पैरों में पड़ा रो रहा हैं और विनती कर रहा हैं की कृपया करके मुझे मत खाइये, मैने आपका क्या बिगाड़ा हैं ?  मुझे छोड़ दीजिये मैं जीवन भर आपका सेवक बन कर रहूँगा आप जो कहेंगे वही करूँगा।”
पंडित जी को भी बहुत आश्चर्य हुआ पंडित जी सोचने लगे कैसा मुहूर्त देखकर निकला था अभी तो आधे रस्ते में भी न आया और दो-दो बलशाली भूत पैर पकड़ कर माफ़ी माँग रहे हैं।  और जीवन भर सेवक बने रहने का वचन भी दे रहे हैं। पंडित जी ने भूत से कहा- तो तुम्हारा नाम भुजा हैं ?
तभी भुजा की नजर पंडित जी के पीछे सिकुड़े सतुआ पर पड़ी वह सहमा और बोला अरे सतुआ भईया तू भी सतुआ बोला अरे! चुप, थोड़ा धीरे बोल कही पंडित न सुन लें। सतुआ खुसफुसाते हुवे बोला  अरे यह बहुत पहुँचा हुआ पंडित हैं यह  मेरा-तेरा सबका पता जानता हैं साथ ही नाम भी जानता हैं।
तभी पंडित जी ने बोला- ” अपना खुसुरफुसुर बंद करो मैं अब ना ही सतुआ को खाऊँगा ना ही भुजा को खाऊँगा मुझे भूख लगी हैं इसीलिए अब मैं चिवरा को खाने जा रहा हूँ,  यह बात सुनते ही बहुत जोर की हवा चली और सतुआ और भुजा के साथ एक तीसरा भूत पंडित जी के पैरों में हुआ था और वचन दे रहा था।
पंडित जी को समझने में देर नहीं लगी की यह चिवरा नामक भूत हैं उन्होंने अपने पैरों को झिटका और बोले अरे दूर हटो ठीक हैं मैं ना तो सतुआ को नाही भुजा को और अब चिवरा को भी नहीं खाऊँगा लेकिन मुझे बहुत जोर की भू ख लगी है अब मैं क्या खाऊ  तुम तीनो जाओ और कुछ भोजन का प्रबंध करके लाओ।
तीनो भूत तुरंत गायब हो गए और कुछ ही पलो में वापस आ चुके थे उनके हाथों में मिठाइयों की टोकरियाँ  थी। पंडित जी इतनी सारी मिठाइयाँ देखकर परेशान हो गए उन्होंने कहा अरे मई इतनी मिठाइयाँ थोड़े खा सकता हूँ बस थोड़ा सा लाना था।
उन्ही में से सबसे बड़े सतुआ भूत ने कहा कोई बात नहीं पंडित जी इनमे से जितना आप खा सकते हैं खा लीजिए बाकी बची हुई हम फेंक देंगे और कल सुबह फिर आपके लिए ला देंगे।  पंडित जी को भूतों की बात पर बहुत दुःख हुआ भोजन का इस तरह बरबाद होना उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा था।
उन्होंने कहा देखो तुम लोगो ने मेरा बात मानने का वचन दिया हैं जो मैं कहुँगा वही तुम लोगो को करना होगा जितना कहूँगा उतना ही करना होगा नहीं तो तुम समझ लेना यदि मुझे भूख नहीं लगी होगी तब भी मैं तुम तीनो को खा लूँगा।  भूत एक बार फिर सहम गए उन्होंने कहा नहीं पंडित जी आप नाराज न हो आप जैसा कहेंगे हम तीनो भाई वैसा ही करेंगे।
पंडित जी ने फिर पूछा इन मिठाइयों को तुम लोग कहा से लाये हो क्या जादू से बनाया हैं भुजा ने कहा अरे नहीं पंडित जी हमें कहा जादू वादु आता हैं हम लोग तो शरीर बाद से प्यासे और भूखे ही घूम रहे हैं नदियों में गोते लगा लेते हैं फिर भी प्यास नहीं बुझती मिष्ठान और  भरमार सामने रहता हैं फिर भी भूख नहीं मिलती।
हमारे बच्चों ने पिंड दान   छोड़िये पितृ पक्ष में एक लोटा हमारे नाम पर किसी पीपल के वृक्ष पर गिराना भी जरुरी नहीं समझा।  इसीलिए हम शरीर छोड़ने के बाद अभी तक प्रेत योनि में भूखे प्यासे तड़प रहे हैं।
भौतिक शरीर छोड़ने के बाद अभी भी एक सूक्ष्म शरीर द्वारा हमारी आत्मा कैद में हैं उसी सूक्ष्म शरीर की वजह से हम लोग मनुष्यों को डरा देते हैं या किसी तांत्रिक द्वारा थोड़ा सा प्यास बुझाने पर उसका कार्य कर देते हैं।
