Kabir Ke Dohe In Hindi - आज हम आपको अपने लेख में प्रसिद्ध दार्शनिक, चिंतक, समाज सुधारक, संत कबीर दास के दोहे हिंदी मे अर्थ सहित लेकर उपस्थित हैं.
उपरोक्त दोहा से रचना कर्ता के व्यक्तित्व के बारे में ठीक-ठीक अंदाजा लगाया जा सकता हैं. संत कबीर दास मानवीय भावनाओं के लेकर बहुत तार्किक और प्रायोगिक थे. Kabir Ke Dohe.
उन्होंने अपने विचारों से समाज में एक सामन्जस्व स्थापित करने का प्रयास किया समानता के भाव को बढ़ावा दिया समाज में व्याप्त ऊंच-नीच को भावना को तार्किक रूप से कटघरे में खड़ा किया। तो चलिए शुरू करते हैं- संत कबीर दास के दोहे हिंदी में Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi.
"कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्ती, ना कहु से बैर"
उपरोक्त दोहा से रचना कर्ता के व्यक्तित्व के बारे में ठीक-ठीक अंदाजा लगाया जा सकता हैं. संत कबीर दास मानवीय भावनाओं के लेकर बहुत तार्किक और प्रायोगिक थे. Kabir Ke Dohe.
उन्होंने अपने विचारों से समाज में एक सामन्जस्व स्थापित करने का प्रयास किया समानता के भाव को बढ़ावा दिया समाज में व्याप्त ऊंच-नीच को भावना को तार्किक रूप से कटघरे में खड़ा किया। तो चलिए शुरू करते हैं- संत कबीर दास के दोहे हिंदी में Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi.
Kabir Ke Dohe In Hindi :-
"लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट.
पाछे फिर पछताओगे , प्राण जाई जब छूट"
अर्थ- संत कबीर दास जी कह रहे हैं की -"अभी समय हैं, राम नाम की लूट मची हैं जितना ज्यादा लूट सको तो लूट लो अर्थात जितना ज्यादा राम नाम भज सको, जप सको जप लो! नहीं तो बाद में बहुत पछताओगे जब प्राण तुम्हारे जायेंगे छूट इसीलिए जब तक प्राण हैं जितना भज सको राम का नाम भजलो।" जय श्री राम!!
अर्थ- "यह संसार काजल की कोठरी हैं, इसके कर्म रूपी कपाट कालिमा के ही बने हुए हैं. पंडितों ने पृथ्वी पर पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित करके मार्ग का निर्माण किया हैं. अंधकार में ज्ञान का प्रकाश जलाया हैं. Kabir Ke Dohe.
अर्थ- "जो जानबूझकर सत्य का साथ छोड़ देते हैं झूठ से प्रेम करते हैं, हे भगवान्! हे रामजी! ऐसे लोगो की संगती हमें स्वप्न में भी न देना." Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi.
"काज्ल केरी कोठारी, मसि के कर्म कपाट,
पांहनि बोई पृथमीं, पंडित पाड़ी बात।।"
"जानि बुझि साँचहि तजै, करै झूठ सूं नेह,
ताकि संगती रामजी, सुपिनै ही जिनि देहुँ।।"
संत कबीर दास के दोहे हिंदी मे:-
"काल करें सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।"
अर्थ- संत कबीर दास के दोहे हिंदी में -इस दोहे के माध्यम से कबीर दास यह कहना चाहते हैं की- " कोई भी कार्य को यथासमय कर लेना चाहिए यदि उसे करना अनिवार्य हैं तो कल पर ना छोड़े आज ही कर डाले और यदि और अनिवार्य हैं तो आज भी न रुके अभी कर डाले। कौन जनता हैं पल में भी प्रलय या विनाश हो सकता फिर तुम कब करोगे।
"बुरा जो देखन मै चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजै अपना, मुझसे बुरा न कोय।"
Sant Kabir Das Ke Dohe In Hindi- इस दोहा के माध्यम से कबीर महाराज की दूरदर्शिता झलकती हैं वो समाज के बुराइयों की जड़ों को समझ चुके है और समाज सुधार हेतु वे इस दोहा के माध्यम से यह सन्देश देना चाहते हैं की-" जब कबीर दुसरो के अंदर व्याप्त गलतियों को खोजने चले तो उनको कोई भी गलत नहीं मिला क्युकी उन्होंने जब अपने अंदर झाँका अपने अंदर की बुराईयों को खोजा तो उन्होंने सबसे ज्यादा खुद को बुरा पाया."
कहने का मर्म यह हैं की हमें दूसरों की गलतियों को देखने का कोई अधिकार नहीं हैं जब तक की हम खुद अपने अंदर की बुराइयों और गलतियों को ख़त्म नहीं लेते। और दुसरो की गलतियाँ सुधारने की जगह यदि गलतियों को सुधारने पर ध्यान देने लगेगा तो विस्वास कीजिये एक बहुत बड़ा क्रन्तिकारी परिवर्तन होगा जिसके परिणाम आश्चर्यजनक होगा. Kabir Ke Dohe.
