Navratra Vrat Katha Vidhi:- नवरात्र सम्पूर्ण व्रत कथा विधि एक बार की बात हैं देवगुरु बृहस्पति जी ने ब्रह्मा जी से एक प्रश्न किया हे ! ब्राह्मण श्रेष्ठ , अश्विन व चैत्र मास के शुक्लपक्ष में नवरात का व्रत और उपासना क्यों किया जाता हैं ? नवरात्री की इस उपासना से किन शुभ फलो की प्राप्ति होती हैं ? नवरात्री साधना की पूजा-विधि क्या हैं ? सबसे पहले किसने इस व्रत को किया था ? कृपया विस्तार से बताने का कष्ट करे।
ब्रह्माजी कहा- हे बृहस्पते ! आपने जिव हित में बहुत बहुत ही अच्छा प्रश्न पूछा। मानव का कल्याण करने वाली तथा सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाली यह नवरात्र व्रत कथा को मै विस्तार पूर्वक बता रहा रहूँ। आप इस नवरात्र व्रत कथा को गंभीर होकर ध्यान से सुने।
Navratra Vrat Katha Vidhi |
यह नवरात्र व्रत सर्व मनोकामनाओ की पूर्ति करने वाला हैं। यह नवरात्र व्रत कथा कुष्ठियों को कुष्ठ जैसे असाध्य रोग से पूर्ण रूप से मुक्ति दिलाने वाला हैं। यह व्रत पुत्र की कामना करने वालो को पुत्र, धन की लालसा करने वाले को धन, विद्या की कामना करने वाले को विद्या, सुख की इक्षा करने वाले को सुख प्रदान करने वाला व्रत हैं।
Navratra Vrat Katha Vidhi नवरात्र सम्पूर्ण व्रत कथा विधि
इस व्रत को करने से मनुष्य की सारी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, घर में समृद्धि की वृद्धि होती हैं, समस्त पापो से छुटकारा मिलता हैं और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता हैं। जो शादीशुदा स्त्री इस व्रत को नहीं करती हैं उसके घर में समृद्धि रुक जाती हैं तरह-तरह के व्यवधान आते हैं। पति का सुख प्राप्त नहीं हो पता हैं।
यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास नहीं कर पाए तो उसे सिर्फ एक समय का भोजन करना चाहिए सुबह के समय में फलाहार करना चाहिए और दस दिन बंधू-बान्धवों सहित नवरात्र व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए।
हे बृहस्पति जिसने सबसे पहले इस महाव्रत को किया हैं वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूँ तुम ध्यान लगा कर सुनो। इस प्रकार ब्रह्माजी का वचन सुन कर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण मनुष्य का कल्याण करने वाली इस नवरात्र व्रत कथा के इतिहास को कहे, मैं सावधान होकर सुन रहा हूँ। मैं आपके शरण में आया हूँ मुझपर कृपा करें।
ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पठित नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसको सर्वगुणसम्पन्न सुमति नाम की बहुत ही सुन्दर एक कन्या हुई। वो दिन प्रतिदिन बड़ी हो रही थी और उसकी सुन्दरता भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
हे बृहस्पति जिसने सबसे पहले इस महाव्रत को किया हैं वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूँ तुम ध्यान लगा कर सुनो। इस प्रकार ब्रह्माजी का वचन सुन कर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण मनुष्य का कल्याण करने वाली इस नवरात्र व्रत कथा के इतिहास को कहे, मैं सावधान होकर सुन रहा हूँ। मैं आपके शरण में आया हूँ मुझपर कृपा करें।
ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पठित नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसको सर्वगुणसम्पन्न सुमति नाम की बहुत ही सुन्दर एक कन्या हुई। वो दिन प्रतिदिन बड़ी हो रही थी और उसकी सुन्दरता भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।
उसके पिताजी प्रतिदिन भगवती की पूजा करके होम करते थे सुमति नियम से प्रतिदिन होम के समय उपस्थित रहती थी। एक दिन सुमति अपने सहलियों के साथ खेलने में इतनी मशगूल हो गई की वह होम समय उपस्थित नहीं हो पाई।
नवरात्र व्रत कथा विधि
पुत्री की ऐसी असावधानी के कारण उसके पिता बहुत ही क्रोधित हुवे और सुमति को उसका विवाह किसी लंगड़ा अपंग या कुष्ठ्रोगी रोगी से करने देने की धमकी दे दिए।
पिता द्वारा कहे गए ऐसे वचन सुन कर सुमति को बहुत दुःख हुआ और सुमति ने कहा की पिताजी मैं तो आपके अधीन हूँ मेरे लिए आपकी आज्ञा का पालन करना ही मेरा धर्म हैं यदि आप मेरे विवाह कुष्ठ रोगी से कर देंगे और भाग्य में भी वही लिखा होगा तो मैं ख़ुशी-ख़ुशी उस कुष्ठ रोगी के साथ जीवन-यापन कर लूँगी ।
पिता द्वारा कहे गए ऐसे वचन सुन कर सुमति को बहुत दुःख हुआ और सुमति ने कहा की पिताजी मैं तो आपके अधीन हूँ मेरे लिए आपकी आज्ञा का पालन करना ही मेरा धर्म हैं यदि आप मेरे विवाह कुष्ठ रोगी से कर देंगे और भाग्य में भी वही लिखा होगा तो मैं ख़ुशी-ख़ुशी उस कुष्ठ रोगी के साथ जीवन-यापन कर लूँगी ।
मनुष्य को वही मिलता हैं जो उसके भाग्य में लिखा होता हैं जो कर्म करता हैं उसे वैसा ही फल प्राप्त होता हैं।
सुमति के निर्भयता भरे वचन सुनकर उसके पिता को और क्रोध आया और उन्होंने सुमति का विवाह एक कुष्ठ रोगी से कर दिया और बोला पुत्री अपने कर्मो का फल भुगतो और देखते हैं भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो?
सुमति के निर्भयता भरे वचन सुनकर उसके पिता को और क्रोध आया और उन्होंने सुमति का विवाह एक कुष्ठ रोगी से कर दिया और बोला पुत्री अपने कर्मो का फल भुगतो और देखते हैं भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो?
पिता जी के ऐसे कटु वचन सुनकर सुमिता को बहुत दुःख हुआ और अपने दुर्भाग्य पर विचार कर दुखी मन से अपने पति के साथ वन में चली गई और वही रहने लगी। उस डरावने निर्जन जंगल में कांटेदार झाडिया में वह रात बड़े ही कष्ट से बीते। भूख-प्यास से उनकी हालत ख़राब हो रही थी रोग भी बढ़ रहा था उसके पति को अत्यंत दर्द भी हो रहा था।
उस गरीब बालिका का ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व जन्म पुण्य के प्रभाव से सुमति के आगे प्रकट हुई और बोली हे दिन ब्राह्मणी! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वो वर माँग सकती हो। भगवती देवी के ऐसे वचन सुन सुमति ने कहा- आप कौन हैं कृपया विस्तार से बातये ?
उस गरीब बालिका का ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व जन्म पुण्य के प्रभाव से सुमति के आगे प्रकट हुई और बोली हे दिन ब्राह्मणी! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वो वर माँग सकती हो। भगवती देवी के ऐसे वचन सुन सुमति ने कहा- आप कौन हैं कृपया विस्तार से बातये ?
