क्या आप जानते हैं भारत में लाखो सालो से विमान और मनुष्य दोनों उड़ते आ रहे हैं ?

हम भारतवासी कलयुग के प्रथम चरण में यानी की कलियुगाब्द 5118 वी या अंग्रजी कैलेंडर अनुसार 2019 में फ्राँस जैसे छोटे देश से राफेल नामक विमान खरीदकर बहुत ही गर्व का अनुभव कर रहे हैं हम फुले नहीं समा रहे हैं की हवाई क्षेत्र में हमारी पकड़ अब और मजबूत हो चुकी हैं लेकिन यदि हम अपने इतिहास से सबक लिया होता तो आज राफेल जैसा विमान बहुत पहले भारत ने अपने बलबूते पर बना लिया होता। 

अंग्रजो ने हमारे ऋषि-मुनिओ का जो उपहास बनाया, उस उपहास को हम भी आजतक सत्य ही समझते रह गए। हम अपने इतिहास के कहानियो को काल्पनिक मानने की भूल कर बैठे और हमने वह बौद्धिक खजाना हाथ से गवा दिया जो शायद फिर कभी मानवता को ना मिल सके।


भारतीय ऋषि-मुनि और विमानशास्त्र :

आज भी बच्चो को साधू बाबा के नाम से डराया जाता हैं। साधू जो प्रेम दया का रूप होता हैं उसे एक षड्यंत्र के तहत बदनाम किया गया। उनको बस जंगलो में रहने वाले, हमेशा ब्रह्मचिन्तन में लीन रहने वाला, जटा रखने वाला ही बताया गया हैं। जबकि साधू-मुनियो की वास्तविकता को हमसे छुपाया गया। हमारे ऋषि मुनि वैज्ञानिक थे, वे अनेक शोध और प्रयोग समय-समय पर करते रहते थे।

उन्ही ऋषयो की देन हैं की आज ज्ञान का अथाह सागर पुरे विश्व को मिल सका हैं। वह वेद और ऋषि मुनि ही थे जिन्होंने मनुष्य को मनुष्य बनाया। उसी शिक्षा का असर हैं की आज भी कुछ शर्मिंदगी पश्चिमी देशो में बची हैं नहीं तो सब नंगे सड़क पर जानवरो की तरह पेट भर रहे होते और भेड़-बकरियों की तरह बच्चा पैदा कर रहे होते।

 भारतीय ऋषिमुनि ही थे जिन्होंने दुनिया को भाषा दिया, जिन्होंने गिनती करना सिखाया, उपचार करना, अन्न पैदा करना, बनाना सिखाया। उन्ही महान ऋषियों में से एक ऋषि हुवे भरद्वाज  ऋषि जिनका उल्लेख हमें वाल्मीकि रामायण में मिलता हैं जिन्होंने त्रेतायुग में भगवान् राम से उनके वनवास के समय तथा वापसी अयोध्या आते समय मुलाकात की थी और विभिन्न योजनाओ पर बात भी हुई थी।

भरद्वाज ऋषि पहले ऐसे विमान शास्त्री थे जिन्होंने अगस्त्य मुनि के विद्युत् ज्ञान को अभिवर्धित किया। महर्षि भरद्वाज ने "यंत्र सर्वस्व" नामक ग्रन्थ लिखा था। जिसमे सभी प्रकार के यंत्रो को बनाने तथा सञ्चालन विधि का विस्तारपूवर्क वर्णन हैं। उसका एक भाग वैमानिक शास्त्र हैं।


भारत में लाखो सालो पहले अंतरिक्ष यात्रा के कई कहानियाँ हैं :

