गुलामी काल में मुंशी प्रेमचंद ने सोजे वतन (राष्ट्र का विलाप) नामक रचना करके लोगो के अंदर राष्ट्रवाद की भावना को जगाने का प्रयास किया जिसे बाद में कलक्टर द्वारा तलब किया गया और मुंशी प्रेमचंद पर अपनी रचनाओं द्वारा लोगो को भड़काने का आरोप लगा और उनकी रचना सोजो वतन की सभी प्रतियाँ जब्त करके नष्ट कर दी गई तथा उनको वार्निग दी गई दुबारा ऐसा रचना किया तो जेल में डाल दिए जाओगे।
उस समय तक प्रेमचंद नवाब राय के नाम से लिखते थे फिर इस घटना के बाद अपने एक अजीज मित्र और जमाना पत्रिका के प्रमुख संपादक के सलाह पर नाम बदल कर लिखने का कार्य करने लगे। उसके बाद से ही ‘प्रेमचंद’ के नाम से उन्होंने लेखन कार्य आरम्भ किया और कई कालजयी रचना कर डाली।
प्रेमचंद के पिताजी का नाम मुंशी अजायबराय श्रीवास्तव तथा माताजी का नाम आनन्दी देवी था। प्रेमचंद जब मात्र सात वर्ष के थे तो उनकी मातजी तथा 14 साल की अल्पायु में पिताजी के मृत्यु के कारन मुंशी प्रेमचंद का बचपन बहुत ही कठिनाई से संघर्ष करते हुवे बिता हैं।
मुंशी जी स्कूल में बच्चो को शिक्षा देने के साथ साथ अपनी पढाई भी चालू रखी। 1910 में दर्शन, अंग्रेजी, फ़ारसी तथा इतिहास विषय के साथ इंटर की परीक्षा पास की। बीए पास बाद मुंशी जी ने शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर भी अपनी सेवाएं दी हैं।
मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन कार का आरम्भ जमाना पत्रिका से की। मुंशी प्रेमचंद जमाना पत्रिका में धनपत राय नाम से लिखा करते थे बाद में जमाना पत्रिका के संपादक और मुंशी जी के परम मित्र मुंशी दयानारायण निगम के सलाह पर प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू किया जो बाद में उनकी पहचान बना। पूरी दुनिया मुंशी प्रेमचंद के नाम से जानती हैं।
चुकी प्रेमचंद मूल रूप से उर्दू के लेखक थे जो बाद में हिंदी भाषा पर आए। प्रेमचंद की अधिकांश रचना मूलतः उर्दू भाषा में ही हैं जिसे बाद में हिंदी भाषा में तर्जुमा किया गया। मुंशी प्रेमचंद अपने अपनी दिनों में बहुत बीमार हो गए थे उनकी अंतिम रचना ‘मंगलसूत्र’ उनके मृत्यु की वजह से अधूरी रह गई जिसे बाद में उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया।
मैट्रिक की परीक्षा पास करने के साथ ही प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन की शुरुआत हो गई थी लेकिन उनके द्वारा लिखित पहली हिंदी कहानी सरस्वती पत्रिका द्वारा अपने दिसम्बर के अंक में ‘सौत’ नाम से प्रकाशित किया। प्रेमचंद जी द्वारा लिखित अंतिम कहानी ‘कफ़न’ 1936 में प्रकाशित हो हुई थी। प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘पहली रचना’ के अनुसार उनकी पहली रचना उनके मामा पर लिखा एक व्यंग था जो समय के साथ विलुप्त हो गया और अब अनुपलब्ध हैं।
उनकी पहली रचना उर्दू में थी और उनका पहला उर्दू उपन्यास का नाम ‘असरारे मआबिद’ था। वही प्रेमचंद जी के दूसरे उपन्यास का नाम ‘हमखुर्मा और हंसवाब’ था जिसका हिंदी तर्जुमा ‘प्रेमा’ नाम से 1907 में प्रकशित हुआ था।
इसके बाद 1908 में ‘सोजे वतन’ नाम से एक क्रांतिकारी तथा देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ जिस वजह से मुंशी प्रेमचंद को कलेक्टर ने लाइन हाजिर किया तथा वार्निंग दिया की यदि दुबारा ऐसी रचना की तो कड़ी सजा दी जाएगी और जेल में डाल दिया जायेगा।
उसके बाद से मुंशी प्रेमचंद अपने मित्र की सलाह से अपना लेखन नाम धनपत राय को बदल कर प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।
प्रेमचंद के नाम से धनपत राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ जमाना पत्रिका द्वारा अपने दिसम्बर के अंक में 1910 में प्रकाशित किया था। मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कई कहानियाँ उनके मरणोपरांत प्रकाशित हुई। उनके मरणोपरांत प्रकाशित होने वाला पहला कहानी संग्रह का नाम ‘मानसरोर’ था।
प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ , 7 बाल कहानियाँ , 10 अनुवाद, 3 नाटक साथ ही हजारो पृष्ठ का लेख, सम्पादकीय आदि आदि। प्रेमचंद ने अपनी सभी रचनाओ का रूप गुलामी की काल में ही की हैं। गुलामी का काल होते हुवे भी इतनी विशाल सँख्या में रचनाएँ करना एक मील के पत्थर के सामान ही हैं।