Complete Mahabharat Ki Kahani : यह निबंध Mahabharat In Hindi भाषा में लिखा गया हैं. सम्पूर्ण महाभारत की कहानी पुरे विश्व में सबसे प्रसिद्ध ग्रंथो में एक हैं. महाभारत की उत्पत्ति वेद व्यास से हुई तथा इस ग्रन्थ का लेखन भगवान श्री गणेश ने किया हैं. महाभारत ग्रन्थ पुरे विश्व का सबसे बड़ा ग्रन्थ हैं.
महाभारत की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक हैं. महाभारत ग्रन्थ पर बहुत से शोध कार्य चल रहे हैं. महाभारत विश्व का सबसे उत्कृष्ट ग्रन्थ जिसमे निति-न्याय, धर्म-अधर्म, शस्त्र-शास्त्र, राजनीति, दर्शन आदि सभी विषयो का समावेश हैं. कहा जाता हैं की जो महाभारत में नहीं वो पुरे विश्व में नहीं. Mahabharat Ki Kahani
कुछ राजाओ ने कौरवो का साथ दिया तो कुछ ने पांडवो को न्याय दिलाने उनका साथ दिया. वही श्री कृष्ण पांडवो के साथ थे तो उनकी नारायणी सेना दुर्योधन के साथ युद्ध लड़ रही थी. दुर्योधन के पास पांडवो से ज्यादा सैन्यबल था फिर भी धर्मयुद्ध में अधर्म का साथ देने के कारण उसकी पराजय हुई और भीम की गदा के प्रहार से उसकी मृत्यु हुई. Mahabharat Ki Kahani.
द्वापरयुगमें हस्तिनापुर राज्य में एक प्रतापी राजा राज करते थे, जिनका नाम शांतनु था. शांतनु महाराज का पहला विवाह साक्षात् गंगा-माता से हुआ था. दोनों से आठ संतान हुवे थे सात पुत्रो को माता गंगा ने नदी में प्रवाहित कर दिया था. अंतिम आठवे संतान का नाम देवव्रत था. देवव्रत के जन्म के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा भगवान् परशुराम के सान्निध्य में हुई तत्पश्चात माता गंगा ने देवव्रत को शांतनु को सौप कर अंतर्ध्यान हो गई. देवव्रत महान ज्ञानी, महान बलशाली और न्याय प्रिये थे.
गंगा माता के जाने की वजह से महाराज शांतनु उदास रहने रहने लगे एक दिन वो नदी किनारे जा रहे थे तभी उन्होंने एक सुन्दर स्त्री को देखा उसकी सुंदरता देख कर महाराज शांतनु उस स्त्री पर मोहित हो गए और उन्होंने उस स्त्री से विवाह का प्रस्ताव रखा. वह स्त्री मत्स्यराज की पुत्री थी. जिनका नाम सत्यवती था.
महाराज शांतनु को यह वचन बिलकुल भी मान्य नहीं था इसलिए उन्होंने अस्वीकार कर दिया. लेकिन महाराज शांतनु बहुत उदास रहने लगे. देवव्रत धार्मिक और पितृभक्त थे. उन्होंने अपने पिता महाराज शांतनु के उदासी के कारणों को पता किया।
सत्यवती के पास जाकर एक भीष्म प्रतिज्ञा की, की वह कभी भी राजा नहीं बनेंगे और ना ही कभी विवाह करेंगे जिससे की उनकी आने वाली पीढ़ी भी राज गद्दी पर बैठ सके. आजीवन अखंड ब्रह्मचारी रहने के भीष्म प्रतिज्ञा ने देवव्रत को भीष्म नाम दिया बाद में जिन्हे भीष्मपितामह भी कहा जाने लगा.
भीष्म के इस प्रतिज्ञा से सत्यवती को विश्वास हो गया की अब उसका पुत्र और उनकी आने वाली पीढ़ी ही राजगद्दी पर बैठेगी नाकि भीष्म या उनकी आने वाली पीढ़ी और उन्होंने शांतनु महाराज से विवाह करने के लिए हामी भर दी.
