Madan Lal Dhingara - भारत का इतिहास महान क्रांतिकारियों से भरा पड़ा हैं। यह देश उन महान वीरो को हमेशा याद रखता है जिन्होंने हमारी आज़ादी के लिए अपने प्राणो की आहुति हँसते हँसते दे दी। लाखो बलिदानियों के महान बलिदान का ही देन है की आज भारत आजाद है और विश्व में विकास और कूटनीति का नया अध्याय लिख रहा हैं। समय साथ कई बलिदानो को याद भी नहीं रखा गया षड्यंत्र के तहत आम जनता से भी दूर किया गया। कई महान क्रांतिकारियों के प्रेरक कहानियों को पाठ्य पुस्तकों में जगह ही नहीं मिली।
ऐसे महान क्रन्तिकारी मदनलाल ढींगरा जिन्होंने खुदीराम बोस,कन्हाई लाल दत्त जैसे महान क्रन्तिकारीयो के मौत का बदला लेने के लिए लन्दन में भरी सभा में कर्ज़न वायली का वध किया और खुदीराम बोस और कन्हाई दत्त के मौत साथ ही अंग्रेजो द्वारा किये गए लाखो हत्या का बदला लिया।
मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितम्बर 1883 पंजाब प्रान्त के एक संपन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। मदनलाल ढींगरा जी के पिताजी का नाम गीता मल था जो अमृतसर में एक सिविल सर्जन थे तथा अंग्रेज अधिकारियो से बहुत नजदीकी सम्बन्ध थे। ढींगरा के पिताजी पूरी तरह से अंग्रेजी रंग में रंग चुके थे। मदनलाल ढींगरा जी की माताजी भारतीय संस्कारो से परिपूर्ण और अत्यन्त धार्मिक थी। मदन लाल ढींगरा अपने माता पिता के सात सन्तानो में से छठी संतान थे। मदनलाल ढींगरा की पढाई सन 1900 तक एमबी इंटरमीडियट कॉलेज में हुई थी। जिसके बाद वे लाहौर के सरकारी स्कूल में आगे की पढाई के लिए गए।
राष्ट्रवादी विचारधारा वाले मदन लाल लाहौर के एक कॉलेज में पढाई के दौरान क्रन्तिकरियो के साथ अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। अंग्रेजो से स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रियकलापो में सम्मिलित होने के कारन मदन लाल ढींगरा अंग्रेजो के नजर में खटकने लगे थे। 1904 में लाहौर सरकारी कॉलेज के प्रधानाध्यापक की बात न मानने के कारण क्रन्तिकारी ढींगरा को स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रांति के आरोप लगा कर निकाल दिया गया। उसके बाद परिवार ने भी उनसे रिस्ता तोड़ लिया।
ऐसे महान क्रन्तिकारी मदनलाल ढींगरा जिन्होंने खुदीराम बोस,कन्हाई लाल दत्त जैसे महान क्रन्तिकारीयो के मौत का बदला लेने के लिए लन्दन में भरी सभा में कर्ज़न वायली का वध किया और खुदीराम बोस और कन्हाई दत्त के मौत साथ ही अंग्रेजो द्वारा किये गए लाखो हत्या का बदला लिया।
Madan Lal Dhingara |
मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितम्बर 1883 पंजाब प्रान्त के एक संपन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। मदनलाल ढींगरा जी के पिताजी का नाम गीता मल था जो अमृतसर में एक सिविल सर्जन थे तथा अंग्रेज अधिकारियो से बहुत नजदीकी सम्बन्ध थे। ढींगरा के पिताजी पूरी तरह से अंग्रेजी रंग में रंग चुके थे। मदनलाल ढींगरा जी की माताजी भारतीय संस्कारो से परिपूर्ण और अत्यन्त धार्मिक थी। मदन लाल ढींगरा अपने माता पिता के सात सन्तानो में से छठी संतान थे। मदनलाल ढींगरा की पढाई सन 1900 तक एमबी इंटरमीडियट कॉलेज में हुई थी। जिसके बाद वे लाहौर के सरकारी स्कूल में आगे की पढाई के लिए गए।
