Short Poem On Nature In Hindi- आज के इस लेख में कुछ प्रकृति पर कविताएँ प्रस्तुत हैं हिंदी में. Kavita On Prakriti in hindi. सनातन काल से ही भारतवर्ष में परम्परा दर परंपरा समाज में प्रकृति को एक विशिष्ठ स्थान प्रदान किया गया हैं.
मनुष्य के उत्पत्ति से पहले ही प्रकृति को उत्पत्ति हो चुकी थी इस पुरे चल-अचल दुनिया को अपने अंदर पोषित प्रकृति ही करती हैं. जिस प्रकार एक माता अपने बच्चो का भरण-पोषण बिना किसी स्वार्थ या लालच के करती हैं ठीक उसी प्रकार एक माता सामान यह प्रकृति सभी जीवों और प्राणियों का भरण-पोषण करती हैं. Poem On Nature in hindi.
इन्हें भी पढ़े- Poem On Nature in hindi. Nature poem in hindi, kavita on prakriti in hindi,
मनुष्य के उत्पत्ति से पहले ही प्रकृति को उत्पत्ति हो चुकी थी इस पुरे चल-अचल दुनिया को अपने अंदर पोषित प्रकृति ही करती हैं. जिस प्रकार एक माता अपने बच्चो का भरण-पोषण बिना किसी स्वार्थ या लालच के करती हैं ठीक उसी प्रकार एक माता सामान यह प्रकृति सभी जीवों और प्राणियों का भरण-पोषण करती हैं. Poem On Nature in hindi.
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- जानिए तीन पर्यावरण प्रेमी जिन्होंने अकेले लाखो पेड़ लगाए हैं.
- मनुष्य से बेहतर तो जानवर हैं कम-से-कम पर्यावरण को नुक्सान तो नहीं पहुँचाते।
Poem On Nature In hindi प्रकृति पर कविताएँ
Poem On Nature In Hindi: प्रकृति पर कविताएँ हिंदी में |
इस कार्य के बदले में आज तक कभी भी कुछ माँगा ही नहीं खुद धुप सहा लेकिन इस प्रकृति ने हम प्राणियों को छाव प्रदान किया हैं. इसीलिए हिन्दू धर्म में प्रकृति को माता कहा गया हैं तथा इसी देवतुल्य समझ इसका संरक्षण और संवर्धन की उचित व्यवस्था भी की गई हैं. Poem On Nature In Hindi.
यह प्रकृति अपने अंदर अनेक प्रकार के रंगो और भवनों को जागृत करने वाली शक्तियों के समाहित किया हैं. प्रकृति के इस सौंदर्य ने हमेशा से ही कवी, लेखकों और शायरों का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करती रही हैं सबने अपने-अपने राग में अपने-अपने शब्दों में प्रकृति का भरपूर महिमा मंडन किया हैं, और Nature Poem In hindi.
तो चलिए हम भी आज प्रकृति पर कविताएँ का भरपूर आनंद उठाते हैं और प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की कसम खाते हैं.
प्रकृति और बसंत के प्रेम को बड़े सुन्दर ढंग से कवी ने अपने कविता में शब्दों द्वारा प्रदर्षित किया हैं तो चलिए शुरू करते हैं - "प्रकृति और बसंत का प्रेम" Poem On Nature. Prakriti Par Kavita.
हमारे इस छल से आज धरा कुंठित हैं पर्यावरण दुखी हैं, यह दुःख किसी और प्राणी का दें नहीं सिर्फ मनुष्य की ही देन हैं प्रकृति को स्वच्छ और संवर्धन के मामले में तो मनुष्य से बेहतर जानवर हैं काम से कम पर्यावरण को नुक्सान तो नहीं पहुँचाते। जो चलिए आज संकल्प लेते हैं जानवरों से सीखते हैं मनुष्य कैसे बनना हैं प्रकृति को बचाते हैं -
यह प्रकृति अपने अंदर अनेक प्रकार के रंगो और भवनों को जागृत करने वाली शक्तियों के समाहित किया हैं. प्रकृति के इस सौंदर्य ने हमेशा से ही कवी, लेखकों और शायरों का ध्यान अपनी तरफ आकृष्ट करती रही हैं सबने अपने-अपने राग में अपने-अपने शब्दों में प्रकृति का भरपूर महिमा मंडन किया हैं, और Nature Poem In hindi.