जब देवव्रत के इस भीष्म प्रतिज्ञा का पता शांतनु महाराज को लगा तो वे अत्यंत दुखी हुवे और पिता के सुख के लिए हमेशा के लिए अपना सुख त्यागने वाले देवव्रत पर खुश भी हुवे और वरदान दिया की देवव्रत अपनी इक्षामृत्यु ही मरेंगे यानी इक्षा होगी तभी मरेंगे कोई और नहीं मार सकता.
विचित्रवीर्य की दो रानियाँ थी 'अम्बिका' और 'अम्बालिका'. अम्बिका और विचित्रवीर्य से एक पुत्र हुआ जिनका नाम 'धृतराष्ट्र' पड़ा, जो जन्म से ही अंधे थे. अम्बालिका और विचित्रवीर्य से भी एक पुत्र हुआ जिनका नाम 'पाण्डु' पड़ा.
पिता की मृत्यु के पश्चात् पाण्डु राजा बने क्युकी धृतराष्ट्र अंधे थे. पाण्डु के पांच पुत्र हुवे जो पांडव कहलाये वही धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र हुवे जो कौरव कहलाये. पति के अंधेपन के दुःख बाटने के लिए गांधारी ने भी आजीवन अपने आँखों पर पट्टी बांध ली थी.
पाँचो पाण्डवों 'युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव' में से युधिष्ठिर सबसे बड़े थे. इनकी दो माताए थी एक का नाम कुंती तो दूसरे का नाम माद्री था। कुंती के पुत्र युधिष्ठिर, भीम, और अर्जुन थे। माद्री के पुत्र नकुल और सहदेव थे.
कौरवों में सबसे बड़े दुर्योधन थे. इनकी माता गांधारी थी तथा मामा का नाम शकुनि था जो की गांधार प्रदेश के युवराज थे. वर्तमान के अफगानिस्तान को द्वापर युग में गांधार कहा जाता था और शकुनि मामा वही के राजा थे.
कुछ समय पश्चात् पाण्डु की मृत्यु हो गई. उनके भाई धृतराष्ट्र राज करने लगे. वे पांडवो तथा कौरवो का लालन-पोषण करते थे. सब राजकुमार गुरु द्रोण से युद्ध-विद्या सीखते थे. गुरु द्रोण उस समय के सबसे निपुण गुरु थे. गुरु द्रोण की शिक्षा-दीक्षा भी भगवान् परशुराम के सानिध्य में रहकर समपन्न हुई हैं.
एक दिन गुरु द्रोण ने सब राजकुमारों की परीक्षा ली. अर्जुन की बाण-विद्या से वे बड़े प्रसन्न हुए. गुरु द्रोण की प्रसन्नता और पांडवो की निपुणता देख कर कौरव उनसे जलने लगे उन्हें डर लगने लगा यह निपुणता पांडवो को राजगद्दी पर न बैठा दे इसीलिए राजगद्दी पर एकाधिकार प्राप्त करने के लिए कौरवो ने पांडवो की हत्या करने के कोशिश करने लगे.
एक बार उन्होंने पांडवो को एक मेला देखने भेजा. वहाँ उन्होंने लाख के महल में ठहराया यह महल पुरोचन ने बनाया था. जरा-सी चिंगारी लगते ही यह जल कर राख हो सकता था. पांडव इसका भेद जान गए थे.
उस रात को महल में आग लगाई गई. पांडव एक सुरंग जो पहले से ही बनाई गई थी उसके रास्ते से निकल गए थे। किन्तु पांच भील जो की अपनी माता के साथ ठहरे हुवे थे, जलकर मर गए. दुर्योधन ने इन्हे ही पांच पांडव और कुंती समझा और उनकी मृत्यु पर ख़ुशी मनाई.