महाभारतकाल में भी तथा उसके पहले के भारतवर्ष में विमान विद्या हमेशा उपयोग में थी। श्री कृष्ण और जरासंध के पास भी विमान थे। सनातन काल में सिर्फ विमान ही नहीं अपितु अंतरिक्ष में नगर रचना का भी जिक्र कई जगह मिलता हैं। त्रिपासुरों ने अंतरिक्ष में तीन अजेय नगरों का विकास किया था जिसे भगवान् शिव ने नष्ट किया। अंतरिक्ष यात्रा सतयुग त्रेतायुग और द्वापरयुग तक बहुत सुगम थी। हमारे पुराणों में अनेक ऋषि-मुनि, राजा-महाराजाओ, देवी-देवता, यक्ष आदि के अंतरिक्ष में बसे विभिन्न लोको में जाने का जिक्र मिलता हैं।

एक छोटी सी कहानी सुनने को मिलती हैं की त्रेतायुग में किसी राजा की पुत्री का विवाह उनकी उच्चे कद काठी की वजह से कही भी नहीं हो रहा था फिर वो अपने योगबल से पुत्री को लेकर ब्रह्मा जी के पास अंतरिक्ष में बसे ब्रह्मलोक गए।  वहा पर किसी वजह से ब्रह्मा जी से मिलने में कुछ मिनट या घंटे का समय लग गया। फिर ब्रह्मा जी आये और उनकी समस्या सुन कर बोले की हे राजा तुम अपनी पुत्री को लेकर जितने समय ब्रह्म लोक में रुके उतने समय में पृथ्वी पर सहस्त्रो साल बीत चुके हैं वहाँ  पर अभी द्वापरयुग चल रहा हैं और इस युग में भारतवर्ष में द्वारका नगरी में बलराम का जन्म हो चूका हैं तुम्हारी पुत्री का विवाह भगवान् श्री बलराम जी से होना ही तय हुआ हैं। उसके बाद वह राजा ख़ुशी ख़ुशी अपने पुत्री को लेकर पृथ्वी पर लौट आया यहाँ आने पर उसे सबकुछ बदला हुआ दिखा उसका राज पाठ सब गायब था।

इस कहानी में कितनी सत्यता हैं यह जाँच का अलग विषय लेकिन इस कहानी में जो वैज्ञानिक तथ्य हैं उसको इग्नोर नहीं किया सकता इस कहानी में ब्रह्मलोक के कुछ मिनट या घंटा पृथ्वी पर हजारो सालो के बराबर हैं अल्बर्ट आइंस्टीन की सापेक्षता का सिद्धांत यदि आपने पढ़ी हो तो समझ गए होंगे की त्रेतायुग यानी की आज से लगभग 13 लाख साल पहले हमें वह ज्ञान हासिल था जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने अब कलयुग में हासिल किया हैं।

निश्चित रूप से सनातन काल से ही बहुत ऐसी विद्या चली आ रही हैं जिसे आज तक हम नहीं जान पाए।  निसंदेह लाखो साल पहले भारत में विमानशास्त्र और अंतरिक्षयात्रा अस्तित्व में था। हमारे पास वह ज्ञान था जिसके द्वारा हम भार शून्यता(यदि पृथ्वी की गुरुत्वा शक्ति के विपरीत तथा बराबर बल लगाया जाए तो भार शून्यता या जीरो ग्रेविटी की स्थिति उत्पन्न होती हैं ) की  स्थिति उत्पन्न कर सकते थे और हवा में उड़ सकते थे।

Rukma Vimana
Rukma Vimana

ज्ञान की जननी वेदों में भी विमान का ना सिर्फ अनेक जगह विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता हैं बल्कि विमान को बनाने के अनेक तरीके भी बताए गए हैं। विद्या वाचस्पति पंडित मधुसुदन सरस्वती ने अपने 'इन्द्रविजय' नामक ग्रन्थ में ऋग्वेद के छत्तीसवे सूक्त के प्रथम ऋचा का अर्थ बताते हुवे लिखते हैं की ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था। ऋषि-मुनियो, देवताओं द्वारा निर्मित तीन पहिया वाला विमान  अंतरिक्ष में भ्रमण करता हैं का उल्लेख ऋग्वेद(मंडल४ सूत्र 25, 26 ) में मिलता हैं। देव वैद्य अश्विनी कुमारो के त्रितल विमान का उल्लेख मिलता हैं जो पंछियों तरह उड़ता था। साथ  विद्युत् रथ, त्रिचक्र रथ का भी उल्लेख मिलता हैं।

