उपरोक्त दोहा से रचना कर्ता के व्यक्तित्व के बारे में ठीक-ठीक अंदाजा लगाया जा सकता हैं. संत कबीर दास मानवीय भावनाओं के लेकर बहुत तार्किक और प्रायोगिक थे. Kabir Ke Dohe.
उन्होंने अपने विचारों से समाज में एक सामन्जस्व स्थापित करने का प्रयास किया समानता के भाव को बढ़ावा दिया समाज में व्याप्त ऊंच-नीच को भावना को तार्किक रूप से कटघरे में खड़ा किया। तो चलिए शुरू करते हैं- संत कबीर दास के दोहे हिंदी में Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi.
अर्थ- “यह संसार काजल की कोठरी हैं, इसके कर्म रूपी कपाट कालिमा के ही बने हुए हैं. पंडितों ने पृथ्वी पर पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित करके मार्ग का निर्माण किया हैं. अंधकार में ज्ञान का प्रकाश जलाया हैं. Kabir Ke Dohe.
अर्थ- “जो जानबूझकर सत्य का साथ छोड़ देते हैं झूठ से प्रेम करते हैं, हे भगवान्! हे रामजी! ऐसे लोगो की संगती हमें स्वप्न में भी न देना.” Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi.
अर्थ- कबीर अधिकता को बुरा बताते हुवे कहते हैं की – ” न तो अधिक बोलना अच्छा होता हैं और ना ही जरुरत से ज्यादा चुप्पी अच्छी होती हैं जैसे ना ही अधिक वर्षा कोई लाभ देती हैं ऑर्डर ना ही अधिक धुप अच्छा हैं.”
अर्थ- कबीर महाराज संस्कार और पतिव्रता धर्म को प्राथमिकी देते हुवे कहते हैं की -” संस्कारी और पतिव्रता स्त्री यदि मैली हो तो भी बहुत अच्छी हैं, भले ही उसके गले में साधारण काँच के मोती की माला हो फिर भी वो अपने सभी सखियों-सहेलियों के बिच सुरज के चमक जैसी दिब्य रूप से चमकती हैं, उसका तेज, उसकी ज्योति, सूर्य सामान होती हैं.”
Sant Kabir Das Ke Dohe In Hindi |
अर्थ- ” साधू या सज्जन व्यक्ति भाव का, प्रेम का, अच्छे व्यवहार का भूखा या इक्षुक होता हैं,धन से कोई आशय नहीं होता वह धन के लिए लालायित नहीं रहता, लेकिन जो धन के लालच में धन के कामना में दर-दर घूमे वो फिर साधू नहीं हो सकते”
वह तो व्यापारी हैं, स्वार्थी हैं, धन के लिए लार टपका रहा हैं, साधू तो निश्छल प्रविर्ती को होता हैं, जो सिर्फ देना जानता हैं. व्यापार उनका कर्म नहीं।”
अर्थ- प्रेम और भक्ति की महत्ता बताते हुवे कबीर जी कहते हैं की ” पढ़ते-पढते पत्थर और लिखते लिखते ईंट कई लोग हो जाते हैं पत्थर और ईंट से लेखक का तात्पर्य हैं की ऐसे लोग जड़ प्रवृति के हो जाते हैं जिस वजह से कबीर कहते हैं की इनको प्रेम का अमूल्य ज्ञान एक छींट या एक बून्द भी नहीं सिख पाते हैं.
इस दोहे का मर्म यह हैं की हमें जड़ता की तरफ अग्रसर नहीं होना हैं सिर्फ पढ़ाकू ही नहीं बनना चाहिए अपने आस-पास के माहौल के प्रति संवेदनशील हो कर सब को एक सामान समझ प्रेम करना प्रेम देना सीखना चाहिए। Kabir Ke Dohe In Hindi.
अर्थ- उपरोक्त दोहा एक करारा व्यंग तो हैं ही साथ में अनुभव के महत्व को भी बताता हैं इस दोहे में कबीर महाराज कहते हैं की -” तुम जो भी कहते हो या जो भी प्रमाण अपने बातो सत्य सिद्ध करने के लिए कहते हो बोलते हो वो सभी किसी ना किसी किताब में लिखी गयी हैं, जहाँ से तुम सिर्फ पढ़के बोलते हो, उन बातों का अनुभव से कोई सरोकार नहीं हैं, Kabir Ke Dohe.