अर्जुन महान धनुर्धर तो थे ही उन्होंने अपने पहले ही वार में मछली का आँख बेध दिया और द्रौपदी से विवाह किया. उसके बाद जब द्रौपदी को लेकर जब वो माता कुंती के पास पहुंचे तो बहार से ही चिल्ला कर कहा- "माता! आज हम बड़ी सुन्दर चीज लाये हैं." माता कुंती ने बिना देखे ही आज्ञा दे दिया की पांचो भाई आपस में बाँट लो। इस प्रकार द्रौपदी पांचो भाइयो की रानी बनी.
विवाह के बाद राजा द्रुपद ने कह-सुनकर पांडवो को आधा राज्य दिला दिया. इन्होने राज्य को खूब बढ़ाया और राजसूय यज्ञ किया. इस यज्ञ में दूर-दूर से राजा आये. दुर्योधन अब पांडवो से और जलने लगा. उसने इनके नाश की अब दूसरी तरकीब सोची. Mahabharat Ki Kahani, Mahabharat ki kahani in hindi
कौरव के मामा गांधार नरेश शकुनि जुआ खेलने में बड़ा चतुर और चालक था. उस समय जुए क बड़ा रिवाज था. किसी के बुलाने पर कोई मना नहीं करता था. दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया. युधिष्ठिर ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया. पासे पर पासा फेंका गया। युधिष्ठिर अपना सारा राज्य हार गये। बाद में अपनी पत्नी द्रौपदी को भी हार गये. दुर्योधन का भाई दुःशासन द्रौपदी को सभा भवन में खींचकर ले आया। वह उसके सब वस्त्र उतारने लगा; किन्तु भगवान् श्री कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचा ली.
इसी प्रकार नकुल और सहदेव भी काम करने लगे. द्रौपदी सैरन्ध्री नाम से विराटराज के पत्नी की दासी बन गयी. एक बार कीचक नाम के व्यक्ति ने द्रौपदी के साथ बुरा व्यवहार करना चाहा.
भीम को यह बात मालूम हो गई. उन्होंने उसी रात उसकी लीला समाप्त कर दी। इस प्रकार कठिनाई और संघर्षों को सहते हुवे पांडवो ने बारहवर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास के काल को समाप्त किया.
अब पांडवों ने अपना राज्य माँगा. दुर्योधन सुई के नोक के बराबर भूमि देने को भी तैयार नहीं हुआ. अंत में महाभारत का अत्यन्त भयंकर युद्ध हुआ.
महाभारत युद्ध में अखंड भारत के सभी बड़े बड़े राज्य दो पक्ष में बट गए कुछ राजाओ ने कौरव का साथ दिया वही वही कई राजाओ ने पाण्डवों को न्याय दिलाने के लिए पाण्डवों के तरफ से युद्ध में भाग लिया और पांडवो को विजय दिलाने में बहुत सहयोग किया. पाण्डवों के सेना के सेनापति धृष्टघुम्न थे और कौरवो के सेनापति महामहिम अजेय भीष्मपितामह थे.
युद्ध भूमि के बिच में मोह-माया के वशीभूत होकर दुःख और अवसाद से ग्रसित अर्जुन को देख कर श्री कृष्ण ने अर्जुन को सबसे महान ज्ञान गीता का ज्ञान दिया युद्ध भूमि में खड़े होकर इस प्रकार बिनाकारण दुखी होना पराजय और अप्रसिद्धि को प्रदान करने वाला हैं. mahabharat hindi
श्री कृष्ण भली प्रकार जानते थे की जिस प्रकार के भाव अर्जुन के हृदय में थे वैसा भाव कौरवों के ह्रदय में कभी नहीं था बल्कि उन्होंने सभी पांडवो को मारने का कई बार असफल प्रयास कर चुके थे. फिर युद्ध भूमि के बिच में एक अधर्मी से युद्ध ना करने के कायरतापूर्ण निर्णय को बदलने के लिए जो ज्ञान अर्जुन को दिया वही ज्ञान गीता आज भी पुरे विश्व में ज्ञान का मुख्य स्रोत हैं. बड़े बड़े ऋषि-मुनि, लेखक अपने रचनाओं की प्रमाणिकता गीता ज्ञान को प्रमाण मान कर सिद्ध करते हैं.