Sant Kabir Das Ke Dohe In Hindi
"दुःख में सिमरन सब करें, सुख में करै न कोय।
जो सुख सिमरन करे दुःख काहे को होय।"
अर्थ- इस दोहे में कबीर साहब बहुत ही सुन्दर तरीके से ईश्वर के भक्ति मार्ग को समझाया हैं। दास जी कहते " दुःख के समय भगवान् का नाम तो सब लेने लगते हैं, मन्नते-दुवाएँ माँगने लगते हैं लेकिन सुख का समय आते ही सब ईश्वर को भूल जाते हैं. सुख-पूर्वक अपने पत्नी, पुत्र-पुत्री, सगे सम्बन्धी संग सुख से रहते हैं. और जो सुख में भी नहीं भूलता ईश्वर को धन्यवाद दे कर उनका नाम लेकर रहता हैं उसे दुःख फिर क्यों होगा।"
"अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धुप।"
"पतिबरता मैली भली, गले कांच की पोत।
सब सखियाँ में यो दिपै ज्यों सूरज की जोत।"
Sant Kabir Das Ke Dohe In Hindi |
Kabir Ke Dohe - कबीर के दोहे
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"
Kabir Ke Dohe Hindi अर्थ- कबीर दास के प्रसिद्ध दोहों में से उपरोक्त दोहा एक हैं अनेक फिल्मो का यह डायलॉग भी बन चुका हैं तो आइये समझते हैं कबीर साहब इस दोहे में क्या कहते हैं -" पोथी अर्थात किताब पढ़-पढ़के पूरा विश्व मर रहा हैं लेकिन ज्ञानी या पंडित नहीं बना कोई, और यदि किसी ने मात्र ढाई शब्द से बना प्रेम के गहरे बात को समझ लिया प्रेम करना सिख लिया फिर बहुत ही सहजा से ज्ञानी या फिर पंडित बन जाता हैं. प्रेम या भक्ति, महज किताबी ज्ञान से ज्यादा जरुरी हैं।"
"साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं,
धन का जो भूखा फिरै सो तो साधु नाहीं।।"
वह तो व्यापारी हैं, स्वार्थी हैं, धन के लिए लार टपका रहा हैं, साधू तो निश्छल प्रविर्ती को होता हैं, जो सिर्फ देना जानता हैं. व्यापार उनका कर्म नहीं।"
Kabir Ke Dohe In Hindi
"पढ़ी-पढ़ी के पत्थर भय, लिख-लिख भया जो ईंट,
कहे कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट।।"
इस दोहे का मर्म यह हैं की हमें जड़ता की तरफ अग्रसर नहीं होना हैं सिर्फ पढ़ाकू ही नहीं बनना चाहिए अपने आस-पास के माहौल के प्रति संवेदनशील हो कर सब को एक सामान समझ प्रेम करना प्रेम देना सीखना चाहिए। Kabir Ke Dohe In Hindi.
"तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी,
मैं कहता सुरझावन हारी, तू राख्यौ उरझाई रे।"
जबकि जो भी बात मैं कहता हूँ बोलता हूँ वो सभी मेरे खुद की अनुभव से कही गई हैं, आँखों देखा सत्य कहा जाता किसी किताब का लिखा नहीं।( कबीर पढ़े-लिखे भी नहीं थे उन्होंने कोई प्राथमिक शिक्षा भी ग्रहण नहीं की थी), मैं जो भी कहता सरल सुलझा के कहता हूँ और तुम उसी बात को उलझाए रखते हो, जितने सरल बनोगे, उलझान से उतने ही दूर रहोगे।
Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi
"मन के हारे हार हैं. मन के जीते जित,
कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत।।"
अर्थ- आत्मविश्वास की वृद्धि करते हुवे कबीर साहब कहते हैं की - " जीवन में हार-जित हमारे मन के भावना पर निर्भर करता हैं यदि मन में हार मान ली निराश हो गया तो पराजय निश्चित हैं मन ने मेहनत करने का जितने का तो निश्चित ही विजयश्री हैं।
कबीर कहते है की साथ ही मन में पूर्ण विस्वास हो तो हरी की भी प्राप्ति हो जाती हैं यदि मन में विस्वास ही न हो फिर कैसे प्राप्त हो सकते हैं।" Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi.
"झूठे सुख को सुख कहे, मानत हैं मन मोद,
खलक चबैना काल का, कुछ मुँह में कुछ गोद।।"
मनुष्य यह नहीं समझ पाता की जिस संसार में वह अभी झूठा सुख भोग रहा हैं, प्रसन्न हो रहा हैं वह संसार काल का चबैना यानी चबाने वाला भोज्य पदार्थ हैं. थोड़े संसार को मुँह में लेकर चबा रहा हैं कुछ को चबाने के लिए अपने गोद में रखा हैं. Kabir Ke Dohe.