रामायण काल के पुष्पक विमान:

त्रेतायुग में रामायण काल के पुष्पक विमान तो भारत में खासा प्रचलित हैं। यह वही पुष्पक विमान था  जो पहले भगवान कुबेर का था जिसे लंकाधिपती रावण ने छीन लिया था और अपने नियंत्रण में ले लिया था बाद में राजा श्री राम ने रावण वध कर इसी पुष्पक विमान द्वारा माता सीता सहित लंका से वापस अयोध्या तक की यात्रा की थी और बाद में इसे कुबेर को लौटा दिया था। पुराण के किस्सा-कहानियो या रामायण-महाभारत जैसे ऐतिहासिक इतिहास को कपोल-कल्पित माना जाता रहा हैं। 

pushpak viman in ramayan
Pushpak Viman of Ramayan

लगभग 6 दशक पूर्व  सुविख्यात भारतीय वैज्ञानिक डॉ वामनराव काटेकर अपने  शोध में विस्तार से इस बात को कहा हैं की रामायण कालीन पुष्पक विमान अगस्त्य ऋषि द्वारा बनाया गया था। जिसका आधार अगस्त्य संहिता जैसी पुरानी पाण्डुलिपि थी।  जिसमे विभिन्न प्रकार के विमानों को विभिन्न प्रकार से बनाने का तरीका लिखा गया था। लेकिन हम राइट भाइयों को पढ़ेंगे और अपने ऋषियों को कल्पनिक मानेंगे।

अगस्त्य मुनि के अगनियान नामक ग्रन्थ में उन्होंने विमान में उपयोग होने वाले विद्युत् ऊर्जा के लिए 'मित्रावरुण तेज' का उल्लेख किया हैं। भरद्वाज ऋषि पहले ऐसे विमान शास्त्री थे जिन्होंने अगस्त्य मुनि के विद्युत् ज्ञान को अभिवर्धित किया। वेदो का निचोड़ निकाल कर महर्षि भरद्वाज ने "यंत्र सर्वस्व" नामक ग्रन्थ लिखा था। जिसमे सभी प्रकार के यंत्रो को बनाने तथा सञ्चालन विधि का विस्तारपूवर्क वर्णन हैं। उसका एक भाग वैमानिक शास्त्र हैं।

विमान शास्त्र पर टिका लिखने वाले बोधानन्द जी लिखते हैं की "महर्षि भरद्वाज ने वेद रूपी समुद्र का मंथन करके यंत्र सर्वस्व नाम का ऐसा अमृत निकाला हैं, जो मनुष्य मात्र को इक्षित फल देने वाला हैं। यंत्र सर्वस्व के चालीसवे अधिकरण में वैमानिक प्रकरण जिसमे विमान विषयक रचना के क्रम में कहे गए हैं। यह ग्रन्थ आठ अध्याय में विभाजित हैं तथा इसमें एक सौ अधिकरण और पाँच सौ सूत्र हैं। इस ग्रन्थ में विमान का विषय ही प्रधान हैं।"

अंतरास्ट्रीय संस्कृत शोध मंडल ने प्राचीन पांडुलिपियों को खोजने के बहुत प्रयास किए। फलस्वरूप जो ग्रन्थ मिले, उनके आधार पर भरद्वाज का विमान प्रकरण विमानशास्त्र प्रकाश में आया। जिसका उपयोग कर राइट भाइयो से लगभग दस साल पहले शिवकरबापुजी तलपड़े ने मुंबई के जुहू चौपाटी बिच पर मॉडर्न जमाने  हवाई जहाज बना के दिखा दिया था जिसे जान बूझकर अंग्रेजो द्वारा तहस नहस किया गया और शिवकर बापूजी तलपड़े की हत्या कर दी गई। शिवकर बापूजी तलपड़े के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे।   