कई दिनों तक युद्ध चलता रहा. बड़ा भयंकर युद्ध चला. अंत में कौरव हार गये. भीष्मपितामह, कर्ण, जयद्रथ, शल्य आदि बहुत-से वीर कौरवो की ओर से मारे गए. अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी पूरी वीरता से लड़ते लड़ते चक्रव्यूह के अंतिम चरण में वीरगति को प्राप्त हुवे. बादमे भीमसेन ने दुर्योधन को अपनी गदा से मार डाला और युद्ध बंद हो गया.
युद्ध के बाद भीम तथा सब पाण्डव धृतराष्ट्र से मिलने गये। धृतराष्ट्र दुःख से व्याकुल हो रहे थे। वे बदला लेना चाहते थे। श्री कृष्ण उनके इरादों को जानते थे। उन्होंने भीम के स्थान पर धृतराष्ट्र से मिलने के लिये लोहे की मूर्ति खड़ी कर दी। धृतराष्ट्र ने भीम समझकर उस मूर्ति को गले मिले और अपने बाहुबल से उसको चकनाचूर कर दिया और भीम बच गए।
अब पांडव हस्तिनापुर में राज करने लगे। इन्होने अश्वमेघ यज्ञ किया। एक सौ बिस साल की उम्र में श्री कृष्ण ने इस लोक का त्याग कर दिया। अपने प्रिये सखा के चले जाने पर पांडव भी हिमालय पर तपस्या करने चले गये और वही बर्फ में समाधी लगा कर शरीर त्याग किया। महारज युधिष्ठिर अपने धर्मपालन के कारण सशरीर स्वर्ग धाम को यमराज के विशेष यान से गए। Mahabharat Ki Kahani, Mahabharat Hindi
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महाभारत की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक हैं. महाभारत ग्रन्थ पर बहुत से शोध कार्य चल रहे हैं. महाभारत विश्व का सबसे उत्कृष्ट ग्रन्थ जिसमे निति-न्याय, धर्म-अधर्म, शस्त्र-शास्त्र, राजनीति, दर्शन आदि सभी विषयो का समावेश हैं. कहा जाता हैं की जो महाभारत में नहीं वो पुरे विश्व में नहीं. Mahabharat Ki Kahani
Mahabharat Ki Kahani
महाभारत का युद्ध अधर्म पर धर्म की विजय कराने के लिए दो चचेरे भाइयो कौरवो और पांडवों के बिच लड़ा गया था. जिसमे श्री कृष्ण की सहायता से पांडवो ने विजय श्री हासिल की तथा हस्तिनापुर सहित अखंड भारत में पुनः धर्म की स्थापना की. इस युद्ध में पुरे आर्यवर्त वर्तमान पूरा दक्षिण एशिया और ईरान इराक टर्की,अफगानिस्तान आदि राज्यों के सभी राजा सम्मिलित थे। Mahabharat Ki Kahani In Hindi.कुछ राजाओ ने कौरवो का साथ दिया तो कुछ ने पांडवो को न्याय दिलाने उनका साथ दिया. वही श्री कृष्ण पांडवो के साथ थे तो उनकी नारायणी सेना दुर्योधन के साथ युद्ध लड़ रही थी. दुर्योधन के पास पांडवो से ज्यादा सैन्यबल था फिर भी धर्मयुद्ध में अधर्म का साथ देने के कारण उसकी पराजय हुई और भीम की गदा के प्रहार से उसकी मृत्यु हुई. Mahabharat Ki Kahani.
