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Kedarnath Temple से जुडी रोचक और रहस्यमयी कहानियाँ।

Kedarnath Temple :हिमालय सनातन काल से ही ऋषि-मुनि का निवास स्थान तथा तपस्या स्थली रही हैं। तपस्वियों के साथ साथ महादेव का भी निवास स्थान हिमालय ही हैं। हिमालय से ही भारत की प्रमुख नदियों का स्त्रोत हैं जो भारत के साथ साथ अनेक देशो के भूमि को उपजाऊ बनाती हैं। हिन्दू धर्म के प्रमुख धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, Kedarnath Temple तथा बद्रीनाथ आदि हिमालय में ही स्थित हैं।

संदौर्य भरी वादियों से भरा हिमालय यात्रा स्वतः आनंद भरा हैं। चारो ओर मनोहारी दृश्य देखकर हृदय आनंद विभोर हो उठता हैं। हिमालय के इन्ही सब विशेषताओं के कारण  प्राचीन समय से ही हिमालय को देवभूमि के नाम से सम्बोधित किया जाता रहा हैं।


हिमालय पर्वत की गोद में बसा केदारनाथ मंदिर की बड़ी महिमा हैं। हिन्दू धर्म के श्रद्धालओं के जीवन का लक्ष्य माने जाने वाले चारो धामों तथा पञ्चकेदार धामों में से यह मंदिर एक हैं। इस मंदिर में करोडो भक्तो का बहुत आस्था और विस्वास हैं। प्रत्येक साल केदारनाथ शिवलिंग के दर्शन करने और इस केदारनाथ मंदिर के चमत्कार देखने आते हैं।

2013 में आई भयंकर तबाही में मंदिर के आसपास का सारा क्षेत्र तबाह हो गया लेकिन उस विकराल तूफान और बाढ़ में भी केदारनाथ मंदिर अपने पुरे शान के साथ खड़ा रहा। यह पुरे विश्व के लिए सबसे बड़ा चमत्कार का विषय हैं। आज भी लोग इस चमत्कार को भगवान् द्वारा ही किया गया बताते हैं। यह महादेव की शक्ति ही थी जिसने प्रलय के समय में भी केदारनाथ मंदिर को बचाये रखा।

Kedarnath Temple
Kedarnath Temple

भारत में प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में एक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भी हैं जिसे केदारनाथ शिवलिंग भी कहते हैं। ज्योतिर्लिंग शिवलिंग का समानर्थी शब्द हैं। शिवलिंग सृष्टि निर्माण से पहले परमात्मा शिव का ज्योति रूप स्तम्भ हैं जो अनंत हैं जिसका प्रारम्भ और अंत विष्णु और ब्रह्मा जैसे महान योगी भी हजारो सालो मेहनत करने के बाद भी नहीं लगा पाए थे। वही अनंत शिव का ज्योतिरूप स्तम्भ ही शिवलिंग हैं। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पर ही केदारनाथ मंदिर का निर्माण हुआ। केदारनाथ मंदिर से जुड़े इतिहास पर आज हम इस लेख में प्रकाश डालेंगे।


 

Kedarnath Temple History 

भारत के उत्तरखंड राज्य में रुद्रप्रयाग जिले में गंगन चुम्बी पर्वतो के मध्य केदारनाथ मंदिर हैं। केदारनाथ मंदिर उत्कृष्ट कला का नमूना हैं। केदारनाथ मंदिर से जुडी कई पौराणिक कहानिया हैं जिसमे से एक कहानी महाभारत कालीन हैं। केदारनाथ मंदिर का इतिहास महाभारत में मिलता हैं। कहा जाता हैं इस जगह पर को पांडवो ने केदारनाथ शिवलिंग की पूजा अर्चना की थी उसके बाद पांडवो के  वंशज जन्मेजय ने इस मंदिर का निर्माण  कराया था।

काल की गणना की जाए तो यह कलयुगाब्द 5118 चल रहा हैं यानी की आज से 5118 वर्ष पहले द्वापरयुग समाप्त हुआ था और परीक्षित काल से ही कलयुग आरम्भ हो गया था। केदारनाथ मंदिर के निर्माण का पहला इतिहास लगभग 5000 वर्ष पहले या द्वापर युग का हैं। बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