तो चलिए हम भी आज प्रकृति पर कविताएँ का भरपूर आनंद उठाते हैं और प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन की कसम खाते हैं.
Poem On Nature- प्रकृति की सिख
हमने चिड़ियों से उड़ना सीखा,
सीखा तितली से इठलाना,
भंवरों की गुनगुनाहट ने सिखाया
हमें मधुर राग को गाना।
तेज लिया सूर्य से सबने,
चाँद से पाया शीतल छाया।
टिमटिमाते तारो को जब हमने देखा
सब मोह-माया हमें समझ आया.
सिखाया सागर ने हमको,
गहरी सोच की धारा।
गगनचुम्बी पर्वत सीखा,
बड़ा हो लक्ष्य हमारा।
हरपल प्रतिपल समय ने सिखाया
बिन थके सदा चलते रहना।
कितनी भी कठिनाई ाँ पड़े,
पर कभी न धैर्य गवाना।
प्रकृति के कण-कण में हैं
सुन्दर सन्देश समाया।
प्रकृति में ही ईश्वर ने
अपना रूप हैं.दिखाया।
Poem On Nature In Hindi |
प्रकृति कुछ कहना चाहती हैं सुनो
हवा कान में सरसराहटों से कुछ कहना चाहती हैं सुनो
पेड़ो पर बैठे चिड़ियों की चहचहाट कुछ कहती हैं सुनो
फूलो पर इठलाते भँवरे कुछ कहते हैं सुनो
सागर की लहरों का शोर
बारिश होते ही नाचते मोर
कुछ कहना चाहते हैं हमसे सुनो
ये खूबसूरत सुहानी शाम
बगीचे के मीठे आम
तितलियों का नहीं कोई काम
कुछ कहना चाहते हैं सबसे सुनो।
ये खूबसूरत शीतल चाँदनी रात
झिम-झिम बरसता सावन की बरसात
ये खिलखिलाते रंगबिरंगे फूल
ये उड़ते हुवे धूल
कुछ कहना चाहते हैं सबसे
ये नदियों की कलकल
ये मौसम की हलचल
वो ऊँची-ऊँची चोटियाँ
वो झींगुर की सीटियाँ
कुछ कहना चाहती हैं सबसे सुनो।
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
प्रेम के गीत गाती हैं शांति की बात बताती हैं
कल-कल बहती नदियाँ दो किनारों को मिलाती हैं
तो बड़े-बड़े वृक्ष भरी दुपहरी में भी छाव दिलाते हैं
प्रकृति सबको एक साथ सहने का सन्देश सिखाती हैं.
Poem On Nature हिंदी में - मैं वृक्ष सन्यासी हूँ.
प्रकृति की एक अभिन्न अंग पेड़-पौधे और वृक्ष होते हैं. वृक्ष हमारी साँसे हैं वृक्ष हमें हर तरफ से सहायता करते हैं बिना वृक्ष के जीवन की कल्पना करने का कोई औचित्य नहीं हैं. वृक्ष हैं तो जीवन हैं तो चलिए इसी कड़ी में कविता के माध्यम से हम वृक्ष के सन्देश को देखते हैं- Poem On Nature.
Poem On Nature हिंदी में - मैं वृक्ष सन्यासी हूँ.
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Nature Poem In Hindi: मैं वृक्ष सन्यासी हूँ.
मुझे नहीं सुख-दुःख की चिंता
मैं वृक्ष सन्यासी हूँ.
मुझसे ही जीवन हैं सबका
मैं अमर अविनाशी हूँ!
काट दो चाहे जड़ो को मेरी
मौत तुम्हारी ही आनी हैं!
मुझपे चलेगी जितनी कुल्हाड़ी
स्वाह तुमको ही हो जाना हैं!
मैं तो मर कर खाद बनूँगा
मिट्टी से जन्मा
मिटटी में ही घुलमिल जाऊँगा।
ये इंसानो अपनी सोचो
तुमको कौन बचा पायेगा
मिट जाएगी सारी हस्ती
वृक्ष ही प्राण बचाएगी
पैदा हुवे तुम जबसे
जलती धुप में भी
छाँव हमने ही पहुँचाया हैं
मैं ही वृक्ष अमर अविनाशी हूँ.
प्रकृति पर कविताएँ हिंदी में.