द्वापरयुगमें हस्तिनापुर राज्य में एक प्रतापी राजा राज करते थे, जिनका नाम शांतनु था. शांतनु महाराज का पहला विवाह साक्षात् गंगा-माता से हुआ था. दोनों से आठ संतान हुवे थे सात पुत्रो को माता गंगा ने नदी में प्रवाहित कर दिया था. अंतिम आठवे संतान का नाम देवव्रत था. देवव्रत के जन्म के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा भगवान् परशुराम के सान्निध्य में हुई तत्पश्चात माता गंगा ने देवव्रत को शांतनु को सौप कर अंतर्ध्यान हो गई. देवव्रत महान ज्ञानी, महान बलशाली और न्याय प्रिये थे.
गंगा माता के जाने की वजह से महाराज शांतनु उदास रहने रहने लगे एक दिन वो नदी किनारे जा रहे थे तभी उन्होंने एक सुन्दर स्त्री को देखा उसकी सुंदरता देख कर महाराज शांतनु उस स्त्री पर मोहित हो गए और उन्होंने उस स्त्री से विवाह का प्रस्ताव रखा. वह स्त्री मत्स्यराज की पुत्री थी. जिनका नाम सत्यवती था.
Complete Mahabharat Ki Kahani
सत्यवती ने महाराज शांतनु से कहा की आपका पुत्र देवव्रत ही आने वाले समय में राज गद्दी पर बैठेगा और हमारे पुत्र उसकी नौकरी-चाकरी करेंगे यदि आप देवव्रत की जगह हमारे होने वाले पुत्र को राजगद्दी पर बैठाने का वचन देते हैं तो मै आपसे विवाह करने के लिए तैयार हूँ. Complete Mahabharat Ki Kahani.महाराज शांतनु को यह वचन बिलकुल भी मान्य नहीं था इसलिए उन्होंने अस्वीकार कर दिया. लेकिन महाराज शांतनु बहुत उदास रहने लगे. देवव्रत धार्मिक और पितृभक्त थे. उन्होंने अपने पिता महाराज शांतनु के उदासी के कारणों को पता किया।
सत्यवती के पास जाकर एक भीष्म प्रतिज्ञा की, की वह कभी भी राजा नहीं बनेंगे और ना ही कभी विवाह करेंगे जिससे की उनकी आने वाली पीढ़ी भी राज गद्दी पर बैठ सके. आजीवन अखंड ब्रह्मचारी रहने के भीष्म प्रतिज्ञा ने देवव्रत को भीष्म नाम दिया बाद में जिन्हे भीष्मपितामह भी कहा जाने लगा.
Mahabharat hindi - महाभारत के युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने आवेश में आकर भीष्मपितामह पर रथ का पहिया उठा लिया था तो अर्जुन ने कृष्ण के पैर पकड़ कर उनको रोका था। |
जब देवव्रत के इस भीष्म प्रतिज्ञा का पता शांतनु महाराज को लगा तो वे अत्यंत दुखी हुवे और पिता के सुख के लिए हमेशा के लिए अपना सुख त्यागने वाले देवव्रत पर खुश भी हुवे और वरदान दिया की देवव्रत अपनी इक्षामृत्यु ही मरेंगे यानी इक्षा होगी तभी मरेंगे कोई और नहीं मार सकता.
Mahabharat In Hindi
महाराज शांतनु ने मत्स्यराजकन्या सत्यवती से विवाह किया दोनों के दो पुत्र हुवे एक का नाम 'विचित्रवीर्य' और दूसरे का नाम 'चित्राङ्गद' था. चित्राङ्गद का अल्पायु में मृत्यु हो गया. फिर विचित्रवीर्य राजगद्दी पर बैठे.विचित्रवीर्य की दो रानियाँ थी 'अम्बिका' और 'अम्बालिका'. अम्बिका और विचित्रवीर्य से एक पुत्र हुआ जिनका नाम 'धृतराष्ट्र' पड़ा, जो जन्म से ही अंधे थे. अम्बालिका और विचित्रवीर्य से भी एक पुत्र हुआ जिनका नाम 'पाण्डु' पड़ा.