जबकि जो भी बात मैं कहता हूँ बोलता हूँ वो सभी मेरे खुद की अनुभव से कही गई हैं, आँखों देखा सत्य कहा जाता किसी किताब का लिखा नहीं।( कबीर पढ़े-लिखे भी नहीं थे उन्होंने कोई प्राथमिक शिक्षा भी ग्रहण नहीं की थी), मैं जो भी कहता सरल सुलझा के कहता हूँ और तुम उसी बात को उलझाए रखते हो, जितने सरल बनोगे, उलझान से उतने ही दूर रहोगे।
अर्थ- आत्मविश्वास की वृद्धि करते हुवे कबीर साहब कहते हैं की – ” जीवन में हार-जित हमारे मन के भावना पर निर्भर करता हैं यदि मन में हार मान ली निराश हो गया तो पराजय निश्चित हैं मन ने मेहनत करने का जितने का तो निश्चित ही विजयश्री हैं।
कबीर कहते है की साथ ही मन में पूर्ण विस्वास हो तो हरी की भी प्राप्ति हो जाती हैं यदि मन में विस्वास ही न हो फिर कैसे प्राप्त हो सकते हैं।” Kabir Ke Dohe With Meaning In Hindi.
अर्थ- कठिन से कठिन सत्य को भी अपने शब्दों के कला के माध्यम से एक कवी ही बड़ी सरलता से कठिन को समझा, बता देता हैं संत कबीर दास एक कालजयी कवी थे उन्होंने जीवन के सत्य को उजागर करते हूँ बड़ा सुन्दर व्याख्या करते हुवे कहा हैं की- ” हम मनुष्य जाती के लोग भौतिक सुख धान-दौलत जैसे क्षणिक झूठे सुख को सुख मांग उसके भोग में अंधे हो कर मन ही मन प्रसन्न होते रहते है पेट में ख़ुशी के लड्डू फूटते हैं.
मनुष्य यह नहीं समझ पाता की जिस संसार में वह अभी झूठा सुख भोग रहा हैं, प्रसन्न हो रहा हैं वह संसार काल का चबैना यानी चबाने वाला भोज्य पदार्थ हैं. थोड़े संसार को मुँह में लेकर चबा रहा हैं कुछ को चबाने के लिए अपने गोद में रखा हैं. Kabir Ke Dohe.
इस काल के चुंगल या गोद से कोई नहीं निकल सकता।” मर्म यह हैं की हमें हमेशा धर्म करते रहना चाहिए सिर्फ सुख के पीछे ही व्याकुल नहीं होना चाहिए जीवन के असली सच्चाई को समझ मुक्ति के संसाधनों का उपयोग करना चाहिए।
अर्थ- कबीर के हृदय में हमेशा समाज के लिए एक बड़ा स्थान रहा हैं, कबीर के काल में देश मुघलो के अधीन था हर तरफ अज्ञान और अधर्म व्याप्त था मंदिर गुरुकुल संस्कृति सभ्यता बौद्धिक काशमता का विनाश बरबादी हो रहा था. Kabir Das Ke Dohe
उस काल में उन्होंने मनुष्य के मुक्ति हेतु चिंता व्यक्त करते हुवे कहते हैं की -” कोई भी ऐसा नहीं मिलता जो उन्हें उपदेश दे सके उनके अज्ञान के अन्धकार को ज्ञान के प्रकश से मिटा सके, जीवन का सत्य बता सके मार्ग बता सके मुक्ति का मार्ग दिखा सके साथ ही भौतिक सागर में डूबते के केस को पकड़ के डूबने से बचा लेता।”
अर्थ- बहुत ही सुन्दर उदहारण प्रस्तुत कर के बड़ी सरलता से जीवन-मृत्यु के चक्र को समझाने का प्रयास करते हुवे कहते हैं की-” जिसप्रकार पानी के बुलबुले क्षणभंगुर होते हैं उत्पान होते ही ख़त्म हो जाते हैं उनका कोई अस्तित्व नहीं हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी क्षणभगुंर हैं। जैसे सूरज निकलते ही प्रभात में सारे तारे छिप जाते हैं नहीं दीखते हैं, ठीक उसी तरह एक यह मनुष्य देह भी छिप जायेगा नष्ट हो जायेगा।
