जिवन परिचय:
veer savarkar - भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम् योगदान देने वाले प्रमुख क्रांतिकारी तथा प्रखर राष्ट्रवादी Veer Sawarkar का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर हैं। veer sawarkar का जन्म 1883 में महाराष्ट्र के नासिक जिले में भगूर नामक स्थान पर हुआ था। हिन्दू राष्ट्र की राजनितिक विचारधार जो की हिंदुत्व के नाम से प्रसिद्ध हुई उसके जनक के रूप में भी veer savarkar को श्रेय दिया जाता रहा हैं। veer sawarkar सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के एक तेजस्वी एवं ओजस्वी सिपाही ही नहीं अपितु एक प्रखर वक्ता, एक निर्भिक लेखक, इतिहासकार, चिंतक, क्रन्तिकारी, कवि तथा दूरदर्शी नेता भी थे। veer sawarkar एक ऐसे इतिहास कार थे, जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का अनसुना खोजपूर्ण इतिहास लिख कर अंग्रेजो को जड़ से हिला के रख दिया था। veer savarkar ने हिन्दू साम्रज्य के विजय के कई गाथाओ को प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध भी किया हैं।
Veer Savarkar:- जीवन परिचय
वीर सावरकर एक कुशल वकील, राजनितज्ञ, कवी तथा नाटककार भी थे। उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ कर दूसरे धर्मो में बदले हुवे हिन्दुओ को वापस अपने हिन्दू धर्म में लाने के बहुत प्रयास किए। उन्होंने भारत को एक सूत्र में पिरोने का क्रन्तिकारी प्रयास किया तथा जिसके फलस्वरूप हिन्दुत्व विचारधारा के प्रभाव से हिंदुत्व शब्द की उत्पत्ति हुई।
वीर सावरकर की माताजी का नाम राधाबाई तथा पिताजी का नाम दामोदर पंत सावरकर था। वीर सावरकर जी जब नौ साल के थे तभी उनकी माता जी की मृत्यु हो गई थी तथा 7 वर्ष बाद पिताजी की भी मृत्यु हो गई। घर की सारी जिम्मेदारी अब वीर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर पर आ गई थी। बड़े कठिनाई के दौर में 1901 में वीर सावरकर ने शिवाजी हाई स्कूल नासिक से मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वीर सावरकर बुद्धिमान और तेज बुद्धि वाले विद्यार्थी थे। बचपन से ही वो लिखने का कार्य करते गए।
मैट्रिक की परीक्षा पास करते ही 1901 में वीर सावरकर का विवाह यमुनाबाई के साथ हो गया। विवाह के बाद सावरकर जी के ससुर जी ने उनका आगे की पढाई का खर्चा उठाया। फिर पुणे के फर्गुशन कॉलेज से उन्होंने बीए की पढाई पूर्ण की। तब तक वीर सावरकर के अंदर अंग्रेजो का अत्याचार देख कर देशभक्ति की भावना क्रांति करि भावना कूट कूट कर भर चुकी थी। 1904 में उन्होंने अभिनव भारत नामक एक क्रन्तिकारी संगठन बनाया।
Veer Sawarkar |
वीर सावरकर से जुड़े दुर्लभ तथ्य :-
- वीर सावरकर 1901 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के निधन के अवसर पर नासिक में आयोजित शोक सभा का विरोध करने वाले पहले क्रन्तिकारी सेनानी थे। उनका मानना था की विक्टोरिया भारत के दुश्मन देश इंग्लैंड की रानी हैं ?क्या ब्रिटेन में कभी भारतीय महात्माओ की मृत्यु पर शोक सभा आयोजित ?