पिता की मृत्यु के पश्चात् पाण्डु राजा बने क्युकी धृतराष्ट्र अंधे थे. पाण्डु के पांच पुत्र हुवे जो पांडव कहलाये वही धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र हुवे जो कौरव कहलाये. पति के अंधेपन के दुःख बाटने के लिए गांधारी ने भी आजीवन अपने आँखों पर पट्टी बांध ली थी.
पाँचो पाण्डवों 'युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव' में से युधिष्ठिर सबसे बड़े थे. इनकी दो माताए थी एक का नाम कुंती तो दूसरे का नाम माद्री था। कुंती के पुत्र युधिष्ठिर, भीम, और अर्जुन थे। माद्री के पुत्र नकुल और सहदेव थे.
कौरवों में सबसे बड़े दुर्योधन थे. इनकी माता गांधारी थी तथा मामा का नाम शकुनि था जो की गांधार प्रदेश के युवराज थे. वर्तमान के अफगानिस्तान को द्वापर युग में गांधार कहा जाता था और शकुनि मामा वही के राजा थे.
पांडव और कौरव की शिक्षा-दीक्षा
उन्होंने एक बार कुएँ से एक गेंद को तीरों की सहायता से निकाला था. सब राजकुमार खूब मन लगाकर शिक्षा ग्रहण करते थे. अर्जुन सबसे होशियार तथा होनहार विद्यार्थी थे तथा धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त कर चुके थे. वही भीम तथा दुर्योधन ने गदा चलाना भलीप्रकार से सिख लिया था.एक दिन गुरु द्रोण ने सब राजकुमारों की परीक्षा ली. अर्जुन की बाण-विद्या से वे बड़े प्रसन्न हुए. गुरु द्रोण की प्रसन्नता और पांडवो की निपुणता देख कर कौरव उनसे जलने लगे उन्हें डर लगने लगा यह निपुणता पांडवो को राजगद्दी पर न बैठा दे इसीलिए राजगद्दी पर एकाधिकार प्राप्त करने के लिए कौरवो ने पांडवो की हत्या करने के कोशिश करने लगे.
एक बार उन्होंने पांडवो को एक मेला देखने भेजा. वहाँ उन्होंने लाख के महल में ठहराया यह महल पुरोचन ने बनाया था. जरा-सी चिंगारी लगते ही यह जल कर राख हो सकता था. पांडव इसका भेद जान गए थे.
Mahabharat Hindi शंख बजा कर श्री कृष्ण और अर्जुन युद्ध का आरम्भ करते हुए। |
Mahabharat ki kahani in Hindi द्रौपदी विवाह
अब पांचो पांडव जंगल में, ब्राह्मण के वेश में, माता कुंती के साथ रहने लगे. इस समय राजा द्रुपद ने अपनी कन्या द्रौपदी का स्वयंवर रचा. राजा ने प्रण किया था की जो वीर निचे रखे कड़ाहे में छाया देखकर ऊपर एक चक्र में घूमती हुई मछली की आँख बेधेगा, उसीके साथ द्रौपदी का विवाह होगा.अर्जुन महान धनुर्धर तो थे ही उन्होंने अपने पहले ही वार में मछली का आँख बेध दिया और द्रौपदी से विवाह किया. उसके बाद जब द्रौपदी को लेकर जब वो माता कुंती के पास पहुंचे तो बहार से ही चिल्ला कर कहा- "माता! आज हम बड़ी सुन्दर चीज लाये हैं." माता कुंती ने बिना देखे ही आज्ञा दे दिया की पांचो भाई आपस में बाँट लो। इस प्रकार द्रौपदी पांचो भाइयो की रानी बनी.