अर्थ- कबीर कहते हैं की समुद्र की लहरों के साथ-साथ मोती भी आकर बिखर आई हैं। लेकिन बगुला उनका राज या भेद नहीं जानता इसीलिए उसे भूखा रह जाना पड़ जाता हैं वही हंस भेद या राज या गुण जानता हैं तो
अर्थ- कबीर इस दोहे के माध्यम से एक बहुत बड़े कटु सत्य उजागर करने का सफल प्रयास करते हैं। वो कहते हैं की -” आपके पास भले ही बहुत गुण हो बहुत सदगुण हो लेकिन आपका मोल तभी लगेगा आपकी वैल्यू तभी लाखो में जाएगी जब आपके गुण पहचानने वाला जौहरी या ग्राहक मिलेगा
अन्यथा अनमोल होते हुवे भी गुण की कीमत कौड़ी के बराबर हो जाएगी यदि गुण को पहचानने वाले नहीं मिलते या उसकी कीमत साझ कर उसके ग्राहक नहीं मिलते।
अर्थ- कबीर दास जी का यह दोहा बहुत ही प्रसिद्द हैं और भारत में लगभग सभी लोगो के जुबान पर यह दोहा कभी न कभी हमको सुनने को मिल ही जाती हैं, तो चलिए आज हम इसका समझने का और जानने का प्रयास करते हैं, कबीर दास जी थोड़ा सुरक्षात्मक और कूटनीतिक दृष्टिकोण के साथ कहते हैं की –
” जो हमारे निंदक यानी निंदा करते हो जो हमारी बुराई हो ऐसे लोगो को अपने आस-पास ही निकट ही रखना चाहिए क्युकी यह निंदाक हमारी बुराई कर हमारी निंदा कर हमारी गलतियों को उजागर करते हैं जिससे हमें अपने करने का मौक़ा मिलता हैं जिस वजह से गलतियाँ कम होते ही बिना साबुन बिना पानी हमारा स्वभाव निर्मल बना देती हैं
अर्थ- Sant Kabir Das इस दोहे से धैर्य और कठिन परिश्रम पर जोर देते हुवे कहते हैं की -” मन में धैर्य और धीरज रखने से और नित्य कठिन परिश्रम से धीरे-धीरे समय आने पर सब कुछ होता हैं अर्थात सब कुछ प्राप्त होता हैं, जिसप्रकार कोई माली सौ घड़े पानी से सींचता हैं तब जाकर धीरे-धीरे उसका विकास होता हैं और समय आने पर या ऋतू के फल की प्राप्ति होती हैं।।”
कहने मर्म यह हैं की हमें किसी भी स्थिति परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए धैर्य के साथ पुरे मजबूती से अपने काम में लगे रहना चाहिए फिर धीरे-धीरे समय आने पर एक दिन जरूर सफलता रूपी फल की प्राप्ति होगी।
अर्थ- बहुत ही सुन्दर और सार्थक सन्देश देते हुवे इस Sant Kabir Das Ke Dohe में कहा गया हैं की – “किसी ज्ञानी व्यक्ति का या सज्जन व्यक्ति की जाती मत पूछिए, पूछना ही हैं तो वो कितना ज्ञानी हैं कितना जानकारी रखता हैं उसका ज्ञान पूछिए। मोल करना हैं तो तलवार की करो उसके म्यान को पड़ा रहने तलवार कीमती हैं उसका म्यान नहीं। उसी प्रकार सज्जन या साधू व्यक्ति का ज्ञान की कीमत हैं उसके जात की नहीं।
अर्थ- कबीर दास जी इस दोहे में उन पर एक बहुत कड़ा प्रहार करते हुवे की-” यह इंसान का आम स्वभाव हैं की वो दुसरो की गोष और गलतियों को देखकर उसकी बरबादी पर मंद मंद मुस्कुराते हुवे खुश होते हुवे चलता हैं. लेकिन उसे अपने दोष की याद नहीं आती की वो इतना ज्यादा हैं की जिसका ना ही शुरुआत हैं।
ख़त्म हैं अर्थात गलतियों का इतना भंडारा होते हुवे भी जिसका न अंत हैं फिर भी मनुष्य दुसरो गलतियों को देख अनुभव करता हैं यह उसका अहंकार और मूरखता ही हैं”.