सुमति की बात सुनकर देवी भगवती ने कहा मैं आदिशक्ति भगवती हूँ, मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूँ। मैं ही नवदुर्गा हूँ। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुःख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूँ। हे ब्राह्मणी ! मैं तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में किए गए पुण्य कर्म से प्रसन्न हूँ।
मैं तुम्हे तुम्हारे पूर्व जन्म में किए गए पुण्य कर्म की कहानी सुनाती हूँ। पूर्व जन्म में तुम निषाद(भील) की स्त्री थी, तुम बहुत ही पतिव्रता भी थी। एक दिन तुम्हारे पति निषाद ने चोरी की फिर उसके बाद सैनिको ने तुम दोनों को कारगर में बंद कर दिया और भोजन भी नहीं दिया।
मैं तुम्हे तुम्हारे पूर्व जन्म में किए गए पुण्य कर्म की कहानी सुनाती हूँ। पूर्व जन्म में तुम निषाद(भील) की स्त्री थी, तुम बहुत ही पतिव्रता भी थी। एक दिन तुम्हारे पति निषाद ने चोरी की फिर उसके बाद सैनिको ने तुम दोनों को कारगर में बंद कर दिया और भोजन भी नहीं दिया।
उस समय नवरात्र का समय चल रहा था कारावास में होने के कारन अनजाने में नवरात्र के पवित्र समय में व्रत किया उसीका फल हैं की मैं तुमपर प्रसन्न हूँ माँगो, क्या मनोरथ हैं तुम्हारी ? साक्षात् भगवती को अपने सामने खड़ा जान सुमति ने उन्हें प्रणाम किया और अपने पति के कुष्ठ रोग को ठीक करने की प्रार्थना की।
माँ भगवती की कृपा से सुमति के पति का कुष्ठ रोग ख़त्म हो गया और उसका शरीर कांतिमय ओजपूर्ण हो गया। सुमति अपने पति का सुन्दर निरोगी शरीर देख के माँ भगवती की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे ! आप दुर्गति को दूर करने वाली हो सुख को प्रदान करने वाली जगत की माता हो। हे जगदमाता! मुझ निर्धन पर दया करो मैं वन-वन भटक रही हूँ मेरी रक्षा करो।
ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पति! उस ब्राह्मणी की स्तुति सुन माँ भगवती उस पर प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी तुझे उदालय नामक अत्यंत बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान, जितेंद्रिये पुत्र शीघ्र ही उत्पन्न होंगे। ऐसा वर देने के बाद माँ भगवती ने ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी और जो कुछ इक्षा हो तो बोलो। नवरात्र के नौ दिन मै ही नौ रूपों को धारण करती हूँ और अपने भक्तों के दुःख को दूर करती हूँ।
ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पति! उस ब्राह्मणी की स्तुति सुन माँ भगवती उस पर प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी तुझे उदालय नामक अत्यंत बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान, जितेंद्रिये पुत्र शीघ्र ही उत्पन्न होंगे। ऐसा वर देने के बाद माँ भगवती ने ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी और जो कुछ इक्षा हो तो बोलो। नवरात्र के नौ दिन मै ही नौ रूपों को धारण करती हूँ और अपने भक्तों के दुःख को दूर करती हूँ।
सुमति ने कहा- की हे देवी! यदि आप मुझपर इतना प्रसन्न हैं तो नवरात्र व्रत की विधि और उससे मिलने वाले फल को विस्तार में बताने का कष्ट करे।
माँ भगवती दुर्गा के नौ रूप के बारे में पढ़े।
महात्म्य बोले- और इस प्रकार सुमति के वचन सुन माँ दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें सम्पूर्ण पापो को नाश करने वाली नवरात्र व्रत की विधि के बारे में बताती हूँ जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिनों तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर न कर सके तो एक समय का भोजन करे।
माँ भगवती दुर्गा के नौ रूप के बारे में पढ़े।
महात्म्य बोले- और इस प्रकार सुमति के वचन सुन माँ दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें सम्पूर्ण पापो को नाश करने वाली नवरात्र व्रत की विधि के बारे में बताती हूँ जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिनों तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर न कर सके तो एक समय का भोजन करे।
विद्वान् ब्राह्मणो से पूछ कर कलश की स्थापना करें और वाटिका बना कर प्रतिदिन जल से उसकी सिंचाई करें। महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती देविओं मूर्तियाँ स्थापित कर उनकी नित्य विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य देने से उस मनुष्य के सभी मनोरथ मैं सिद्ध करती हूँ।
बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती हैं, जायफल से अर्घ्य देने कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य सिद्ध होती हैं। आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति होती हैं, और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती हैं। इसप्रकार फूलो और फलो से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवे दिन यथा विधि हवन करें।
खांड, घी, गेहूँ, शहद, जौ, तिल, बिल्व, नारियल, दाख और कदम्ब आदि से करें। गेहूँ से हवन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं, खीर व चम्पा के पुष्पों से धन की, बेल के पत्तो से तेज और सुख की प्राप्ति होती हैं। आँवले से कीर्ति तथा केले से हवन करने पर पुत्र की प्राप्ति होती हैं। कमल से राजकीय सम्मान की तो दाख से सम्पदा प्राप्ति होती हैं।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि-विधान से व्रत समाप्त कर होम कर आचार्य विनम्रता से प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा देकर संतुष्ट करें। इस प्रकार बताई विधि द्वारा जो मनुष्य व्रत करता हैं उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें थोड़ा सा भी संशय नहीं हैं।
बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती हैं, जायफल से अर्घ्य देने कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य सिद्ध होती हैं। आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति होती हैं, और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती हैं। इसप्रकार फूलो और फलो से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवे दिन यथा विधि हवन करें।
खांड, घी, गेहूँ, शहद, जौ, तिल, बिल्व, नारियल, दाख और कदम्ब आदि से करें। गेहूँ से हवन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं, खीर व चम्पा के पुष्पों से धन की, बेल के पत्तो से तेज और सुख की प्राप्ति होती हैं। आँवले से कीर्ति तथा केले से हवन करने पर पुत्र की प्राप्ति होती हैं। कमल से राजकीय सम्मान की तो दाख से सम्पदा प्राप्ति होती हैं।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि-विधान से व्रत समाप्त कर होम कर आचार्य विनम्रता से प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा देकर संतुष्ट करें। इस प्रकार बताई विधि द्वारा जो मनुष्य व्रत करता हैं उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें थोड़ा सा भी संशय नहीं हैं।
इन नौ दिनों में जो कुछ भी दान किया जाता हैं उसका करोडो गुणा फल मिलता हैं। इस नवरात्र व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ करने का फल मिलता हैं। हे ब्राह्मणी ! सर्व मनोकामनाओ को सिद्ध करने वाली इस व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि पूर्वक करना चाहिए।
माँ भगवती दुर्गा के नौ रूप के बारे में पढ़े।
ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को नवरात्र व्रत कथा की विधि और फल बता कर देवी अंतर्ध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को करता हैं उसे इस लोक में तो सुख को प्राप्त कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता हैं। हे बृहस्पते! यह इस नवरात्र व्रत का माहात्म्य हैं जो मैंने तुम्हे सुनाया हैं।
माँ भगवती दुर्गा के नौ रूप के बारे में पढ़े।
ब्रह्माजी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को नवरात्र व्रत कथा की विधि और फल बता कर देवी अंतर्ध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को करता हैं उसे इस लोक में तो सुख को प्राप्त कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता हैं। हे बृहस्पते! यह इस नवरात्र व्रत का माहात्म्य हैं जो मैंने तुम्हे सुनाया हैं।
यह सुन कर आनंद से भरकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण! आपने मुझ पर अति कृपा की नवरात्र व्रत कथा सुनाई तथा व्रत विधि वाले फलो को भी विस्तारपूर्वक बताया। ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पति! यह देवी भगवती आदिशक्ति हैं तथा सारे लोको का पालन करने वाली हैं, इस महादेवी के लीला को कौन समझ सकता हैं ?
जय माता दी।
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जय माता दी।
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