प्रकृति बिना जीवन की कल्पना करना दूभर हैं प्रकृति हैं तो प्राण हैं हमारा एक एक सांस इस प्रकृति माता का क़र्ज़ है. प्रकृति हर प्रकार से निःस्वार्थ भाव से हम सभी जीवों का भरा-पोषण एक माँ की तरह करती हैं. प्रकृति का बखान शब्दों में नहीं हो सकता फिर भी कवी ने प्रकृति की जरुरत को बताने के लिए एक छोटा सा प्रयास किया हैं "बिन प्रकृति कैसे तू जी पायेगा ?" Poem On Nature.
बिन प्रकृति कैसे तू जी पायेगा ?
जहाँ अन्न की बाली हैं खूब हरियाली हैं
हजारों रंग बिखरे वह प्रकृति रानी हैं
सबके लिए यह प्रकृति सबसे न्यारी हैं
हरे-भरे वन-उपवन
झर झर करते झरना
नदियों का कलकल बहना
प्रकृति का मन को मोह लेना
बिन प्रकृति कैसे तू जी पायेगा ?
बिन माँगे फल,फूल,अन्न, जल, हवा
सब कुछ हमपर न्यौछावर करती
ऐसे जैसे प्रकृति, माँ हो हमारी।
क्या प्रकृति बिना तू जी पायेगा?
रंग-बिरंगा रूप दिखा मन बहलाती
शीतल हवा बहा हमें चैन की नींद सुलाती
बिन शीतल हवा कैसे तू जी पायेगा ?
हे ईश्वर! क्या खूब नायाब प्रकृति को बनाया
ऐसा लगे जैसे चारो तरफ अपना ही हैं रूप दिखाया
रंग-बिरंगे फूल खिले, मध्दम-मध्दम हवा चले
मिट जाए सारे तनाव हे प्रकृति माँ जब भी तेरी गोद मिले।
काट-काट हमने सभी पेड़ हैं गिराया
कई जगह साँसों के लिए हवा गवाया
प्रकृति हैं तो हम हैं, संस्कृति हैं, हमारी सभ्यता हैं
मत कर दूषित-प्रदूषित प्रकृति माता को
प्रकृति ही जीवन देती प्रत्येक प्राणी को
बिन प्रकृति कैसे तू जी पायेगा ?
नदियों की अविरलता झरनो की शीतलता
तड़पे जब भी धरती बादलों से जल हैं टपकता
अनमोल-अमूल्य प्रकृति ही सबका भरण-पोषण करती
इसकी सुरक्षा हमें ही करनी हैं यह बात तू क्यों नहीं समझता
दूषित हवा में क्या तू साँस ले पायेगा ?
जलती दोपहरी में क्या बिन छाँव रह पायेगा ?
शीतल जल बिना कैसे अपनी प्यास बुझायेगा ?
तितली नहीं होंगे बगीचे में फिर बच्चो बिन
बगीचा सुना हो जायेगा, बिन प्रकृति कैसे तू जी पायेगा ?
प्रकृति पर कविताएँ हिंदी में |
आओ मित्रो! प्रकृति माता से प्रेम करें
भूमि ने हमें पाला हैं
हम सभी धरती-पुत्र हैं.
#Nature Poem.
झील, तितली,पर्वत और कलकल बहती नदियाँ
सबमे हम हैं और हममे सब हैं
इनकी रक्षा स्वयं की रक्षा करना ही हैं.
हो चुकी बहुत अति अब और हम न सहन करेंगे
खनन-हनन प्लास्टिक से प्रकृति को दूर करेंगे
प्रकृति का अब ख्याल रखेंगे
हमसब का जीवन हैं सिमित
आओ मिलकर हम इसमें रंग भरें
आओ मित्रो! प्रकृति माता से प्रेम करे.
न करें हम इसे दूषित-प्रदूषित
दुसरो को भी करने से रोके हम
प्रकृति ही हर आपदा से पहले करती हैं सूचित
आओ मित्रो! प्रकृति माता से प्रेम करें
झोलीभर भर कर पेड़ लगाए
धरती माता को हरा-भरा बनाये
प्लास्टिक एक अभिशाप हैं
प्रकृति को प्लास्टिक मुक्त बनाये
आओ मित्रो! प्रकृति माता से प्रेम करें।
हैं हम सभी ऋणी प्रकृति के
जल बचा के प्लास्टिक मुक्त बना के
वृक्ष लगा के प्रकृति का क़र्ज़ चुकाना हैं
धरती को स्वर्ग बनाने की कोशिश करें
आओ मित्रो! प्रकृति माता से प्रेम करें।
प्रकृति पर कविताएँ हिंदी में.