kabir ke dohe in hindi |
अर्थ- “पढ़के सुनके बहुत से गुण सीखे फिर भी मन में गणा संशय का न निकल सका तो आखिर कबीर किससे कहे की यही दुःख का मूल हैं ऐसी पठन-पाठन दुखदायी हैं.” kabir ke dohe in hindi.
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- “माला फेरते हुवे एक लम्बा समय बीत गया लेकिन फिर भी मन का चंचलता, हलचल और संदेह को नहीं फेर पाया नहीं हटा पाया। कबीर को ऐसे व्यक्ति को सलाह हैं की हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन की मोतियों को बदलो या फेरों।”
अर्थ-“जिसने भी गहरे पानी में उतर कर पैर जमाकर प्रयत्न लगाकर खोजा उसने कुछ ना कुछ प्राप्त किया लेकिन कुछ डूबने के डर से किनारे ही बैठे रह जाते हैं और कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं”
अर्थ- “जो अच्छा वक्ता होता है सही सलीके से बोलना जनता हैं उसे पता हैं की बोली एक अनमोल रत्न हैं बोली को तराजू से तौल के जितना जरुरी हो उतना ही मुख से बाहर आणि चाहिए यानी की हमें व्यर्थ में बोलते रहना चाहिए जरुरत पड़ने पड़ने पर जरुरी और मीठी बोली ही बोलनी चाहिए”
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- कबीर कहते हैं की एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवो के निचे दब जाता हैं। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितना असहनीय पीड़ा होती हैं!”
अर्थ- जो सच्चे संत, साधु या महात्मा होते हैं वो कभी भी अपनी संतई अर्थात अपना सात आचरण अपना धर्म नहीं छोड़ते चाहे भले ही करोड़ो असंत(अधर्मी जो संत या साधू नहीं हैं अज्ञानी आदि) मिले। उसी तरह जिस तरह पर विषैला साँप चन्दन पर बैठा रहता हैं फिर भी चन्दन को उसकी सांगत का असर नहीं पड़ता और वो अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।” Sant Kabir Das Ji Ke Dohe In Hindi.
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- इस संसार का यही नियम यही हैं की जो उदय हुआ हैं, उसका अस्त होगा ही। जो फूल खिलखिलाया हैं उसको मुरझाना ही हैं जो चुन-चुन कर दिवार बनाई गयी हैं वो एक ढह ही जायेगा गिर ही जायेगा जो इस संसार में आया हैं उसको तो जाना ही हैं यही विधि का विधान हैं”
अर्थ- “कबीर कहते हैं शरीर पंछी बन गया हैं मन जहाँ ले जाता हैं विषयों में वशीभूत होकर शरीर भी पंछी की भाति मन के पीछे उड़ता रहता हैं सही बात हैं जो जैसी हैं उसे वैसा ही फल की प्राप्ति होती हैं।”
Kabir Ke Dohe:- अर्थ-” तन का श्रृंगार करके कथित तन का योगी या साधु तो सब बनता हैं मन का जोगी बिरला यानी की दुर्लभ ही हो पाता हैं. साड़ी सिद्धियाँ आसानी से प्राप्त हो जाती हैं यदि कोई मन के चंचलता को वश में कर मन योगी हो जाये तो.” Kabir Ke Dohe.