केदारनाथ मंदिर में हजारो वर्षो से अनवरत रूप से पूजा-अर्चना चल रहा हैं तथा लाखो भक्त केदारनाथ बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं।

भारत के सबसे प्रसिद्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारम्बार यात्रा की वजह से साथ ही सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की वजह से 2013 के बाद से केदारनाथ मंदिर पर टूरिस्टो का आवागमन बढ़ा हैं। चार धाम गए बिना मुक्ति नहीं मिलती ऐसी एक विश्वासपूर्ण मान्यता हिन्दू धर्म में हजारो सालो से रही हैं। उन चार धामों में केदारनाथ धाम भी प्रमुख हैं। केदारनाथ धाम करोड़ो भक्तो के हृदय में हजारो सालो से हैं और केदारनाथ धाम के दर्शन की अभिलाषा भी हरपल रहती हैं।

wikipedia – केदारनाथ मंदिर 

 हिमालय की गोद में बसे होने के कारण पुरे वर्ष भर केदारनाथ मंदिर दर्शन के लिए खुला नहीं रहता हैं। प्रतिकूल जलवायु के कारण केदारनाथ मंदिर वर्ष में आठ महीने अप्रैल से नवम्बर तक ही खुलता हैं। बाकी के चार महीने बहुत ज्यादा हिमपात होने के कारण केदारनाथ मंदिर बंद रहता हैं। केदारनाथ मंदिर में स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन हैं।


वास्तुकला :

Kedarnath Temple architecture
Kedarnath Temple architecture
केदारनाथ मंदिर चारो तरफ से मनोरम दृश्यों से घिरा हुआ हैं। मंदिर के चारो तरफ गंगन चुम्बी पहाड़ो को देखकर और ठंडी ठंडी हवा के झोकों से शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार होता हैं। इन मनोरम दृश्यों के बिच केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला के सुंदरता को देखकर हृदय परम आनंद से भर जाता हैं। मंदिर के आस पास चारो ओर शुद्ध तथा आध्यात्मिक वातावरण व्याप्त हैं। केदारनाथ मंदिर वास्तुकला का अद्भुत और आकर्षक नमूना हैं।

केदारनाथ मंदिर वास्तुकला का एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में से एक हैं। यह मंदिर पत्थरो द्वारा कत्यूरी शैली में बनाई गई हैं। केदारनाथ भव्य होने के साथ साथ आकर्षक भी हैं। केदारनाथ मंदिर छः फिट ऊचे पत्थर के चबुतरनुमा आधार पर बनाया गया हैं। मण्डप, गर्भगृह और प्रदक्षिणा पथ मंदिर के प्रमुख भाग हैं। मंदिर के गर्भगृह में बैल के कूबड़नुमा आकृति में शिवलिंग स्थापित हैं। शिवलिंग स्वयंभू हैं। सम्मुख की ओर भक्त-गण जल-पुष्पादि चढ़ाते हैं दूसरी ओर भगवान् को घृत अर्पित कर दोनों हाथो से बाँहों में भर कर पूजा-अर्चना करते हैं, अपना कष्ट कहते हैं और आशीर्वाद मानते हैं। मंदिर के जगमोहन में द्रौपदी सहित पांचो पांडवो की विशाल मूर्तियाँ स्थापित हैं। मन्दाकनी नदी के किनारे पर्वत शिखरों के पाद में स्थित केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह में घना अँधेरा रहता हैं। दीपक के रौशनी में ही भगवान् शंकर जी का दर्शन संभव हो पता हैं।

सभी शिवालयों की तरह गर्भगृह में स्थापित अपने स्वामी महादेव को एकटक देखते भोलेनाथ के वाहन और परम भक्त नंदी बैल की मूर्ति भी बाहर प्रांगण में स्थित हैं। मंदिर के बड़े घुसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ लिखा भी हैं जिसे स्पष्ट रूप से समझ पाना अभी तक मुश्किल बना हुआ हैं।

मंदिर के पीछे कई कुंड हैं जिनमे आचमन तथा तर्पण किया जा सकता हैं। केदारनाथ मंदिर चौरीबारी हिमनंद कुंड से निकलती मंदाकनी नदी के समीप ही स्थित हैं। केदार नाथ मंदिर के पास ही कुछ कदमो पर अदि गुरु शंकराचार्य का समाधी स्थल भी हैं।