स्वतंत्रता सम्बन्धी कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के कारण घर से निकाल दिया गया :-
ढींगरा जी का परिवार अंग्रेजो का विश्वासपात्र बन चूका था। अंग्रेजो द्वारा की जा रहे अत्याचारों को देख कर, अंग्रेजो द्वारा रोज किए जा रहे हत्याओ को देख कर ढींगरा जी का मन रोने लगा और उनको क्रोध भी बहुत आया भारत की ऐसी बुरी स्थिति देख कर युवा मदनलाल के मन में क्रांतिकारी विचारधारा का सृजन हुआ और उन्होंने अपने देश को अंग्रेजो से स्वतंत्र करने का शपथ लिया और फिर मदन लाल ढींगरा क्रांति में कूद पड़े। अंग्रेजो की चापलूसी मदनलाल को बिलकुल भी पसंद नहीं थी उनके दिमाग में सिर्फ राष्ट्र भावना थी राष्ट्र को स्वतंत्र करने की लालसा थी।राष्ट्रवादी विचारधारा वाले मदन लाल लाहौर के एक कॉलेज में पढाई के दौरान क्रन्तिकरियो के साथ अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। अंग्रेजो से स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रियकलापो में सम्मिलित होने के कारन मदन लाल ढींगरा अंग्रेजो के नजर में खटकने लगे थे। 1904 में लाहौर सरकारी कॉलेज के प्रधानाध्यापक की बात न मानने के कारण क्रन्तिकारी ढींगरा को स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रांति के आरोप लगा कर निकाल दिया गया। उसके बाद परिवार ने भी उनसे रिस्ता तोड़ लिया।
Madanlal Dhingara 1992 Stamp of India |
तांगा चलाने का कार्य से लेकर कारखाना में श्रमिक का कार्य भी किए :-
परिवार से रिस्ता टूट जाने के बाद मदनलाल ढींगरा के पास कोई ठिकाना नहीं था। फिर खोजते खोजते उन्हें एक क्लर्क की नौकरी मिली और फिर वो अपना जीवन यापन करने लगे साथ ही क्रांतिकारी गतिविधियों में उपस्थित होने लगे जिस वजह से क्लर्क की नौकरी भी हाथ से चली गई। बाद में जीवन यापन के लिए मदनलाल ने तांगा भी चलाया और कुछ दिन उससे गुजारा किया फिर उसके बाद एक बड़े कारखाने में श्रमिक का कार्य भी किया और वहाँ उन्होंने श्रमिकों के अंदर देश भक्ति की भावना जगाने के लिए एक श्रमिक यूनियन बनाना चाहा लेकिन इसी क्रांतिकारी कार्यो के कारण वहाँ से भी उनको निकाल दिया गया। उसके बाद कुछ दिनों तक मुंबई में कार्य किया और जैसे तैसे जीवन यापन किया। इन सब समय के दौरान वो पुरे भारत में अंग्रेजो की क्रूरता को देख रहे थे अंग्रेजो द्वारा निर्मम रूप से जो निर्दोष भारतीयों की प्रतिदिन हत्याएं की जा रही उन सभी का बदला लेने की तीव्रता मदनलाल ढींगरा की आँखों में साफ़ झलकता था।
उसके बाद ढींगरा ने अपने आप को भी गोली मारनी चाही लेकिन तब तक उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। मदन लाल ढींगरा को जब कोर्ट लाया गया तो उन्होंने कहा की "उनको कोई दुःख नहीं हैं की उन्होंने यह कार्य किया हैं उन्हें गर्व हैं की वो भारतीयों के मौत का बदला लेने में कामयाब हुवे"। 23 जुलाई 1909 को ढींगरा मामले की सुनवाई लंडनमे पुराने बेली कोर्ट में हुई। अदालत ने उन्हें मृत्युदंड का आदेश दिया।
बड़े भाई के सहयोग से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश गए :-