प्रकृति और पर्यावरण के कण-कण में आकर्षण हैं, यह आकर्षण उस समय अपने यौवन पर होता हैं जब बसंत का मौसम होती हैं. प्रकृति अपने आप को नए तरीके से सवारती हैं नए-नए रंग भरती हैं प्रकृति का ऐसा तैयार होना मानो कोई अपने प्रेमी के इन्तजार में उसको लुभाने के लिए अपना श्रृंगार कर रही हैं.प्रकृति और बसंत के प्रेम को बड़े सुन्दर ढंग से कवी ने अपने कविता में शब्दों द्वारा प्रदर्षित किया हैं तो चलिए शुरू करते हैं - "प्रकृति और बसंत का प्रेम" Poem On Nature. Prakriti Par Kavita.
प्रकृति और बसंत का प्रेम Nature Poem
प्रकृति में बहार आयी,
देखकर अपने प्रेमी बसंत को,
उसके मुरझाये अधरों पर
मधुर-मधुर सी मुस्कान छायी।
लगी वह डाली-डाली डोलने
कुछ शरमाई सी कुछ इठलायी सी,
अपनी अनुपम सुंदरता खोलने,
करने लगी अठखेलियाँ।
मिलकर अपने प्रेमी प्रियतम से,
रग-रग में रंग दिया बसंत ने,
उसको रंगो की झोली में
रंग रंगीले रंग में
खुश हैं दोनों हमजोली में.
Nature Poem In hindi.
आई है प्रकृति धरती पर
हरियाली की चुनर ओढ़े
यौवन का श्रृंगार किए.
वन-वन डोले, उपवन डोले
वर्षा की फुहार लिए.
कभी इठलाती कभी बलखाती,
मौसम की बहार लिए
स्वर्ण रश्मि के गहने पहने
होठो पर मुस्कान लिए।
आई हैं प्रकृति धरती पर
अनुपम सौंदर्य उपहार लिए
प्रकृति पर कविताएँ हिंदी में |
प्रकृति के अनुपम उपहार
पशु-पक्षी, पेड़ और पौधे,
प्रकृति के हैं अनुपम उपहार
नहीं देते सिर्फ जीवन हमको
जीने की कला भी हैं सिखलाते।
फिर क्यों अपने जीवन को
बिच अधर में डाल रहे
विनाश की तरफ बढ़ चले हम
फिर भी अंधाधुंध वृक्ष हम काट रहे
प्रकृति के अनुपम उपहार को हम मिटा रहे.
फिर अपने जीवन को स्वयं हम
क्यों विनाश की ओर अग्रसर कर,
अपने अस्तित्व को मिटा रहे...
आखिर कब चेतेंगे हम?
तब जब,
प्रकृति हो जाएगी शून्य विलीन
और मिट जाएगा इस धरा से
हम सबका अस्तित्व
या जब हो जायेंगे हम अस्तित्व हिन्।
Poem On Nature In Hindi: धरती माँ की पुकार
यह अमूल्य धरा, यह अनमोल प्रकृति इनका कोई मूल्य नहीं हैं. जन्म देने वाले माता-पिता के बाद अगर किसी ने पुरे ईमानदारी से निःस्वार्थ भाव से हर पल भर-पोषण किया हैं तो वह प्रकृति ने ही किया हैं, इसीलिए उसे माता की संज्ञा दिया गया हैं. लेकिन हमने अपने प्रकृति माता के साथ छल किया उन्हें दूषित किया, प्रदूषित किया, उनका दोहन और दुरुपयोग किया। Poem On Nature.हमारे इस छल से आज धरा कुंठित हैं पर्यावरण दुखी हैं, यह दुःख किसी और प्राणी का दें नहीं सिर्फ मनुष्य की ही देन हैं प्रकृति को स्वच्छ और संवर्धन के मामले में तो मनुष्य से बेहतर जानवर हैं काम से कम पर्यावरण को नुक्सान तो नहीं पहुँचाते। जो चलिए आज संकल्प लेते हैं जानवरों से सीखते हैं मनुष्य कैसे बनना हैं प्रकृति को बचाते हैं -
धरती माँ की पुकार
धरती माँ करे पुकार,
अब और न करो अत्याचार
मत करो सुनी गोद मेरी
लौटा दो मेरा प्यार।
आहत को देखो मेरे सीने में,