1882 में दी हिमालयन गजेटेरियन के अनुसार अदि गुरु शंकराचार्य से पहले भी साधु-महात्माओ द्वारा मंदिर में पूजा-पाठ होता रहा हैं। केदारनाथ मंदिर की संरचना साफ़ अग्रभाग के साथ केदारनाथ मंदिर एक भव्य भवन हैं जिसके दोनों तरफ पूजन मुद्रा में पत्थर की सुन्दर मूर्तियाँ हैं। पीछे भूरे पत्थर से निर्मित टॉवरनुमा गगनचुम्बी गुम्बद हैं। इसके गर्भगृह के अटारी पर सोने की सुन्दर कलाकृति वाली परत चढ़ी हैं। मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के लिए पिंडनुमा पक्के मकान हैं। जबकि पुजारी या पुरोहित मंदिर के दक्षिणी दिशा की ओर भवन में रहते हैं। शिवलिंग के इस प्रकार से त्रिकोणात्मक बैल के पीठ स्वरुप के संरचना के पीछे एक महाभारत कालीन प्रेरक प्रसंग भी हैं।

केदारनाथ मंदिर से जुड़ी प्रेरक कहानी 

द्वापरयुग में महाभारत का युद्ध ख़त्म होने के बाद पांडवो ने भ्रातृहत्या के पाप से उद्धार पाने के लिए भोलेनाथ का दर्शन और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे जिसके लिए सभी पांडव भोलेनाथ की नगरी बनारस गए। पांडवो की परीक्षा लेने के लिए भोलेनाथ बनारस को छोड़ कर चले गए। पांडव जहाँ-जहाँ जाते महादेव वहा से कही और चले जाते। लेकिन पांडव भी धुन के पक्के थे वो पूरी तन्मयता से महादेव की खोज में उनके पीछे चलते रहे।

भोले नाथ को खोजते-खोजते पांडव हिमालय आ गए। भगवान् शंकर हिमालय में केदार नामक स्थान पर छिप गए। अपने धुन के पक्के पांडव पीछा करते-करते केदार भी पहुँच गए। केदार में भगवान् शंकर बैल का रूप धारण कर पशुओ के झुण्ड में जा मिले और सभी गायो बैलो की तरह झुण्ड में घूमने लगे।  पांडवो को इस बात का संदेह हो गया। तब पांडवो में से भीम ने अपने शरीर को बहुत ही विशालकाय बना कर अपना पैर दोनों पहाड़ो पर रख दिया बाकी सारे गाय-बैल का झुण्ड तो भीम के पैर के निचे से निकल गया लेकिन शिवरूपी बैल को भीम के पैर के  निचे से निकलना अच्छा नहीं लगा।

पांडवो ने बैल को देखते समझ गए की वो कोई साधारण बैल नहीं साक्षात् महादेव हैं।

सभी पांडव जैसे ही उस शिवरूपी बैल के पास बढ़े की महादेव जमीन के अंदर अन्तर्ध्यान होने लगे तभी भीम ने दौड़ कर शिवरूपी बैल के कूबड़ भाग को अपने दोनों हाथो से पकड़ा तब तक महादेव धड़ से निचे पूरा अंतर्ध्यान हो चुके थे। पांडवो के इस तन्मयता और धैर्य को देखकर भगवान् भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुये और पांडवो को भ्रातृहत्या के पाप से छुटकारे का आशीर्वाद दिया साथ ही उस जगह पर उसी त्रिकोणात्मक  रूप में विराजमान हो गए और तबसे अब तक अपने भक्तो को पापो से छुटकारे का आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं।

 
पञ्चकेदार धाम की उत्पत्ति की कहानी भी इसी कहानी से शुरू होती हैं। मान्यता हैं की जब बैल के रूप महादेव  जमीन में अंतर्ध्यान हुवे तो उनके धड़ से ऊपर का भाग नेपाल के काठमांडू में निकला जिसे पशुपतिनाथ कहा जाता हैं जहाँ आज भव्य और प्रसिद्द पशुपतिनाथ मंदिर हैं।  महादेव की भुजाएँ तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में तथा नाभि मद्महेश्वर में प्रकट हुवे जहाँ सभी जगह भव्य मंदिर हैं। इन्ही चार और एक केदारनाथ को मिलाकर पञ्चकेदार धाम का निर्माण होता हैं।
 