- वीर सावरकर नासिक के त्रयम्केश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगा कर ब्रिटेन के महाराज के राज्याभिषेक ख़ुशी मनाने का भी विरोध करने वाले पहले क्रांतिकारी थे। पोस्टर में लिखा गया था 'गुलामी का उत्सव मत मनाओ'
- वीर सावरकर ने ही सबसे पहले 7 ऑक्टूबर 1905 को पूना में विदेशी वस्त्रो को होली जलाई थी। (सोलह साल बाद 1921 में गाँधी ने दुबारा सावरकर जी के देखा देखि विदेशी वस्त्रो की होली जलाई थी ) इस घटना के बाद बाल गंगाधर तिलक ने अपनी पत्रिका केसरी में सावरकर की प्रशंसा करते हुवे उन्हें बताया था। जबकि उस समय अफ्रीका में गाँधी ने इस घटना निंदा की थी बाद में 1921 में उसी कार्य को किया।
- वदेशी वस्त्रो की होली जलाने के कारण 1905 में वीर सावरकर को पुणे के फर्गुशन कॉलेज से निष्काषित कर दिया गया साथ ही 10 रुपया का भारी जुर्माना लगाया गया। बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी के सम्पादकीय में सावरकर के पक्ष में लिखा था। निष्कासन के विरोध में फर्गुशन कॉलेज में हड़ताल हो गई थी।
- वीर सावरकर भारत के पहले और अंतिम या एकलौते ऐसे क्रांतिकारी नेता हैं जिन्होंने इंग्लैंड में बैरिस्टर की डिग्री लेने के लिए ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादारी की शपथ नहीं ली। इसीलिए बैरिस्टर होने के बाद भी उन्हें डिग्री नहीं दी गई साथ ही क़ानूनी लड़ाई लड़ने पर आजीवन प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
- वीर सावरकर पहले ऐसे इतिहाकार लेखक थे जिन्होंने 1857 की क्रांति कोअंग्रेजो ग़दर कहे जाने का पुरजोर विरोध किया और प्रामाणिक ढंग से 1857 की क्रांति को स्वतंत्रता समर सिद्ध किया। सनसनीखेज खुलासा कर खोजपूर्ण इतिहास लिखने वाले वीर नेता हैं।
- वीर सावरकर पहले ऐसे इतिहास लेखक है जिनकी लिखी हुई पुस्तक '1857 स्वतंत्रता समर' प्रकाशित होने से पहले ही ब्रिटिश राज द्वारा प्रतिबन्ध कर दी जाती है तथा इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए उस समय कोई पब्लिशर भी तैयार नहीं हो रहा था बाद में गुप्त तरीके से हॉलेंड में प्रकशित हुआ और फ्राँस में आया।
- 1857 स्वतंत्रता समर विदेशो में छापा गया। बाद में भगत सिंह ने इसे भारत में छपवाया था। जिसकी एक एक प्रति उस जमाने में भी तीन-तीन सौ रुपयों में बिकी थी। उस समय भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता की तरह थी। पुलिस के छापो में क्रांतिकारियों के घर से सबसे ज्यादा यही पुस्तक निकलती थी।
- वीर सावरकर पहले ऐसे क्रन्तिकारी थे जिन्होंने कालापानी की सजा काटते हुवे कालकोठरी की दीवारों पर कोयले से 6000 कविताये लिखी और उन्हें कंठस्थ भी किया था। जिन्हे बाद में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया।
- पुरे विश्व में वीर सावरकर अपने तरह के एकलौते क्रन्तिकारी थे जिनको दो-दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई थी। यह सजा सुनते ही वीर सावरकर ने हसते हुवे कहा था की "चलो ख़ुशी हैं इसाईओं ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म के मान्यता को तो स्वीकार किया। "
- वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काली पानी की सजा काटते हुए 10 सालो से अधिक समय तक आज़ादी कोल्हू चलाकर प्रतिदिन ३० पौंड तेल निकलते थे।
- वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे जिनकी लिखी हुई पुस्तक आज़ादी के बाद भी कई सालो तक प्रतिबंधित रही।
- वीर सावरकर पहले ऐसे क्रन्तिकारी नेता है जिन्हे आजादी के बाद भी 1948 में नेहरू ने गाँधी हत्या के आड़ में लाल किले में बंद रखा। बाद में सर्वोच्च न्यायलय में उन्हें बाईज़्ज़त बरी कर दिया गया तब नेहरू को मजबूरन उन्हें कैद मुक्त करना पड़ा।
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