इस काल के चुंगल या गोद से कोई नहीं निकल सकता।" मर्म यह हैं की हमें हमेशा धर्म करते रहना चाहिए सिर्फ सुख के पीछे ही व्याकुल नहीं होना चाहिए जीवन के असली सच्चाई को समझ मुक्ति के संसाधनों का उपयोग करना चाहिए।
Kabir Das Ke Dohe In Hindi
"ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस,
भौ सागर में डूबता, कर गाहि काढै केस।।"
उस काल में उन्होंने मनुष्य के मुक्ति हेतु चिंता व्यक्त करते हुवे कहते हैं की -" कोई भी ऐसा नहीं मिलता जो उन्हें उपदेश दे सके उनके अज्ञान के अन्धकार को ज्ञान के प्रकश से मिटा सके, जीवन का सत्य बता सके मार्ग बता सके मुक्ति का मार्ग दिखा सके साथ ही भौतिक सागर में डूबते के केस को पकड़ के डूबने से बचा लेता।"
"पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात,
एक दिन छिप जायेगा, ज्यों तारा प्रभात,
कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे हिंदी में
"कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई,
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।।"
"जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाइ,
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।।"
अर्थ- कबीर इस दोहे के माध्यम से एक बहुत बड़े कटु सत्य उजागर करने का सफल प्रयास करते हैं। वो कहते हैं की -" आपके पास भले ही बहुत गुण हो बहुत सदगुण हो लेकिन आपका मोल तभी लगेगा आपकी वैल्यू तभी लाखो में जाएगी जब आपके गुण पहचानने वाला जौहरी या ग्राहक मिलेगा
अन्यथा अनमोल होते हुवे भी गुण की कीमत कौड़ी के बराबर हो जाएगी यदि गुण को पहचानने वाले नहीं मिलते या उसकी कीमत साझ कर उसके ग्राहक नहीं मिलते।
संत कबीर दास के दोहे
"निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।"
" जो हमारे निंदक यानी निंदा करते हो जो हमारी बुराई हो ऐसे लोगो को अपने आस-पास ही निकट ही रखना चाहिए क्युकी यह निंदाक हमारी बुराई कर हमारी निंदा कर हमारी गलतियों को उजागर करते हैं जिससे हमें अपने करने का मौक़ा मिलता हैं जिस वजह से गलतियाँ कम होते ही बिना साबुन बिना पानी हमारा स्वभाव निर्मल बना देती हैं
"धिरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतू आए फल होय।।"
अर्थ- Sant Kabir Das इस दोहे से धैर्य और कठिन परिश्रम पर जोर देते हुवे कहते हैं की -" मन में धैर्य और धीरज रखने से और नित्य कठिन परिश्रम से धीरे-धीरे समय आने पर सब कुछ होता हैं अर्थात सब कुछ प्राप्त होता हैं, जिसप्रकार कोई माली सौ घड़े पानी से सींचता हैं तब जाकर धीरे-धीरे उसका विकास होता हैं और समय आने पर या ऋतू के फल की प्राप्ति होती हैं।।"
कहने मर्म यह हैं की हमें किसी भी स्थिति परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए धैर्य के साथ पुरे मजबूती से अपने काम में लगे रहना चाहिए फिर धीरे-धीरे समय आने पर एक दिन जरूर सफलता रूपी फल की प्राप्ति होगी।
Sant Kabir Ke Dohe
"जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहने दो म्यान।।"
"दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।"
अर्थ- कबीर दास जी इस दोहे में उन पर एक बहुत कड़ा प्रहार करते हुवे की-" यह इंसान का आम स्वभाव हैं की वो दुसरो की गोष और गलतियों को देखकर उसकी बरबादी पर मंद मंद मुस्कुराते हुवे खुश होते हुवे चलता हैं. लेकिन उसे अपने दोष की याद नहीं आती की वो इतना ज्यादा हैं की जिसका ना ही शुरुआत हैं।
ख़त्म हैं अर्थात गलतियों का इतना भंडारा होते हुवे भी जिसका न अंत हैं फिर भी मनुष्य दुसरो गलतियों को देख अनुभव करता हैं यह उसका अहंकार और मूरखता ही हैं".
"साधू ऐसा चाहिए, जैसा सुप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय"
अर्थ- इस दोहे में कबीर दास कहते हैं की- "साधु को इस प्रकार सज्जन होना चाहिए की जिस प्रकार सपा अन्न को बचा लेता है और उसमे पड़े कंकड़-पत्थर थोथा आदि को फटककर उड़ा देता हैं उसी प्रकार साधू जान को भी जो सार सहित सार्थक हैं उसको बचा लेना चाहिए तथा जो निरर्थक हैं कंकड़-पत्थर थोथा सामान हैं उसे फटककर उड़ा देना चाहिए अपने से दूर कर देना चाहिए।"
"देह धरे का दंड हैं, सब काहू को होय।
ज्ञानी भुगते ज्ञान से अज्ञानी भुगते रोय।"
बहुत ही सुन्दर एक दार्शनिक व्याख्या इस दोहे के माध्यम से कबीर दास ने किया हैं- " शरीर धारण करना दंड को देने वाला हैं। भोग को भोगना ही इस शरीर का दंड हैं सुख-दुःख में अंतर समझना ही दंड हैंऔर दंड सभी शरीर धारण करने वालों को बार-बार मिलना हैं.
फर्क बस इतना हैं की इस सजा को ज्ञानी जन समझदारी से झेलते हैं, संतुष्टि से भोगते हैं सुख-दुःख को सामान समझने वाले सुखी रहते हैं जबकि अज्ञानी जन इस दंड स्वरुप भोग को रोते-रोते झेलते हैं."