अंग्रेजो का षड्यंत्र :

लगभग १७ वी शताब्दी तक ऐरोप्लेन नाम की कोई चीज बाकी दुनिया ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था और यहाँ भारत में हजारो साल से लोग विमान में यात्रा की कहानियाँ कहते और सुनते आ रहे थे। अंग्रेजो ने जब रामायण में विमान के बारे में पढ़ा तो उनके निचे की जमीन हिल गई। आजकल के मॉडर्न विज्ञान का जड़ अंग्रजो को मिल गया था। उन्होंने युद्ध स्तर पर हमारे ग्रन्थ पढ़ने और समझने लगे और उतनी ही तेजी से इंग्लैंड में  विज्ञान में नए नए खोज होने लगे 17 वी और 18 वी सदी में जितना चिकित्सा के, गणित के, खगोल के, रसायन के, भौतिक के विद्वान वैज्ञानिक बने जितना नए नए वैज्ञानिक खोजे हुई उतना आज तक पुरे मॉडर्न इतिहास में कभी नहीं हुआ। क्या कारण था इतने लोगो का दिमाग एक साथ ही खुलने का ? क्या कोई लॉटरी लगी थी ?हां भारत का बौद्धिक खजाना उनके हाथ लग चूका था और थोड़ा बहुत पढ़े लिखे लोगो द्वारा दबा के हमारे ग्रंथो से ज्ञान-विज्ञान का कॉपी पेस्ट किया जा रहा था और इंग्लैंड में उस चोरी के ज्ञान-विज्ञान को अपने नाम से छपवा कर नोबेल प्राइज जीता जा रहा था।



उस समय भारत में अंग्रेजो का जो गवर्नर था लार्ड मैकॉले उसने अपने एक विद्वान अधिकारी एडम से साक्षरता का सर्वे कर रिपोर्ट बनाने का आदेश दिया वह रिपोर्ट आज भी एडम रिपोर्ट  उपलब्ध हैं 17 वी सदी के आसपास तक भारत में साक्षरता दर 80% से ज्यादा था और आज 2019 में बताना पड़ रहा हैं की खुले में शौच नहीं करनी हैं साक्षरता को तो भूल जाइये अंग्रेज अपने षड्यंत्र में शत प्रतिशत सफल हुवे हमारे पैसे ज्ञान विज्ञान से वो खुद सभ्य बन गए और हमें जंगली, सपेरा और पशुचारवाहा बोल कर बदनाम कर गए ताकि उनका ही दबदबा बना रहे और उनमे बहुत हद तक वो सफल भी हुवे आज दुनिया उनके ही इशारे पर ही चल रही हैं और आज हम नए टेक्नोलॉजी के लिए अमेरिका, फ्राँस, रूस, इंग्लैंड का मुँह ताकते रहते हैं फिर कोई फ्राँस मेहरबानी कर राफेल दे देता हैं और हम खुश हो जाते हैं।

लार्ड मैकॉले ने खुद 25 साल तक संस्कृत का अध्यन किया और यह पाया की इतनी बौद्धिक सम्पदा जिस देश के पास हो उसे लम्बे समय तक गुलाम बनाए रखना नामुमकिन हैं इसीलिए यदि ऐसे देश को गुलाम बनाना हैं तो सबसे पहले इसके जड़ या ज्ञान को ख़त्म करना पड़ेगा। सोची समझे षड्यंत्र के तहत  अंग्रेजो ने हमारे ग्रंथो में मिलावट शुरू किया लोगो को कहानियों के बारे में भ्रमित किया जाने लगा ये रामायण  महाभारत पुराण सब कल्पना है। अंग्रेजो द्वारा शुरू किया गया वह षड्यंत्र आजादी के 70 सालो बाद भी हूबहू वैसा ही चल रहा हैं।

कृपया अपना सुझाव कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे उससे मुझे बहुत प्रेरणा मिलेगी धन्यवाद ! 

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