लेकिन अब किसी भी दुष्ट तांत्रिक या डायन के बहकावे में नहीं आना हैं आप जैसा कहेंगे वैसा ही हम लोग जीवन भर करेंगे।  पंडित जी ने कहा ज्यादा ज्ञान मत बघेरों सही सही बताओं ये साड़ी मिठाई कहा से उठा के ले हैं।
तपाक से चिवरा ने कहा अरे पास में ही एक संपन्न नगर हैं वही पर एक बड़े हलुआई के यहाँ से ये सब मिठाइयाँ हम तीनों भाई उठा कर लाये हैं। पंडित जी गुस्से में बोले उठाकर नहीं लाये तुम लोग इन मिठाइयों को चुराकर लाये हों।
भुजा ने दबी हुई हँसी के साथ हम भूतों के लिए चोरी तो रोजमर्रा जैसा आम बात हैं आप काहे भड़क रहे हैं पंडित जी। नामक भूत का जवाब सुन कर पंडित जी का दिमाग ही सुन्न हो गया उन्होंने कहा देखों मैं तुम तीनो से बता देता हूँ एक बार फिर की अब से मैं ही तुम्हारा गुरु हूँ और तुम तीनो मेरी कृपा पर जिन्दा हो ज्यादा ज्ञानी या होशियारी दिखाई या ज्यादा जबान चलाया तो सोच लेना मैं क्या कर सकता हैं।
 बड़े भाई सतुआ ने भुजा को थप्पड़ मारा और बोलै तुझे समझ ना आ रहा तू अपने साथ हम सबकी जान मरवाएगा थोड़ा अपने जबान पर लगाम लगा। भुजा ने मुँह बनाते हुवे मासूमियत से कहा “क्या भैया जो भी (सेंटर फ्रेश) था वो वृक्ष पर ही छूट गया हैं बिना सेंटर फ्रेश के जबान पर लगाम कैसे लगेगी ?”
तभी पास में खड़े चिवरा ने एक जोर का थप्पड़ भुजा को मारा और कहा तो “क्या डर के आगे जीत हैं वाला (माउंटेन ड्यू )पि कर हवाई जहाज से छलाँग लगा दे?” बिना (सेंटर फ्रेश) खाये हुवे ही जबान पर लगाम लगाना सीखना होगा तो जिंदगी में लगाम नहीं लग पायेगी और ये पंडित हम सबको खा जायेगा।
पंडित जी उनके खुसुर फुसुर को बिच में टोकते और अपनी पोटली को खोलने का बहाना करते हुवे बोले अब तो मैं  जरूर सतुआ, भुजा और  चिवरा तीनो को एक साथ खाऊँगा उन तीनों ने समझा की जरूर इन पोटलियों में रखे सामान पर तंत्र मन्त्र करके हमें खा जायेगा एक बार फिर तीनो  पैरों  थे।
महाराज माफ़ करे अब कोई भी कुछ नहीं बोलेगा नाही कोई राय देगा आप जो कहेंगे वही करेंगे। पंडित जी भी होशियार थे वे मान गए और बोले की पहला नियम मेरे साथ रहना हैं तो कम बोलना हैं दूसरा नियम चोरी नहीं करना हैं  ईमानदारी और प्रेम के साथ रहना हैं।
सबसे पहले यह सभी मिठाइयाँ जहाँ से लाये हो वहा अति-शीघ्र पहुँचा दो फिर चिवड़ा ने कहा आप खाएँगे क्या  भूखे हैं ? पंडित जी ने कहा मैं जीवन भर भाखा रह सकता हूँ लेकिन चोरी का अन्न कभी नहीं खा सकता। तुम लोग जल्दी इन सभी मिठाइयों को उस हलवाई के घर पहुँचाकर वापस आओ फिर सोचा जायेगा खाया जाये या नहीं।
इधर हलवाई भी अचानक गायब हुई सारी मिठाइयों को देखकर अत्यंत दुखी हो चूका था, वो पूरी तरह बरबाद भी हो चूका था लेकिन तभी एक चमत्कार हुआ उस बड़े हलवाई के काम करने वाले आकर बता दिए की अरे सेठ जी आपकी सारी मिठाइयाँ कही चोरी नहीं हुई हैं, वो वही राखी हैं जहाँ रखी थी।
हलवाई भी आश्चर्यचकित हो गया, वो सोच में पड़ गया अभी तो सभी अलमारियाँ खाली थी फिर मिठाइयों से भर कैसे गई?” हलवाई भगवान् का चमत्कार समझ कर बहुत प्रसन्न हुआ और मन भी मन ढृढ़ निश्चय किया की वो कभी भी मिठाई में मिलावट नहीं करेगा।
इधर तीनो भूत मिठाई पहुंचाकर वापस आ चुके थे और पुरे अनुशासन में पंडित जी के सामने सेवक की भाँति खड़े थे। पंडित जी कहा आज के बाद से कोई चोरी नहीं करनी हैं। फिर भूत ने कहा  ही नहीं कर पाएंगे तो आप जो कहेंगे वो कहा से देंगे ? स्वर्ण, चाँदी, महल मिष्ठान आदि सब कहा से लाएंगे।