"कबीर हमारा कोई नहीं हम काहू के नाहिं।
पारै पहुंचे नाव ज्यों मिलिके बिछुरी जाहिं।"
अर्थ- इस संसार में सही में में न कोई अपना हैं और न ही हम किसी के हैं! जैसे नाँव के नदी पार पहुंचने पर उसमे मिलकर बैठे हुए सब यात्री बिछुड़ जाते हैं वैसे ही हम सब इस जीवन में मिले हैं फिर बिछुड़ जायेंगे यह सारा सम्बन्ध मोह माया यही छूट जाएँगे।"
Kabir Ke Dohe
"मन मैला तन उजला बगुला कपटी अंग।
तासों तो कौआ भला तन मन एकहि रंग। "
अर्थ- "बगुले का शरीर तो सफ़ेद होता हैं पर मन काला होता हैं कपट, छल से भरा हैं, उससे तो बढ़िया कौवा हैं जिसका तन और मन अंदर बाहर सब काला हैं और वह किसी के साथ भी छल ना ही करता हैं नाही उसकी ऐसी कोई भावना हैं" Kabir Ke Dohe.
"रात गवाई सोय कर, दिवस गवायो खाय।
हिरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय।"
अर्थ- संत कबीर दास ने इस दोहे में खास कर युवा को सफलता का सन्देश दे दिया हैं वो कहते हैं-" रात तो सो कर बिता दिया, दिन अपना पेट भरने में निकाल दिया यह जन्म हीरा समान अनमोल और अमूल्य हैं विषयों के चिंता में वासनाओं में वशीभूत हो कर जीवन का मूल्य कौड़ी के भाव हो जायेगा।" इससे ज्यादा दुखदायी और क्या हो सकता हैं.
"हाड जले लकड़ी जले, जले जलावन हार।
कौतीकहारा भी जले कासों करूँ पुकार।"
अर्थ- "दाह संस्कार में हड्डियाँ जलती हैं इनको जलाने वाली लकड़ी जले उनमे आग लगाने वाला भी एक दिन जले समय आने पर जलते हुवे यह दृश्य देखने वाले भी जल जाते हैं, जब सब का अंत यही हैं तो सहायता के लिए किसको पुकारू किससे गुहार करूँ किससे आग्रह या विनती करू सबका एक ही अंत।"
kabir ke dohe in hindi |
Kabir Ke Dohe In Hindi:-
"पढ़े गुनै सिखै सुनै मिटी न संसै सुल।
कहै कबीर कासों कहूं ये ही दुःख का मूल।"
अर्थ- "पढ़के सुनके बहुत से गुण सीखे फिर भी मन में गणा संशय का न निकल सका तो आखिर कबीर किससे कहे की यही दुःख का मूल हैं ऐसी पठन-पाठन दुखदायी हैं." kabir ke dohe in hindi.
"माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर।
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- "माला फेरते हुवे एक लम्बा समय बीत गया लेकिन फिर भी मन का चंचलता, हलचल और संदेह को नहीं फेर पाया नहीं हटा पाया। कबीर को ऐसे व्यक्ति को सलाह हैं की हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन की मोतियों को बदलो या फेरों।"
"जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।"
अर्थ-"जिसने भी गहरे पानी में उतर कर पैर जमाकर प्रयत्न लगाकर खोजा उसने कुछ ना कुछ प्राप्त किया लेकिन कुछ डूबने के डर से किनारे ही बैठे रह जाते हैं और कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं"
"बोली एक अनमोल हैं, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।"
अर्थ- "जो अच्छा वक्ता होता है सही सलीके से बोलना जनता हैं उसे पता हैं की बोली एक अनमोल रत्न हैं बोली को तराजू से तौल के जितना जरुरी हो उतना ही मुख से बाहर आणि चाहिए यानी की हमें व्यर्थ में बोलते रहना चाहिए जरुरत पड़ने पड़ने पर जरुरी और मीठी बोली ही बोलनी चाहिए"
"तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।"
Sant Kabir Das Ji Ke Dohe In Hindi
"संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत,
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।"
"जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं,
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।"
"कबीर तन पंछी भया, जहाँ मन तहाँ उड़ी जाए,
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाई।"
"तन को जोगी सब करें, मन बिरला कोई,
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।"
संत कबीर दास के दोहे हिंदी में
"कबीर सो धन सांचे, जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।"
"माया मुई न मन मुआ, मरी मरी शरीर,
आसा तृष्णा न मुई, यो कही गए कबीर।"
"मन ही मनोरथ छाड़ी दे, तेरा किया न होइ।
पानी में घीव निकसे, तो रुखा खाए न कोई। "
अर्थ- मानव जाती को समझाते हुवे कबीर दास कहते हैं की- "मन की इक्षाएं, कामनाएँ छोड़ दो उन्हें तुम अपने दम पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकले, तो रूखी-सुखी रोटी कोई न खाये।"
"जब मैं था हरी नहीं, अब हरी हैं मैं नहीं,
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माहि।"
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- " जब मैं की भावना थी अर्थात अहम् या अहंकार का भाव था तब हरी प्राप्त नहीं हो सके अब हरी हैं मैं या अहम् या घमंड का भाव नहीं हैं अज्ञान का सारा अन्धेरा मिट गया जब मैंने अपने भीतर जल रहे दीपक का प्रकाश पाया। "
मर्म यह हैं की जब तक हमारे अंदर घमंड का अंधकार रहेगा तब तक हम ज्ञान के प्रकश रूपी हरी को नहीं प्राप्त कर सकते तो सर्वप्रथम प्रभु की प्राप्ति हेतु या सत्य का साक्षात्कार करने हेतु मैं या अहम् की भावना का लोप होना आवश्यक हैं मैंने नहीं किया प्रभु की कृपा से संभव हो यह भावना ही अहम् के भाव को ख़त्म करने का पहला मार्ग हैं. मैं सिर्फ माध्यम हूँ करता भरता सब प्रभु हैं.