अर्थ- “कबीर कहते हैं की उस धन को इकठ्ठा करो जो आगे चलकर भविष्य में काम आ जाये। सर पर बाँध कर धन की पोटली ले जाते इस संसार से किसी को नहीं देखा।”
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- “कबीर कहते हैं की संसार में रहते हुए न मोह-माया मरती हैं न मन की चंचलता या विषय भोग की कामना मरती हैं। इनकी इक्षा शांत करते-करते मरी मरी गया शरीर फिर भी न आशा मिटा न तृष्णा और ना ही कामना मिटा। कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।”
अर्थ- मानव जाती को समझाते हुवे कबीर दास कहते हैं की- “मन की इक्षाएं, कामनाएँ छोड़ दो उन्हें तुम अपने दम पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकले, तो रूखी-सुखी रोटी कोई न खाये।”
Kabir Ke Dohe:- अर्थ- ” जब मैं की भावना थी अर्थात अहम् या अहंकार का भाव था तब हरी प्राप्त नहीं हो सके अब हरी हैं मैं या अहम् या घमंड का भाव नहीं हैं अज्ञान का सारा अन्धेरा मिट गया जब मैंने अपने भीतर जल रहे दीपक का प्रकाश पाया। “
मर्म यह हैं की जब तक हमारे अंदर घमंड का अंधकार रहेगा तब तक हम ज्ञान के प्रकश रूपी हरी को नहीं प्राप्त कर सकते तो सर्वप्रथम प्रभु की प्राप्ति हेतु या सत्य का साक्षात्कार करने हेतु मैं या अहम् की भावना का लोप होना आवश्यक हैं मैंने नहीं किया प्रभु की कृपा से संभव हो यह भावना ही अहम् के भाव को ख़त्म करने का पहला मार्ग हैं. मैं सिर्फ माध्यम हूँ करता भरता सब प्रभु हैं.
अर्थ- कहते हैं -” अज्ञान की नींद में सोया क्यों पड़ा रहता हैं ? ज्ञान की जागृति को हासिल करने के लिए प्रभु का नाम लो। सजग होकर प्रभु ध्यान करो। वह दिन दूर नहीं जब तुम भी अपना पूरा पाँव पसार गहरी निद्रा में सो ही जाओगे – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का स्मरण करते क्यों नहीं?” Sant Kabir Ke Dohe In Hindi.
अर्थ- धीरे-धीरे देखते-देखते भले दिन या सुख का समय बीत गया, तुमने प्रभु से चित नहीं लगाया हिट नहीं बनाया नाम नहीं लिए उनकी भक्ति नहीं किया तो अब अंत समय आने पर पछताने से क्या होगा जब चिड़ियाँ चुग गई खेत यानी उचित समय सदुपयोग करना चाहिए।”
Sant Kabir Ke Dohe in hindi. |
अर्थ- “बदल पत्थर के ऊपर झिरमिर करके बरसने लगे, इससे मिटटी तो भीग कर सजल या मुलायम हो गई किन्तु पत्थर वैसा ही बना रहा” Sant Kabir Ke Dohe.
अर्थ- ” व्यर्थ में कहते और सुनते सभी दिन बित गए, पर यह उलझा मन कभी नहीं सुलझ पाया! कबीर कहते हैं की यह अभी भी होश में नहीं आता हैं अपनी चेतना को जागृत नहीं करता हैं आज भी उसी अवस्था में जिस अवस्था में पहले दिन था”
अर्थ- कबीर उस परम सत्य को बतलाते हुवे कहते हैं की -” वह एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब हमें अपने सभी सगे-सम्बन्धी से इस दुनिया से बिछुड़ना पड़ेगा, हे राजा राणा और छत्रपति साप सभी अभी से सावधान क्यों नहीं हो जाते।”(hindi kabir ke dohe).
अर्थ- कबीर कहते है की -“जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा नहीं, चख कर स्वाद नहीं लिया, वह उस पहुना अर्थात अथिति सामान हैं जो सुने निर्जन घर में जैसे आता हैं वैसे ही चला भी जाता हैं उसे कोई स्वागत, सेवा, मेवा-मिष्ठान, आदर-सत्कार प्राप्त नहीं होता।”
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- मान-सम्मान, महानता का बातें, प्रेम रस, गौरव गुण तथा स्नेह – सब बाढ़ में बह जाते हैं जब किसी मनुष्य से कुछ देने के लिए कहा जाता हैं.