kedarnath Temple दर्शन समय

Kedarnath Temple
Kedarnath Temple

केदारनाथ मंदिर के कपाट मध्य अप्रैल व मेष संक्रांति से 15 दिन पूर्व खुलता हैं और नवंबर में अगहन संक्रांति के निकट बलराज रात्रि के चारो पहर की विधिवत पूजा कर भैया दूज के दिन प्रातः चार बजे श्री केदार बाबा को घृत, कमल और वस्त्रादि अर्पित कर कपाट को बंद कर दिया जाता हैं। अप्रैल से लेकर नवंबर तक मंदिर के कपाट दर्शन के लिए तय समनुसार खुले रहते हैं। आइये जानते हैं  श्री केदारनाथ मंदिर में दर्शन का समय

  • केदारनाथ मंदिर भक्त गण के लिए प्रातः 6 बजे खोल दिया जाता हैं।
  • दोपहर तीन बजे से पांच तक विशेष पूजा होती हैं तब तक मंदिर दर्शन के लिए बंद रहती हैं।
  • पुनः 5 बजे शाम में भक्त-गणो के दर्शन के लिए खोला जाता हैं।
  • पाँच मुख वाली भगवान् शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 से 8:30 बजे तक आरती होती हैं।
  • रात्रि 8:30 बजे केदारनाथ मंदिर बंद कर दिया जाता हैं।
  • शीतकाल में केदारघाटी बर्फ से ढक जाती हैं। इसीलिए नवंबर से मध्य अप्रैल तक मंदिर बंद रहता हैं।

चार धामों में से एक बद्रीनाथ के भी दर्शन का बहुत ही महात्मय हैं। मान्यता है की जो भी व्यक्ति बिना केदारनाथ के दर्शन किये बद्रीनाथ जाता हैं उसकी यात्रा निष्फल मानी जाती हैं अतः उसका चार धाम यात्रा को पूर्ण करने हेतु केदारनाथ का आशीर्वाद लेना आवश्यक होता हैं। केदारनाथ सहित बद्रीनाथ का दर्शन समस्त पापो से छुटकारा दिलाने वाला और मोक्ष  प्रदान करने वाला माना जाता हैं।

चमत्कारी भीम शिला

कहा जाता हैं की हिमयुग के समय केदारनाथ मंदिर हजारो सालो तक बर्फ में ढका रहा। हजारो सालो तक चारो तरफ से बर्फ से घिरे होने के बाद भी केदारनाथ मंदिर के भवन संरचना में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया। बड़े ही चमत्कारी रूप से हिमयुग के समाप्त होने के बाद भी मंदिर सकुशल रूप में था।
Kedarnath Temple Bhim Shila
Kedarnath Temple Bhim Shila
2013 में आई भयंकर बाढ़,तूफान में जहा हजारो लोग मारे गए बड़े से बड़े भवन तूफ़ान और बाढ़ में तिनका की तरह उड़ या बह गए वही केदारनाथ मंदिर अडिग खड़ा रहा। केदारनाथ के चारो तरफ मन्दाकिनी नदी प्रलय का तांडव कर रही थी बादल फटने की वजह से कभी न रुकने वाला घनघोर मूसलाधार बरसात में चमत्कारी रूप से एक भीमकाय विशाल पत्थर मंदिर के ठीक पीछे मंदिर का ढाल बनके न जाने कहा से आकर रुक गया और पहाड़ो से मंदिर की तरफ तीव्र वेग से बढ़ रहे जल और पत्थरो के प्रवाह को मंदिर पर जाने से  रोकता रहा।

इस विशालकाय पत्थर की वजह से उस भयंकर प्रलयंकारी समय में भी केदारनाथ मंदिर अपने पुरे स्वाभिमान के साथ खड़ा रहा। इस विशालकाय पत्थर ने एक पूजनीय कार्य किया हैं इसीलिए भक्त-गण केदारनाथ के साथ भीमशिला से प्रसिद्ध इस पत्थर की भी पूजा अर्चना कर अपना धन्यवाद और आदर समर्पित करते हैं।

चार धाम – बद्रीनाथ , द्वारका, जगन्नाथपूरी और रामेश्वरम

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