Sant Kabir Ke Dohe In Hindi
"कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी।
एक दिन तू सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी।।"
अर्थ- कहते हैं -" अज्ञान की नींद में सोया क्यों पड़ा रहता हैं ? ज्ञान की जागृति को हासिल करने के लिए प्रभु का नाम लो। सजग होकर प्रभु ध्यान करो। वह दिन दूर नहीं जब तुम भी अपना पूरा पाँव पसार गहरी निद्रा में सो ही जाओगे - जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का स्मरण करते क्यों नहीं?" Sant Kabir Ke Dohe In Hindi.
"आछे/पाछे दिन पाछे गए, हरी से किया न हेत,
अब पछताए क्या होत हैं, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।"
"बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।"
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- "कबीर कहना चाहते हैं की -" कोई बड़ा हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता फर्क तब पड़ता हैं जब उससे समाज को या मानवता को लाभ हो जैसे बड़ा तो खजूर का पेड़ भी होता हैं लेकिन उसका कोई लाभ नहीं ना तो वो छाँव प्रदान कर पाता हैं और फल भी होते हैं तो इतने ऊपर की उनको तोड़ना और खाना बहुत कठिन हैं। "
"हरिया जांणे रुखड़ा, उस पाणी का नेह,
सुका काठ न जानई, कबहुँ बरसा मेंह।।"
अर्थ- "कबीर कहते हैं की -" पानी के स्नेह को हरा वृक्ष ही जानता हैं सूखा लकड़ी क्या जानता हैं की कब मेघ बरसा पानी बरसा? अर्थात हिरे की पहचान जौहरी ही करता हैं अच्छे हृदय वाले ही प्रेम के स्नेह को समझ पाते हैं निर्मम मन इस स्नेह को क्या जाने" Kabir Ke dohe.
अर्थ- "बदल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे, इससे मिटटी तो भीग कर सजल या मुलायम हो गई किन्तु पत्थर वैसा ही बना रहा" Sant Kabir Ke Dohe.
Sant Kabir Ke Dohe in hindi. |
Sant Kabir Das
"झिरमिर-झिरमिर बैरसिया, पाहन ऊपर मेंह,
माटी गली सैजल भाई, पाहन बोहि तेह।।"
"कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन,
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहुँ सो पहला दिन।।"
अर्थ- " व्यर्थ में कहते और सुनते सभी दिन बित गए, पर यह उलझा मन कभी नहीं सुलझ पाया! कबीर कहते हैं की यह अभी भी होश में नहीं आता हैं अपनी चेतना को जागृत नहीं करता हैं आज भी उसी अवस्था में जिस अवस्था में पहले दिन था"
"एक दिन ऐसे होयेगा, सब सूं पड़े बिछोह,
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होय।।"
"कबीर प्रेम न चक्खिया, चक्खि न लिया साव,
सुने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यों जाव।।"
Kabir Ke Dohe In Hindi
"मान, महातम, प्रेम रस, गरवा तण गुण नेह,
ए सबही अहला गया, जबहीं कह्या कुछ देह।।"
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- मान-सम्मान, महानता का बातें, प्रेम रस, गौरव गुण तथा स्नेह - सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता हैं.
अर्थात किसी से कुछ माँगते हैं तो कई बार हमारा मान, महानता प्रेम रास गुण, स्नेह सारे वादे इरादे सब झूठी हो जाती हैं सब किसी न किसी बहाने की बाढ़ में देने वाले के द्वारा बहा दिया जाता हैं , इसीलिए हमें स्वालम्बी साथ ही स्वाभिमानी होना चाहिए दुसरो पर किसी भी प्रकार की निर्भरता जितना काम हो उतना ही होना चाहिए।
हमें माँगने की जगह कमाने को अपने आदत में लाना चाहिए क्युकी माँगने पर बहाने के बाढ़ में सब वादे-इरादे बह जाते हैं हाथ कुछ लगता भी है तो वो सिर्फ इंकार के रूप में अपमान।
"जाता हैं सो जाण दे, तेरी दसा न जाइ,
खेवटिया की नांव ज्यूँ, घने मिलेंगे आई।"
साफ़-साफ़ बात हैं आप कोई सर्व शक्तिमान नहीं हैं आपके हाथ नहीं हैं मनुष्य को लगता हैं की वही कुछ करता हैं यही उसकी सबसे बड़ी भूल हैं मनुष्य सिर्फ कठपुतली हैं; करता तो भूतकाल के गर्भ में जन्मी परिस्थियाँ ही आज को जन्म देती हैं.
आप भुतकाल को नहीं बदल सकते, आप सिर्फ भविष्य को बदल सकते हैं आज को भी नहीं इसीलिए जो आ रहा हैं, जो हो रहा हैं, जो जा रहा हैं जाने दो आप हर स्थिति में समान रहो जैसा गीता में श्री कृष्ण ने कहा दुःखसुखे समेकृत्वा दुखः-सुख समान ही हैं.