विवाह के बाद राजा द्रुपद ने कह-सुनकर पांडवो को आधा राज्य दिला दिया. इन्होने राज्य को खूब बढ़ाया और राजसूय यज्ञ किया. इस यज्ञ में दूर-दूर से राजा आये. दुर्योधन अब पांडवो से और जलने लगा. उसने इनके नाश की अब दूसरी तरकीब सोची. Mahabharat Ki Kahani, Mahabharat ki kahani in hindi
कौरव के मामा गांधार नरेश शकुनि जुआ खेलने में बड़ा चतुर और चालक था. उस समय जुए क बड़ा रिवाज था. किसी के बुलाने पर कोई मना नहीं करता था. दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया. युधिष्ठिर ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया. पासे पर पासा फेंका गया। युधिष्ठिर अपना सारा राज्य हार गये। बाद में अपनी पत्नी द्रौपदी को भी हार गये. दुर्योधन का भाई दुःशासन द्रौपदी को सभा भवन में खींचकर ले आया। वह उसके सब वस्त्र उतारने लगा; किन्तु भगवान् श्री कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचा ली.
Mahabharat Ki Kahani महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन का रथ चलाते भगवान हुवे श्री कृष्ण। |
पांडवो का वनवास और अज्ञातवास
आखिर में एक पासा और फेंका गया और इस बार भी पाण्डव हार गये. उन्हें बारह वर्ष वनवास तथा एक वर्ष अज्ञातवास में रहने की प्रतिज्ञा का पालन करना पड़ा. बारह वर्षों के बाद पाण्डव एक वर्ष तक विराटनगर के राजा के पास रूप बदलकर रहे. युधिष्ठिर कंक नामक ब्राह्मण बन गये। वे राजा के साथ चौपड़ खेलते थे. भीम रसोइया बनकर रहने लगे. अर्जुन बृहन्नला नाम से राजकुमारी उत्तरा को नाच और गाना सिखाने लगे.इसी प्रकार नकुल और सहदेव भी काम करने लगे. द्रौपदी सैरन्ध्री नाम से विराटराज के पत्नी की दासी बन गयी. एक बार कीचक नाम के व्यक्ति ने द्रौपदी के साथ बुरा व्यवहार करना चाहा.
भीम को यह बात मालूम हो गई. उन्होंने उसी रात उसकी लीला समाप्त कर दी। इस प्रकार कठिनाई और संघर्षों को सहते हुवे पांडवो ने बारहवर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास के काल को समाप्त किया.
अब पांडवों ने अपना राज्य माँगा. दुर्योधन सुई के नोक के बराबर भूमि देने को भी तैयार नहीं हुआ. अंत में महाभारत का अत्यन्त भयंकर युद्ध हुआ.
महाभारत युद्ध में अखंड भारत के सभी बड़े बड़े राज्य दो पक्ष में बट गए कुछ राजाओ ने कौरव का साथ दिया वही वही कई राजाओ ने पाण्डवों को न्याय दिलाने के लिए पाण्डवों के तरफ से युद्ध में भाग लिया और पांडवो को विजय दिलाने में बहुत सहयोग किया. पाण्डवों के सेना के सेनापति धृष्टघुम्न थे और कौरवो के सेनापति महामहिम अजेय भीष्मपितामह थे.
Mahabharat Ki Kahani;
Mahabharat ki kahani; जब श्री कृष्ण के पास सहायता के लिए कौरव और पाण्डव पहुँचे तो दुर्योधन ने श्री कृष्ण की नारायणी सेना माँगी वही पाण्डवों ने श्री कृष्ण को माँगा. पहले पांडवो युद्ध नहीं लड़ना चाहते थे. युद्ध भूमि के बिच में अर्जुन ने जब अपने परदादा महामहिम भीष्म को देखा अपने गुरु द्रोण को देखा तो असहज हो गया मोह माया ने उसे घेर लिया अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा की मै किस संपत्ति या राज की लालच में यह युद्ध कर रहा हूँ यदि अपने प्रेमीजनों को मारकर मुझे पुरे विश्व का राज मिल भी जाये तो मुझे ख़ुशी नहीं दे सकती.युद्ध भूमि के बिच में मोह-माया के वशीभूत होकर दुःख और अवसाद से ग्रसित अर्जुन को देख कर श्री कृष्ण ने अर्जुन को सबसे महान ज्ञान गीता का ज्ञान दिया युद्ध भूमि में खड़े होकर इस प्रकार बिनाकारण दुखी होना पराजय और अप्रसिद्धि को प्रदान करने वाला हैं. mahabharat hindi
श्री कृष्ण भली प्रकार जानते थे की जिस प्रकार के भाव अर्जुन के हृदय में थे वैसा भाव कौरवों के ह्रदय में कभी नहीं था बल्कि उन्होंने सभी पांडवो को मारने का कई बार असफल प्रयास कर चुके थे. फिर युद्ध भूमि के बिच में एक अधर्मी से युद्ध ना करने के कायरतापूर्ण निर्णय को बदलने के लिए जो ज्ञान अर्जुन को दिया वही ज्ञान गीता आज भी पुरे विश्व में ज्ञान का मुख्य स्रोत हैं. बड़े बड़े ऋषि-मुनि, लेखक अपने रचनाओं की प्रमाणिकता गीता ज्ञान को प्रमाण मान कर सिद्ध करते हैं.