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- जो जाता हैं उसे जाने दो, तुम अपनी स्थिति को, दशा को न जाने दो, यदि तुम अपने स्वरुप में बने रहे तो केवट की नाव की तरह अनेक लोग तुमसे आकर मिलेंगे।”
अर्थ-“मानव जन्म पाना बहुत ही दुर्लभ हैं, यह शरीर बार-बार नहीं मिलता, जो फल वृक्ष से निचे गिर पड़ता हैं वह पुनः उसकी डाल पर नहीं लगता।”
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- “यह शरीर कच्चा घड़ा समान हैं जिसे तू साथ लिए फिरता हैं या घूमता हैं, जरा सी धक्का लगने पर यह टूट-फुट जायेगा कुछ भी बच नहीं पाएगा हाथ में कुछ भी नहीं जायेगा।
अर्थ- अहंकार बहुत ही बुरी वस्तु हैं. हो सके तो इससे निकल कर भाग जाओ. मित्र, रुई में लिपटी इस अग्नि-अहंकार को मैं कब तक अपने पास रखूँ ?
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं- प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पड़ा – जिससे अंतरात्मा तक भीग गई, आस-पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया, खुश हाल हो गया, यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव हैं! हम सभी प्रेम में क्यों नहीं जीते।”
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- जिनके ह्रदय में न तो प्रीत हैं और न प्रेम का स्वाद, जिनकी जिह्वा पर राम का नाम नहीं रहता, वे मनुष्य इस संसार में उत्पन्न हो कर भी व्यर्थ हैं, प्रेम जीवन की सार्थकता हैं, प्रेम रस में डूबे रहना जीवन का सार हैं.
अर्थ- घर बहुत दूर हैं रास्ता बहुत लम्बा हैं साथी ही बहुत खतरनाक और भयानक हैं और उसमे अनेक लुटेरे ठग बैठे हैं, हे सज्जनों! कहो, भगवान् का दुर्लभ दर्शन कैसे प्राप्त हो? संसार में जीवन कठिन हैं,
अनेक अवरोध और विप्पतियाँ हैं, उनमे पद के हम भरमाये रहते हैं, बहुत से आकर्षण हमें अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं, हम अपना लक्ष्य इन भूलभुलैया में पड़ कर भूल जाते हैं फिर अमूल्य हरी का कैसे दीदार किया जा सकेगा यह असंभव हैं.
अर्थ- इस शरीर को दीपक बना लूँ, उसमे प्राणों की बत्ती डालूँ और रक्त से तेल की तरह सींचूँ, इस तरह दीपक जलाकर मैं अपने प्रिय के मुख का दर्शन कब कर पाउँगा? ईश्वर से लौ लगाना, उसे पाने की कामना करना उसकी भक्ति में तन-मन को लगाना एक साधना हैं तपस्या हैं- जिसे कोई विरला ही कर पाता हैं! Kabir Das Ke Dohe In Hindi
अर्थ- कबीर कहते हैं की -” हे प्रभु आप इन दोनों नयनो की राह से मेरे अंदर आ जाइये और फिर मैं अपने इन नयनों को बंद कर लूँ। फिर न तो मैं किसी दूसरे को देखूँ और न ही किसी और को तुम्हें देखने दूँ!”
अर्थ- कबीर कहते हैं की जहाँ सिंदूर की रेखा हैं, वहाँ काजल नहीं दिया जा सकता, जब नयनो में राम बसे रहे तो वंहा कोई और के निवास कहाँ कर सकता हैं जगह ही नहीं बचेगा कहा समायेगा।” Kabir Das Ke Dohe.
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं की समुद्र की सीपी प्यास रटती रहती हैं, स्वाति नक्षत्र की बूँद की आशा लिए हुवे समुद्र की अपार जलराशि को तिनके के बराबर समझती हैं, हमारे मन में जो पाने की ललक या कामना हैं जिसे पाने की लगन हैं, उसके बिना सब निस्सार हैं,
अर्थ- कबीर यह कहते हुवे लिखते हैं की-” जिन घरो में सभी सप्त स्वर गूंजते थे, पल-पल उत्सव मनाए जाते थे, वे घर भी अब खाली पड़े हैं, उनपर कौए बैठने लगे हैं, हमेशा एक सा समय तो नहीं रहता हैं, जहाँ खुशिया थी वहाँ गम छा जाता हैं, जहाँ हर्ष था वहाँ अब विषाद भी डेरा डाल सकता हैं।” परिवर्तन ही संसार का नियम हैं यही शुरू से चला आ रहा हैं.
