सत्संग की अनमोल बातें: महापुरुषो ने जिस तत्व को, आनंद को प्राप्त कर लिया हैं उस आनंदकी प्राप्ति सभी जान-मानस को हो जाय, ऐसा उनका स्वाभाविक प्रयास रहता हैं। उसी बात को लक्ष्य में रखकर उनकी सभी चेष्टाएँ होती हैं। इस बात की उन्हें धुन सवार हो जाती हैं। उनके मन में यही लगन रहती हैं कि किस प्रकार मनुष्यों का व्यवहार सात्त्विक हो, स्वार्थरहित हो, प्रेममय हो, दैनिक जीवन में शांति-आनंद का अनुभव हो और ऊँचे-से-ऊँचे आध्यात्मिक लाभ हो।इसी दिशा में उनका कहना, लिखना, एवं समझाना होता हैं।
समय-समय महापुरुषों द्वारा सत्संग किया जाता रहा हैं। महापुरुषों के मुखसे अमृतमय अमूलय वचन सुनने के बॉस जिन्हे हम काम में लावे तो हमारे गृहस्थ जीवन में बड़ी शांति मिल सकती हैं। हमारे व्यापर का सुधार हो सकता हैं , उच्चकोटि का व्यवहार हो सकता हैं तथा उन बातो को काम में लाकर हम गृहस्थ में रहते हुवे व्यपार करते हुए भगवद्प्राप्ति कर सकते हैं। ऐसे समझने में सरल, उपयोगी, अमूल्य वचन बहुत कम उपलब्ध होते हैं।हमें आशा हैं की पाठकगण इन वचनो को ध्यान से पढ़कर मनन करेंगे एवं जीवन में उतारने का प्रयास करके विशेष आध्यात्मिक लाभ उठायेंगे।
हर हर महादेव _/\_
समय-समय महापुरुषों द्वारा सत्संग किया जाता रहा हैं। महापुरुषों के मुखसे अमृतमय अमूलय वचन सुनने के बॉस जिन्हे हम काम में लावे तो हमारे गृहस्थ जीवन में बड़ी शांति मिल सकती हैं। हमारे व्यापर का सुधार हो सकता हैं , उच्चकोटि का व्यवहार हो सकता हैं तथा उन बातो को काम में लाकर हम गृहस्थ में रहते हुवे व्यपार करते हुए भगवद्प्राप्ति कर सकते हैं। ऐसे समझने में सरल, उपयोगी, अमूल्य वचन बहुत कम उपलब्ध होते हैं।हमें आशा हैं की पाठकगण इन वचनो को ध्यान से पढ़कर मनन करेंगे एवं जीवन में उतारने का प्रयास करके विशेष आध्यात्मिक लाभ उठायेंगे।
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सत्संग की अनमोल बातें
आदि गुरु शंकराचार्य आत्मषटकम |
- ईश्वर की निरन्तर स्मृति, स्वार्थ का त्याग तथा सबमें समभाव रखना चाहिए।
- हर समय भगवान् की स्मृति रखने से स्वार्थ का त्याग और समभाव अपने-आप हो जायगा।
- यदि कहो समय भगवान का स्मरण कैसे हो ? इसके लिए यह समझना चाहिए की हैट समय भगवान की स्मृति के समान और कोई चीज नहीं हैं तथा भगवान् की स्मृति जिस समय छूट जाय, उस समय यदि प्राण चले जायेंगे तो बड़ी भारी दुर्गति होगी।
- परमात्मा की प्राप्ति के लिए सबसे बढ़िया औषधि हैं परमात्मा के नाम का जप और स्वरुप का ध्यान। जल्दी से जल्दी कल्याण करना एक क्षण भी परमात्मा का जप-ध्यान नहीं छोड़ना चाहिए। निरंतर जप-ध्यान होने के लिए सहायक हैं विश्वास, विश्वास होने के लिए सुगम उपाय हैं-- सत्संग ईश्वर से रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान हैं, सब कुछ कर सकता हैं।
- किसी भी प्रकार से हो - चाहे योग से, चाहे भक्ति से, चाहे ज्ञान के साधन से-- अज्ञान हटाकर ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता हैं। वह ज्ञान भक्ति से हो सकता हैं, ज्ञानमार्ग के साधन से भी हो सकता हैं।
- जिस काम के लिए हम आये हैं, उसको पूरा कर लेनी ही सबसे असली काम हैं। हम आये हैं परमात्मा की प्राप्ति के लिए , पहले परमात्मा की प्राप्ति कर लेनी चाहिए और दूसरी तरफ देखने की भी जरुरत नहीं हैं। एक क्षण भी दूसरे काम में समय नहीं लगाना चाहिए।