पंडित जी ने कहा अपना दिमाग चलाना बंद करो सोना-चाँदी हिरा मोती ही सबसे कीमती और जरुरी नहीं हैं की मैं उन सब लालशा रखता हूँ, यह मिट्टी ही हैं। सबसे जरुरी हैं धर्म की रक्षा। जिसका पहला नियम चोरी नहीं ईमानदारी हैं। तीनो भूत पंडित से ऐसा उत्तर सुनकर आश्चर्य चकित हुवे।
रात बहुत हो चुकी हैं एक काम करो लकड़ी जला दो और तुम चिवड़ा आस-पास यदि किसी फल का वृक्ष हो तो कुछ भोजन का प्रबंध हो जायगा। आदेश मिलते ही चिवरा गायब हो गया तब तक भुजा और सतुआ ने पंडित जी के आस-पास जो भी पेड़ थे उनको उखाड़ कर एक जगह रखने लगा, पंडित जी चिल्लाये “अरे! रुक जा भाई !! थोड़ी सी लकड़ी जलानी हैं ,पूरा नगर नहीं जलाना हैं।
भुजा और सतुआ रुक गए तभी चिवरा दो-दो विशाल वृक्ष जो पके हुवे मीठे आम से लदे हुवे थे, उखाड़ कर ले के आ गया। पंडित जी अपने सामने पड़े अनेक वृक्ष को देखकर हैरान रह गए साथ ही वृक्षों के उखड़ने से दुखी भी उन्होंने  मन ही विचार किया की इन मूर्खों पर क्रोधित होने का कोई लाभ नहीं।
इन मूर्खों को अब सब कुछ पूर्ण और विस्तार से बताना पड़ेगा तब जाकर इनसे कार्य कराया जा सकता हैं। उन्होंने अपने आप को शांत करते हुवे कहा कि ठीक है आज के बाद से ना ही चोरी करना है ना ही किसीको भी चाहे वो कोई भी हो, प्राणी हो, वृक्ष हो, पर्यावरण हो या कोई निर्जीव ही क्यों न हो किसीको भी किसी भी प्रकार का कोई नुकसान या दुख नही पहुँचाना हैं।
जैसा मैं कहूँगा वैसा ही कार्य करना हैं। अब जितने भी वृक्ष तुम लोगों ने उखाड़ा हैं उन सभी को उसी जगह पर वापस लगाना हैं जरुरत के हिसाब से पानी भी डाल देनी हैं।
आम के पेड़ों से गिरी कुछ आम को उठा कर पंडित जी ने अपने पास रख लिया कुछ ही समय में सभी वृक्ष अपने-अपने स्थान पर खड़े थे। और तीनों पंडित जी के सामने मुँह नीचे किए हुवे सेवक की भाँति खड़े थे।
सुबह होते ही पंडित जी ने अब वापस अपने घर पहुँचने का निर्णय लिया क्योंकि वो अब इन तीनों भूतों के शक्तियों का प्रयोग धर्म कार्य मे करने का निश्चय कर लिया था।
चलते-चलते पंडित जी अपने घर से बहुत दूर निकल आ गए थे तभी सतुआ ने कहाँ की पंडित जी आप कहे तो हम आपको वायु मार्ग से उड़ाकर अतिशीघ्र आपके घर पहुँचा सकते हैं।
पंडित जी ने कहा बहुत बढ़िया तभी भुजा ने नीचे टूटी पड़ी टहनियों से कुर्सिनुमा बनाई और उस पर पंडित जी को बैठाया और लेकर उनके घर के तरफ उड़ चले।
पंडित जी को टूटी लकड़ी की बनी कुर्सी पर उड़ते आता देख उनके गाँव मे पहले डर के कारण सभी लोग इधर-उधर दौड़ने भागने लगे।
तीनो भूत पंडित जी के अलावा किसीको भी नही दिखाई दे रहे थे। जब पंडित जी को भूतों ने नीचे उतारा तब लोगों को पता चला कि अरे ये तो पंडित जी हैं।
सबको लगा कि पंडित जी को कोई बहूत बड़ी सिद्धि प्राप्त हो गई है वो अब महा पुरुष हो गए हैं। सब कोई पंडित जी के पास आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दौड़ पड़े।
पंडित जी ने सबको आशीर्वाद दिया और शाम को गाँव मे ही एक सत्संग का आयोजन करने की घोषणा की और सबको अपने अपने घर जाने का निवेदन किया।
पंडित जी भी अपने घर पहुँचे उनकी पत्नी पहले से ही आश्चर्य चकित होकर अपने पति को टुकुर टुकुर बस ताक रही थी। उन्होंने अपनी पत्नी को कुछ नहीं बताया। बस बोले की  सब भगवान की कृपा हैं।
तभी पंडित जी के घर पर

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