अर्थ-"मानव जन्म पाना बहुत ही दुर्लभ हैं, यह शरीर बार-बार नहीं मिलता, जो फल वृक्ष से निचे गिर पड़ता हैं वह पुनः उसकी डाल पर नहीं लगता।"
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- "यह शरीर कच्चा घड़ा समान हैं जिसे तू साथ लिए फिरता हैं या घूमता हैं, जरा सी धक्का लगने पर यह टूट-फुट जायेगा कुछ भी बच नहीं पाएगा हाथ में कुछ भी नहीं जायेगा।
"मैं मैं बड़ी बलाय हैं, सकै तो निकासी भागि,
अर्थ- अहंकार बहुत ही बुरी वस्तु हैं. हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ. मित्र, रुई में लिपटी इस अग्नि-अहंकार को मैं कब तक अपने पास रखूँ ?
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं- प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पड़ा - जिससे अंतरात्मा तक भीग गई, आस-पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया, खुश हाल हो गया, यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव हैं! हम सभी प्रेम में क्यों नहीं जीते।"
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- जिनके ह्रदय में न तो प्रीत हैं और न प्रेम का स्वाद, जिनकी जिह्वा पर राम का नाम नहीं रहता, वे मनुष्य इस संसार में उत्पन्न हो कर भी व्यर्थ हैं, प्रेम जीवन की सार्थकता हैं, प्रेम रस में डूबे रहना जीवन का सार हैं.
अर्थ- घर बहुत दूर हैं रास्ता बहुत लम्बा हैं साथी ही बहुत खतरनाक और भयानक हैं और उसमे अनेक लुटेरे ठग बैठे हैं, हे सज्जनों! कहो, भगवान् का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो? संसार में जीवन कठिन हैं,
अनेक अवरोध और विप्पतियाँ हैं, उनमे पद के हम भरमाये रहते हैं, बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं, हम अपना लक्ष्य इन भूलभुलैया में पड़ कर भूल जाते हैं फिर अमूल्य हरी का कैसे दीदार किया जा सकेगा यह असंभव हैं.
अर्थ- इस शरीर को दीपक बना लूँ, उसमे प्राणों की बत्ती डालूँ और रक्त से तेल की तरह सींचूँ, इस तरह दीपक जलाकर मैं अपने प्रिय के मुख का दर्शन कब कर पाउँगा? ईश्वर से लौ लगाना, उसे पाने की कामना करना उसकी भक्ति में तन-मन को लगाना एक साधना हैं तपस्या हैं- जिसे कोई विरला ही कर पाता हैं! Kabir Das Ke Dohe In Hindi
अर्थ- कबीर कहते हैं की -" हे प्रभु आप इन दोनों नयनो की राह से मेरे अंदर आ जाइये और फिर मैं अपने इन नयनों को बंद कर लूँ। फिर न तो मैं किसी दूसरे को देखूँ और न ही किसी और को तुम्हें देखने दूँ!"
अर्थ- कबीर कहते हैं की जहाँ सिंदूर की रेखा हैं, वहाँ काजल नहीं दिया जा सकता, जब नयनो में राम बसे रहे तो वंहा कोई और के निवास कहाँ कर सकता हैं जगह ही नहीं बचेगा कहा समायेगा।" Kabir Das Ke Dohe.
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं की समुद्र की सीपी प्यास रटती रहती हैं, स्वाति नक्षत्र की बूँद की आशा लिए हुवे समुद्र की अपार जलराशि को तिनके के बराबर समझती हैं, हमारे मन में जो पाने की ललक या कामना हैं जिसे पाने की लगन हैं, उसके बिना सब निस्सार हैं,
"सातों सबद जु बाजते घरि घरि होते राग।
अर्थ- कबीर यह कहते हुवे लिखते हैं की-" जिन घरो में सभी सप्त स्वर गूंजते थे, पल-पल उत्सव मनाए जाते थे, वे घर भी अब खाली पड़े हैं, उनपर कौए बैठने लगे हैं, हमेशा एक सा समय तो नहीं रहता हैं, जहाँ खुशिया थी वहाँ गम छा जाता हैं, जहाँ हर्ष था वहाँ अब विषाद भी डेरा डाल सकता हैं।" परिवर्तन ही संसार का नियम हैं यही शुरू से चला आ रहा हैं.
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं की-" ऊँचे-ऊँचे भवनों और महलों को देख कर क्या गर्व करते हो? कल या परसो समय आने पर यह सभी भूमि पर लेट जायेंगी अर्थात ख़त्म हो जाएँगी धीरे-धीरे नष्ट हो जाएँगी और ऊपर घास उगने लगेगी, वीरान, सुनसान हो जाएगा जो अभी, हँसता खिलखिलाता आँगन हैं इसीलिए कभी अहम् घमंण्ड या गर्व ना करो सच्चाई को आत्मसात करो.
अर्थ- जन्म और मरण का विचार करके, हमें बुरे कर्मो का त्याग का देना चाहिए, जिस मार्ग पर तुझे चलना हैं उसी मार्ग का स्मरण कर, उसे ही याद रख, उसे ही सुन्दर बनाएंगे उसे ही सँवारे। (kabir ke dohe).