- काल का कोई भरोसा नहीं। पता नहीं किस क्षण आ जाय, इसीलिए जल्दी-से-जल्दी तेजी के साथ साधन करके काम बना लेना चाहिए। सबसे बढ़कर संसाधन परमात्मा के नाम का जप और स्वरुप का ध्यान हैं। जिस नाम, स्वरुप में रूचि हो उसी का जप-ध्यान करना चाहिए। इन्हें भी पढ़े:- सनातन धर्म कितना पुराना हैं। गीता प्रथम अध्याय इन हिंदी
- जप-ध्यान की सभी साधनो में जरुरत हैं - चाहे ज्ञानमार्ग हो, चाहे भक्तिमार्ग हो, चाहे योग का मार्ग हो।
- भगवान् कहते हैं -- तूँ मेरे में मन लगा दे, मेरे में मन लगाने से भारी-से-भारी संकटो से तर जायेगा।
- परमात्मा के नाम का जप और स्वरुप का ध्यान करते हुए ही समय व्यतीत करना चाहिए। एक क्षण भी इस कार्य को नहीं छोड़ना चाहिए।
- विघ्न डालने वाले तो हमेशा ही विघ्न डालते ही रहते हैं, किन्तु अपने को उन विघ्नो से अटकना नहीं चाहिए, खूब जोर चाहिए।
- भगवान् की हमलोग पर बहुत कृपा हैं, जो मनुष्य-जन्म मिला। ऐसी कृपा होकर भी हम भगवान की प्राप्ति से वंचित रह जाए तो हमारे लिए यह लज़्ज़ा का विषय हैं, दुर्भाग्य की बात हैं।
- तुलसीदास जी कहते हैं -- ऐसा मौका पाकर भी जो भगवान् की प्राप्ति नहीं कर सका, वह मुर्ख निंदा का पात्र हैं।
सिख धर्म पहले गुरु गुरु नानक देव - साधू-महात्मा के पास उनकी परीक्षा करने के लिए नहीं जाना चाहिए और परीक्षा हो भी नहीं सकती।
- जिसका संग करने से अच्छे गन आयें, अच्छे आचरण हो, उसका संग करना चाहिए। अपने लिए वह महात्मा ही हैं।
- किसी के अवगुणो की तरफ न तो ध्यान देना चाहिए और न आलोचना करनी चाहिए।
- प्रश्न- श्रद्धा किस्मे करनी चाहिए ? उत्तर- जिसमे स्वार्थ नहीं हो, जिसकी चेष्टा दूसरों के हिट के लिए हो, उस महापुरुष में श्रद्धा रखनी चाहिए और परमात्मा में करनी चाहिए, शास्त्रो में करनी चाहिए, परलोक में करनी चाहिए। इन्हे भी पढ़े:- मात्र आठ साल की उम्र में याद कर लिए थे सभी वेद : आदि गुरु शंकराचार्य गुरुनानक देव का रामलला दर्शन और चमत्कारी जीवन की प्रेरक कहानियाँ।
- मनुष्य को विशेष करके स्वभाव को सुधारना चाहिए। स्वभाव के सुधार होने से आचरण का सुधार अपने आप होने लगता हैं।
- अन्तःकरण में वैराग्य हो जाये तो मन-इन्द्रियों का वाश में होना सहज हैं।
- वैराग्य पूर्वक मन-इन्द्रियों को रोकना बहुत अच्छी चीज हैं, वैराग्य मुक्ति या मोक्ष को देने वाला हैं।
- भक्ति मार्ग और ज्ञानमार्ग दोनों ही अच्छे हैं किन्तु मुकाबला करने पर भक्तिमार्ग सुगम हैं, इसमें गिरने की संभावना कम हैं।
- प्रश्न- वैराग्य किसको कहते हैं ? उत्तर:- वैराग्य का तात्पर्य हैं संसार में प्रीति नहीं होना।
- एक तरफ यदि हाथी आता हैं तथा दूसरी तरफ कुसंगी आता हैं तो हाथी के निचे दबकर मर जाना चाहिए। हाथी के निचे दबकर तो एक बार ही मरेगा पर कुसंगी का संग करने वाले को बारम्बार जन्मना-मरना पड़ेगा। जैसा संग करोगे वैसा रंग चढ़ेगा।
- आजसे ही साधन तेज करके आदत बदल देनी चाहिये, जल्दी ही लाभ उठा लेना चाहिए।
- भगवान् को हर समय याद रखने से अंतकाल में भगवान् की स्मृति रहती हैं। जो अंतकाल में भगवान् का स्मरण करता हुआ जाता हैं, वह परमगति को प्राप्त होजाता हैं। इसीलिए निरंतर भगवान् को याद रखना चाहिए।
- तात्विक विचार करते रहना चाहिए की मै कौन हूँ ? यह संसार क्या हैं ? परमात्मा क्या हैं ? इनका सम्बन्ध क्या हैं ? मै कहाँ से आया हूँ ? कहाँ जाऊंगा ? मेरा क्या कर्तव्य हैं ?यह विचार कर अपने अपने कर्तव्य पर तत्पर्य होकर तूल जाना चाहिए।
- परमात्मा से प्रार्थना करने से परमात्मा अपनी शक्ति दे सकते हैं, क्षण में असंभव को संभव बना सकते हैं। भगवान् के स्वरुप को बारम्बार याद करके मुग्घ होते रहना चाहिए।
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