Kabir Ke Dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं की-” ऊँचे-ऊँचे भवनों और महलों को देख कर क्या गर्व करते हो? कल या परसो समय आने पर यह सभी भूमि पर लेट जायेंगी अर्थात ख़त्म हो जाएँगी धीरे-धीरे नष्ट हो जाएँगी और ऊपर घास उगने लगेगी, वीरान, सुनसान हो जाएगा जो अभी, हँसता खिलखिलाता आँगन हैं इसीलिए कभी अहम् घमंण्ड या गर्व ना करो सच्चाई को आत्मसात करो.
अर्थ- जन्म और मरण का विचार करके, हमें बुरे कर्मो का त्याग का देना चाहिए, जिस मार्ग पर तुझे चलना हैं उसी मार्ग का स्मरण कर, उसे ही याद रख, उसे ही सुन्दर बनाएंगे उसे ही सँवारे। (kabir ke dohe).
kabir das ke dohe hindi |
अर्थ- कबीर कहते हैं की -” रखवाले के बिना बाहर से चिड़ियों ने खेत खा लिया, कुछ खेत अब भी बचा हैं, यदि सावधान हो सकते हो तो हो जाओ, उसे बचा लो, जीवन में असावधानी के कारन मनुष्य सबकुछ गँवा देता हैं, उसे खबर भी नहीं लगाती, नुक्सान हो चुका हैं,
यदि हम सावधानी बरतते तो कितना कुछ या सबकुछ बचा सकते हैं, इसीलिए जागरूक होना हैं प्रत्येक मनुष्य को, Kabir Ke Dohe.
अर्थ- हिरे की परख जौहरी को हैं, शब्द के सार को साधू और सज्जन लोग परख या पहचान जाते हैं, कबीर कहते हैं साधू, असाधु परख उसका मत अधिक गहन गंभीर हैं!”
अर्थ- किसी मनुष्य को बढ़िया से ठीक-ठाक एक बार ही परख लो तो उसे बार-बार परखने की आवश्यकता न होगी. रेत अगर सौ बार भी छाना जाए तो भी उसकी किरकिराहट दूर न होगी – इसी प्रकार मुर्ख दुर्जन को बार-बार भी परखो तब भी अपनी मूढ़ता दुष्टता से भरा वैसा ही मिलेगा। किन्तु सही व्यक्ति की परख एक बार में जाती हैं!”
अर्थ- प्रेम खेत में उपजा नहीं करता हैं ऑर्डर ना ही बाजार में बेचीं जाने वाली कोई वस्तु हैं यदि प्रेम पाना हैं तो आत्म बलिदान से ही प्रेम की प्राप्ति होगी। राजा हो या प्रजा हो जिसे भी प्रेम की रूचि हो वह अपना बिलादन में सीस दे जाये और प्रेम ले जाये। प्रेम कठिन परिश्रम और त्याग से प्राप्त होने वाला दुर्लभ हैं बाजार में खरीदने वाला बिकने वाल कोई वस्तु मात्र नहीं!
अर्थ- कबीर कहते हैं की सच्चा साधू वही हैं जो दूसरे के दर्द को दूसरे की पीड़ा को समझ सके जो दूसरे की पीड़ा को नहीं समझाता वो निष्ठुर हैं दुष्ट हैं.”
Kabir Ke dohe :- अर्थ- कबीर कहते हैं की यदि चन्दन के वृक्ष के पास नीम जैसा कड़वा वृक्ष हो तो वह भी चन्दन की संगती के कारण उसका कुछ प्रभाव प्राप्त कर लेता हैं, लेकिन बांस अपनी लम्बाई या बड़ेपन के कारण डूब जाता हैं, इस तरह तो किसी को भी नहीं डूबना चाहिए, संगती का अच्छा प्रभाव ग्रहण करना चाहिए, अपने झूठी शान या झूठी गर्व में ही नहीं रहना चाहिए।
अर्थ- “मुर्ख का सांगत या साथ मत कीजिये मुर्ख इस पानी रूपी समाज में लोहे सामान हैं जो जल में तैर नहीं पाता डूब जाता हैं, संगती का प्रभाव इतना पड़ता हैं की आकाश से एक बूँद केले के पत्ते पर गिर कर कपूर, सिप के अंदर गिर और सांप के मुख में पड़कर विष बन जाती हैं”
अर्थ- “यदि कार्य उच्च कुल वाला ना हो तो उच्च कुल में जन्म लेने का क्या फायदा, सोने का कलश भी निंदनीय हैं यदि उसमे शराब या सुरा भरा हुआ हैं उसे सभी साधुजन निंदनीय ही कहते हैं.”