Mahabharat भगवान् श्री कृष्ण द्वारा गीता का ज्ञान देने के दौरान अर्जुन को अपने विश्वरूप का दर्शन कराते हुए |
भगवान् श्री कृष्ण द्वारा गीता का ज्ञान
श्री कृष्ण द्वारा मिले गीता ज्ञान को ग्रहण कर और श्री कृष्ण के विश्वरूप को दर्शन कर अर्जुन के शरीर में एक नई तेज का संचार हुआ. फिर अर्जुन ने पूरी आत्मविश्वास के साथ श्री कृष्ण द्वारा दिए ज्ञान अहिंसा परमोधर्मः धर्महिंसा तथैव च को आत्मसात किया और फिर अपना धनुष उठाया और गाँधी के षड्यंत्रकारी ज्ञान से उल्ट गीता के सही अर्थो को समझा और अपनी स्वतंत्रता के लिए और धर्मस्थापना के लिए अपने भाइयों के साथ भी भयंकर धर्महिंसा किया और अधर्म का नाश किया. अंग्रेज तो कौरवों से बड़े राक्षस थे.कई दिनों तक युद्ध चलता रहा. बड़ा भयंकर युद्ध चला. अंत में कौरव हार गये. भीष्मपितामह, कर्ण, जयद्रथ, शल्य आदि बहुत-से वीर कौरवो की ओर से मारे गए. अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी पूरी वीरता से लड़ते लड़ते चक्रव्यूह के अंतिम चरण में वीरगति को प्राप्त हुवे. बादमे भीमसेन ने दुर्योधन को अपनी गदा से मार डाला और युद्ध बंद हो गया.
युद्ध के बाद भीम तथा सब पाण्डव धृतराष्ट्र से मिलने गये। धृतराष्ट्र दुःख से व्याकुल हो रहे थे। वे बदला लेना चाहते थे। श्री कृष्ण उनके इरादों को जानते थे। उन्होंने भीम के स्थान पर धृतराष्ट्र से मिलने के लिये लोहे की मूर्ति खड़ी कर दी। धृतराष्ट्र ने भीम समझकर उस मूर्ति को गले मिले और अपने बाहुबल से उसको चकनाचूर कर दिया और भीम बच गए।
अब पांडव हस्तिनापुर में राज करने लगे। इन्होने अश्वमेघ यज्ञ किया। एक सौ बिस साल की उम्र में श्री कृष्ण ने इस लोक का त्याग कर दिया। अपने प्रिये सखा के चले जाने पर पांडव भी हिमालय पर तपस्या करने चले गये और वही बर्फ में समाधी लगा कर शरीर त्याग किया। महारज युधिष्ठिर अपने धर्मपालन के कारण सशरीर स्वर्ग धाम को यमराज के विशेष यान से गए। Mahabharat Ki Kahani, Mahabharat Hindi
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महाभारत एक कहानी नही बल्कि एक मनोरंजक गाथा है जो हमे जिंदगी भर की सीख भी देती है।
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