दे दो फिर से मुझको प्राण
मेरे ही सीने से पलने वाले
क्यों हो सच से अनजान।
माँ हूँ मैं तेरी कोई गैर नहीं,
जीवन हूँ तेरा कुछ और नहीं
क्यों हरियाली को मेरे आँचल से
मुझसे छीन लिया।
गला घोटकर ममता का
मुझसे नाता तोड़ गया।
जर्जर हो रही मेरी काया में,
फिर से भर दो जान,
देकर मुझे मेरा अस्तित्व
लौटा दो मेरी पहचान।
आओ ये संकल्प उठाए
आओ ये संकल्प उठाए
पर्यावरण को नष्ट होंने से बचाये।
स्वयं भी जागृत हो,
और दुसरो में चेतना जगाये
देकर नवजीवन इस प्रकृति को
इसे हरा भरा बनाए
इसका अस्तित्व बचाए
जल ही जीवन हैं धरती पर
बून्द-बून्द इसका बचाए
संरक्षित कर इसको
अपना भविष्य बचाए
वृक्ष ना कटने पाए
हरियाली कभी न मिटने पाए
लेकर एक नया संकल्प
झोली भर-भर वृक्ष लगाए
ये प्रकृति ही जीवन हैं,
अपना जीवन बचाये।
Hindi Poem On Nature
ऋतुओं के राजा को ऋतुराज अर्थात बसंत ऋतू कहते हैं इस ऋतू में जर्रा जर्रा के साथ पुलकित होने लगता हैं प्रकृति में एक नई हर्षो-उल्लास का माहौल शुरू हो जाता हैं. वसंत ऋतू में ही प्रकृति बड़ा परिवर्तन आता हैं ऐसा लगता हैं नव वर्षा का प्रारम्भ हुआ हो.
सनातन काल से ही ज्ञानी जानो के चिंतन और लेखन विषय में बसंत ऋतू को एक विशिष्ठ स्थान मिला हैं तो चलिए आज हम उसी परंपरा का निर्वहन करते हुवे शब्दों के माध्यम से प्रकृति की एक अभिन्न अंग बसंत ऋतू पर दो शब्द लिखने का प्रयास किया हैं.
Hindi Poem On Nature
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हे बसंत! तुम कितने भोले हो
हे बसंत तुम हो कितने भोले
आते हो दिल को खोले
ऐसा लगे जैसे
रसवंती के रस के गोले
हे बसंत तुम कितने भोले
तुम न बदले बदल गयी हैं
दूर बहुत अब निकल गयी हैं
देने-लेने के मौसम में
दुनिया कितनी बदल गयी हैं.
मधुमास के नियम बदलकर
स्वार्थ की कालिख को मलकर
नयी हवा नयी दरीचों पर
नाची बेशर्मी खुलकर
नये फूल गुंचे तितली कुछ
ख्वाइश हो मचली मचली कुछ
इन सबका मकरंद बनाकर
शीशी में गुलकंद बनाकर
उथलेपन का महिमा मण्डन
बक्र भाल पर रोली चन्दन
भीतर तुच्क्ष भाव के शोले
हे बसंत तुम कितने हो भोले
Poem On Nature In Hindi प्रकृति की कहानी
बंजर भूमि की कहानी कहूँ
या सूखे नदी की गाथा सुनाऊ
कटती पेड़ो की व्यथा बताऊ
या दूषित हवा की बात लिखूं
प्रकृति को हम माता कहते हैं
माँ के विनास की कहानी कैसे कहूं
प्रकृति ने हमें दिया सबकुछ
विनास की कहानी कैसे कहूं।
बहती नदियों से आगे बढ़ना सीखे
हरे-भरे खेतो से ताजगी सीखे
सागर से धैर्य सीखे
मत कर विनास प्रकृति का
बहुत ही दुःख पायेगा
स्वर्ग क्या, नरक में भी जगह नहीं पायेगा
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3 टिप्पणियाँ
इंसान को समझना चाहिए कि nature से इंसान है इंसान से nature नही।
जवाब देंहटाएंyour all poems are good.
जवाब देंहटाएंBeautiful poems !!!!
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