"मानुष जन्म दूभर हैं, देह न बारम्बार।
तरवर थे फल झड़ी पड्या, बहुरि न लागे डारि।।"
"यह तन काचा कुम्भ हैं, लिया फिरे था साथ,
ढबका लागा फूटिगा, कुछु न आया हाथ।।"
"मैं मैं बड़ी बलाय हैं, सकै तो निकासी भागि,
कब लग राखैं हे सखी, रुई लपेटी आग।"
अर्थ- अहंकार बहुत ही बुरी वस्तु हैं. हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ. मित्र, रुई में लिपटी इस अग्नि-अहंकार को मैं कब तक अपने पास रखूँ ?
"कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई.
अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई।।"
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं- प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पड़ा - जिससे अंतरात्मा तक भीग गई, आस-पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया, खुश हाल हो गया, यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव हैं! हम सभी प्रेम में क्यों नहीं जीते।"
"जिहि घट प्रेम न प्रीति रस, पुनि रसना नहीं नाम,
ते नर या संसार में, उपजी भय बेकाम।"
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- जिनके ह्रदय में न तो प्रीत हैं और न प्रेम का स्वाद, जिनकी जिह्वा पर राम का नाम नहीं रहता, वे मनुष्य इस संसार में उत्पन्न हो कर भी व्यर्थ हैं, प्रेम जीवन की सार्थकता हैं, प्रेम रस में डूबे रहना जीवन का सार हैं.
" लम्बी मारग दुरी घर, बिकट पंथ बहु मार,
कहौ संतो क्यूं पाइए, दुर्लभ हरि दीदार।।"
अनेक अवरोध और विप्पतियाँ हैं, उनमे पद के हम भरमाये रहते हैं, बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं, हम अपना लक्ष्य इन भूलभुलैया में पड़ कर भूल जाते हैं फिर अमूल्य हरी का कैसे दीदार किया जा सकेगा यह असंभव हैं.
Kabir Das Ke Dohe In Hindi
"इस तन का दिवा करों, बाटी मेल्यूं जिव.
लोही सींचौं तेल ज्यूँ, कब मुख देखों पिव।"
अर्थ- इस शरीर को दीपक बना लूँ, उसमे प्राणों की बत्ती डालूँ और रक्त से तेल की तरह सींचूँ, इस तरह दीपक जलाकर मैं अपने प्रिय के मुख का दर्शन कब कर पाउँगा? ईश्वर से लौ लगाना, उसे पाने की कामना करना उसकी भक्ति में तन-मन को लगाना एक साधना हैं तपस्या हैं- जिसे कोई विरला ही कर पाता हैं! Kabir Das Ke Dohe In Hindi
"नैना अंतर आव तू, ज्यूं हौ नैन झेंपेउ।
ना हौं देखूं और को न तुझ देखन देऊं।।"
अर्थ- कबीर कहते हैं की -" हे प्रभु आप इन दोनों नयनो की राह से मेरे अंदर आ जाइये और फिर मैं अपने इन नयनों को बंद कर लूँ। फिर न तो मैं किसी दूसरे को देखूँ और न ही किसी और को तुम्हें देखने दूँ!"
"कबीर रेख सिंदूर की काजल दिया न जाई.
नैनूं रमैया रमि रहा दूजा कहाँ समाई।।"
"कबीर सिप समंद की, रटे पियास पियास।
समुदाहि तिनका करि गिने, स्वाति बूँद की आस।"
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं की समुद्र की सीपी प्यास रटती रहती हैं, स्वाति नक्षत्र की बूँद की आशा लिए हुवे समुद्र की अपार जलराशि को तिनके के बराबर समझती हैं, हमारे मन में जो पाने की ललक या कामना हैं जिसे पाने की लगन हैं, उसके बिना सब निस्सार हैं,
"सातों सबद जु बाजते घरि घरि होते राग।
ते मंदिर खाली परे बैसन लागे काग।।"
अर्थ- कबीर यह कहते हुवे लिखते हैं की-" जिन घरो में सभी सप्त स्वर गूंजते थे, पल-पल उत्सव मनाए जाते थे, वे घर भी अब खाली पड़े हैं, उनपर कौए बैठने लगे हैं, हमेशा एक सा समय तो नहीं रहता हैं, जहाँ खुशिया थी वहाँ गम छा जाता हैं, जहाँ हर्ष था वहाँ अब विषाद भी डेरा डाल सकता हैं।" परिवर्तन ही संसार का नियम हैं यही शुरू से चला आ रहा हैं.
"कबीर कहा गरबियौ, ऊँचे देखि आवास,
काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास।।"
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं की-" ऊँचे-ऊँचे भवनों और महलों को देख कर क्या गर्व करते हो? कल या परसो समय आने पर यह सभी भूमि पर लेट जायेंगी अर्थात ख़त्म हो जाएँगी धीरे-धीरे नष्ट हो जाएँगी और ऊपर घास उगने लगेगी, वीरान, सुनसान हो जाएगा जो अभी, हँसता खिलखिलाता आँगन हैं इसीलिए कभी अहम् घमंण्ड या गर्व ना करो सच्चाई को आत्मसात करो.
"जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि,
जिनि पंथू तुझ चालणा सोइ पंथ संवारी।।"
kabir das ke dohe hindi |
"बिन रखवाले बाहिरा चिड़िये खाया खेत,
आधा पर्दा ऊबरै, चेती सकै ततो चेत।।"
अर्थ- कबीर कहते हैं की -" रखवाले के बिना बाहर से चिड़ियों ने खेत खा लिया, कुछ खेत अब भी बचा हैं, यदि सावधान हो सकते हो तो हो जाओ, उसे बचा लो, जीवन में असावधानी के कारन मनुष्य सबकुछ गँवा देता हैं, उसे खबर भी नहीं लगाती, नुक्सान हो चुका हैं,यदि हम सावधानी बरतते तो कितना कुछ या सबकुछ बचा सकते हैं, इसीलिए जागरूक होना हैं प्रत्येक मनुष्य को, Kabir Ke Dohe.
"हीरा परखै जौहरी शब्दहि परखै साध,
कबीर परखै साध को ताका मता अगाध।।"
"एकही बार परखिये ना वा बारम्बार,
बालू तो किरकिरी जो छानै सौ बार।।"
अर्थ- किसी मनुष्य को बढ़िया से ठीक-ठाक एक बार ही परख लो तो उसे बार-बार परखने की आवश्यकता न होगी. रेत अगर सौ बार भी छाना जाए तो भी उसकी किरकिराहट दूर न होगी - इसी प्रकार मुर्ख दुर्जन को बार-बार भी परखो तब भी अपनी मूढ़ता दुष्टता से भरा वैसा ही मिलेगा। किन्तु सही व्यक्ति की परख एक बार में जाती हैं!"
"प्रेम न बाडी उपजे प्रेम न हाट बिकाई,
राजा परजा जेहि रुचे सीस देहि ले जाई।।"
अर्थ- प्रेम खेत में उपजा नहीं करता हैं ऑर्डर ना ही बाजार में बेचीं जाने वाली कोई वस्तु हैं यदि प्रेम पाना हैं तो आत्म बलिदान से ही प्रेम की प्राप्ति होगी। राजा हो या प्रजा हो जिसे भी प्रेम की रूचि हो वह अपना बिलादन में सीस दे जाये और प्रेम ले जाये। प्रेम कठिन परिश्रम और त्याग से प्राप्त होने वाला दुर्लभ हैं बाजार में खरीदने वाला बिकने वाल कोई वस्तु मात्र नहीं!
"कबीर सोइ पीर हैं जो जाने पर पीर,
जो पर पीर न जानइ सो काफिर बेपीर।।"
अर्थ- कबीर कहते हैं की सच्चा साधू वही हैं जो दूसरे के दर्द को दूसरे की पीड़ा को समझ सके जो दूसरे की पीड़ा को नहीं समझाता वो निष्ठुर हैं दुष्ट हैं."
"कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ,
बूडा बंस बड़ाइता यों जिनी बूड़े कोइ।।"
"मूरख संग न कीजिए, लोहा जल न तराई,
कदली सीप भावनग मुख, एक बून्द तिहूँ भाई।।"
"ऊँचे कुल क्या जनमिया, जे करनी ऊंच न होय,
सुबरन कलस सुरा भरा साधू निंदै सोय।।" Kabir Ke dohe :-
अर्थ- "यदि कार्य उच्च कुल वाला ना हो तो उच्च कुल में जन्म लेने का क्या फायदा, सोने का कलश भी निंदनीय हैं यदि उसमे शराब या सुरा भरा हुआ हैं उसे सभी साधुजन निंदनीय ही कहते हैं."
"कबीर संगति साध की, कड़े न निर्फल होई,
चन्दन होसी भावना, निब न कहसी कोई।।"
"मन मरया ममता मुई, जहं गई सब छूटी,
जोगी था सो रमि गया, आसणि रही बिभूति।।"
"तरवर तास बिलम्बिए, बारह मांस फलंत,
सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत ।।"
Kabir Ke Dohe
"काची काया मन अथिर थिर थिर काम करंत,
ज्यूं ज्यूं नर निधड़क फिरै त्यूं त्यूं काल हसन्त।।"
"जल में कुम्भ कुम्भ में जल, हैं बाहर भीतर पानी,
फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यो गयानी।।"
अर्थ- "अब पानी भरने जाए तो घड़ा जल में रहता हैं और भरने पर जल घड़े के अंदर आ जाता हैं, इस तरह देखे तो, बाहर भीतर पानी ही रहता हैं, पानी की ही सत्ता हैं, जब घड़ा फुट जाए तो उसका जल, जल में ही मिल जाता हैं, अलगाव नहीं रहता, ज्ञानीजन इस तथ्य को कह गए हैं! Kabir Ke Dohe
आत्मा-परमात्मा दो नहीं एक ही हैं, आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान हैं, अंततः परमात्मा की ही सत्ता हैं घड़े सामान यह श्री भी विलीन हो जाता हैं लेकिन परमात्मा की सत्ता रहता हैं.
"झूठे को झूठा मिले, दुंणा बंधे सनेह,
झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह।।"
"करता केरे गुन बहुत, औगुन कोई नाहीं,
जे दिल खोजों आपना, सब औगुन मुझ माहिं।।"
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