अर्थ- “कबीर इस दोहे में कहते हैं की -“साधू की संगती कभी निष्फल नहीं होती, चन्दन का वृक्ष यदि छोटा या बावना (वामन -बौना) भी होगा तो उसे कोई नीम का पेड़ नहीं कहता हैं. वह अपने चारो तरफ चन्दन की भाँती मधुर खुशबु ही बिखेरेगा।”
अर्थ-” मन को मार डाला, ममता भी समाप्त हो गई, अहंकार सब नष्ट हो गया, जो योगी या साधू था वह तो यहाँ से रमता हुआ चला गया, अब उसके आसन पर उसकी भस्म या यश रूपी विभूति पड़ी रह गई।”
अर्थ- ” कबीर कहते हैं की ऐसे वृक्ष के निचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो, जिसकी छाया शीतल हो, फल सघन हो और जहाँ पंछी कलरव करते हो फुदकते हो। ” Kabir Ke Dohe.
अर्थ-” शरीर कच्चा अर्थात नश्वर हैं, मन चंचल हैं परन्तु तुम इन्हे स्थिर मान कर काम करते हो, इन्हें अनश्वर मानते हो मनुष्य जितना इस संसार में रमकर निडर हो कर भयमुक्त होकर घूमता हैं, मगन रहता हैं, उतना ही काल(अर्थात मृत्यु ) उस पर हँसता हैं! मृत्यु पास हैं यह जानकार भी इन्सान अनजान बना रहता हैं” Sant Kabir Ke Dohe.
अर्थ- “अब पानी भरने जाए तो घड़ा जल में रहता हैं और भरने पर जल घड़े के अंदर आ जाता हैं, इस तरह देखे तो, बाहर भीतर पानी ही रहता हैं, पानी की ही सत्ता हैं, जब घड़ा फुट जाए तो उसका जल, जल में ही मिल जाता हैं, अलगाव नहीं रहता, ज्ञानीजन इस तथ्य को कह गए हैं! Kabir Ke Dohe
आत्मा-परमात्मा दो नहीं एक ही हैं, आत्मा परमात्मा में और परमात्मा आत्मा में विराजमान हैं, अंततः परमात्मा की ही सत्ता हैं घड़े सामान यह श्री भी विलीन हो जाता हैं लेकिन परमात्मा की सत्ता रहता हैं.
अर्थ- ” जब एक फरेबी को या झूठे मनुष्य को अपने जैसा कोई दूसरा फरेबी और झूठा मिलता हैं तो दोनों के बिच स्नेह प्रेम दोगुना बढ़ जाता हैं, पर जब एक झूठे व्यक्ति को किसी सच्चे मनुष्य से पाला पड़ता हैं तो सारा प्रेम या स्नेह टूट जाता हैं.
अर्थ- “ईश्वर में बहुत गुण हैं एक भी अवगुण नहीं, जब हम अपने ह्रदय की खोज करते हैं तब समस्त अवगुण अपने अंदर ही पाते हैं.” Sant Kabir Ke Dohe.
साथ ही यदि आपके पास ऐसे ही हिंदी भाषा में कोई निबंध हो तो आप उसे हमारे साथ शेयर कर सकते हैं उसे हम आपके नाम और फोटो के साथ इस वेबसाइट पर जरूर पब्लिश करेंगे. संत कबीर दास के दोहे हिंदी मे। Kabir Ke Dohe, Sant Kabir Das Ke Dohe In Hindi.
इन्हे भी पढ़े, कबीर बानी – अच्छीखबर यूटूडे पर सुने कबीर वाणी – reckontalk, कबीर की विकिपेडिया पढ़े