उसके बाद 1906 में बड़े भाई के सलाह पर आगे की पढाई के लिए उन्हें लन्दन आना पड़ा। लन्दन पहुँच कर मदनलाल ढींगरा ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया। लन्दन में प्रवास के दौरान भी उनके मन से अंग्रेजो से बदला लेने का भाव हमेशा रहता था। लन्दन में रहते हुवे उन्हें कई क्रांतिकारियों से मुलाकात हुई जैसे विनायक दामोदर सावरकर। वीर सावरकर से मिलने के बाद मदनलाल सावरकर से प्रभावित हुवे बिना नहीं रह सके।
सावरकर का सानिध्य :-
लन्दन में पहली बार मदनलाल ढींगरा प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिले और उनसे प्रभावित हुवे बिना नहीं रह सके उन्होंने वीर सावरकर को अपना गुरु मान लिया। सावरकर और वर्मा जी भी ढींगरा का प्रचंड देशभक्ति देख कर प्रभावित हुवे। लन्दन स्थित इंडिया हॉउस जहाँ भारतीय क्रन्तिकारी का केंद्र था वही मदनलाल ढींगरा रहा करते थे। सावरकर जी ने ही मदनलाल ढींगरा को अभिनव भारत नाम के क्रन्तिकारी संस्था का सदस्य बनाया और बन्दुक चलाना सिखाया। लन्दन में इंडिया हॉउस उस समय भारतीय विद्यार्थियों के राजनितिक क्रियाकलापों का केंद्र था। ये सभी लोग अंग्रेजो द्वारा भारत में की जा रही अमानवीय हत्याओं के खिलाफ थे साथ ही खुदी राम बोस और कन्हाई लाल दत्त जैसे क्रांतिकारियों की हत्या से भी क्रोधित थे।
कर्ज़न वायली का वध:-
कर्ज़न वायली लम्बे समय से भारत में तैनात थे तथा सीक्रेट पुलिस के प्रमुख थे। कर्जन वायली के हाथो कई भारतीय बेकसूरों की जान गई थी कई क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा भी हुई थी यही कारन था की कर्ज़न वायली भारतीय क्रांतिकारियों की नजर में खटक रहे थे।अंग्रेजो ने कर्ज़न वायली के सुरक्षा के चलते उन्हें वापस लन्दन बुला लिया था और इसीलिए वीर सावरकर, श्यामजी कृष्ण वर्मा ने लन्दन में ही कर्ज़न वायली को मारने का सफल प्रोग्राम बनाया।
1 जुलाई 1909 की शाम को इंडियन नैशनल एसोसियशन के समारोह में भाग लेने के लिए हजारो की सँख्या में भारतीय और अंग्रेज उपस्थित हुवे थे। समारोह समापन के बाद जैसे ही सर विलियम हट कर्ज़न वायली निकल रहे थे ढींगरा ने पास आकर उनके ऊपर पाँच राउंड गोलियाँ चलाई जिसमे से चार गोली सीधे कर्ज़न वायली के चेहरे पर लगी और वायली वही ढेर हो गया पाँचवी गोली एक पर्सियन डॉक्टर लालकका को लगी और उनकी भी मृत्यु हो गई।
फाँसी पर लटकने से पहले मँगवाया था आइना :-
लन्दन के बेली कोर्ट से फांसी सजा पाए ढींगरा को 17 अगस्त 1909 को फाँसी पर लटका दिया गया और उनकी लीला समाप्त हो गई। ढींगरा जी को अपनी मौत का कोई गम नहीं था फांसी पर लटकने से ठीक पहले ढींगरा जी ने आइना मनवाया और उसमे अपने बालो और टाई को ठीक किया और हँसते हँसते फाँसी पर झूल गए और हमेशा हमेशा के लिए चिर निंद्रा में सो गए।
madan lal dhingara samarak |
कर्ज़न वायली और ढींगरा जी के पिताजी आपस में बहुत अच्छे मित्र थे। ढींगरा जी ने अपने पिता के मित्र की हत्या की थी इसीलिए ढींगरा के पिता ने उनसे सभी संम्बंध तोड़ दिए तथा उनकी अश्थियों को भी छोड़ दिए। बाद में लोगो के दबाव के कारण सरकार ने उनकी अश्थियों को लन्दन से मँगवाकर उनके याद में अजमेर राजस्थान में एक स्मारक बनवाया हैं।
0 टिप्पणियाँ