मोक्षगुंडम विश्वरैया जी के जन्मदिवस पर मनाये जाने वाले इंजीनियर दिवस की प्रेरक कहानी।

                     अभियंता दिवस क्यों मनाया जाता हैं ?  

भारत के महान अभियंताओं वैज्ञानिको शिक्षकों के जीवन से प्रेरणा लेने के लिए उनके महान कार्यों को याद रखने के लिए उनके जन्म दिवस को हम विभिन्न दिवस के रूप में मनाते हैं। अभियंता दिवस के पीछे भी एक महान भारतीय अभियंता की आश्चर्यजनक बौद्धिक क्षमता की कहानी हैं। आइये इंजीनियर या अभियंता दिवस के मौके पर उस महान व्यक्तित्त्वा पर प्रकाश डाले।  

सन 1890 की बात हैं इंग्लैंड की भूमि पर ट्रेन तीव्र गति से अपने पटरियों पर सरपट दौड़ रही थी ट्रेन के सभी डिब्बों में अँग्रेज खचाखच भरे पड़े थे। सभी डिब्बों में लगभग शांति थी। सभी रास्तो पर टकटकी लगाए यात्रा का आनंद ले रहे थे लेकिन एक डिब्बे में शोरगुल कुछ ज्यादा ही था अंग्रेज बड़बड़ा रहे थे, गुस्से में थे, किसी को बहुत ही अपशब्द बोल रहे थे, गालिया भी दे रहे थे ये "ये कहा से आ गया ", "ट्रेन से उतारो इसे " 'इसको किसने ट्रेन पर चढ़ाया" डिब्बे के लगभग सभी अंग्रेजो का गुस्सा सामने बैठे धोती कुर्ता पहने एक भारतीय पर था लेकिन वह भारतीय बिना ध्यान दिए अपने मंथन में लगे थे। इतने अपशब्द इतने अपमान सुनाने के बाद भी उस भारतीय चेहरे पर ढृढ़ता शांति देख कर मानो ऐसा लग रहा जैसे वह भारतीय उस डब्बे में क्या हो रहा हैं उसकी तनिक भी फर्क नहीं थी। ऐसी उदारता ऐसी सौम्यता राक्षसी सभ्यता वाले अंग्रेजो के समझ से बाहर हैं। उस भारतीय का धैर्य उन अंग्रेजो को और क्रोधित कर रहा था वो क्रोध में आग बबूला हो रहे थे जबकि वो भारतीय निश्चिन्त हो कर अपने सीट पर बैठा शांति और यात्रा का आनंद उठा रहा था। 
   
अंग्रेजो के नस्लवाद के बिच ट्रेन बेखबर हो कर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी। तभी एक बहुत ही चौकाने वाला घटना उसी डिब्बे में हुआ जिस डिब्बे में वह भारतीय बैठा था। अपने मान अपमान से बेखबर वह भारतीय किसी गहरी खोज में डूबा हुआ था उसके चेहरे के भावो से ऐसा प्रतीत हो रहा था की वह कोई अकस्मात् निर्णय लेने वाला हैं उस भारतीय के चेहरे का भाव गंभीर हो रहे थे और तभी पूरी शक्ति से वही भारतीय चिल्लाया की ट्रेन रोको और बिजली की भाँति अपने सीट को छोड़ते हुवे डिब्बे में लगी चैन खींच दी जिससे की ट्रेन कुछ दुरी पर जा रुकी।


अंग्रेजो का नस्लवादी गुस्सा पहले से झेल रहे इस भारतीय ने मानो ऐसा काम कर दिया था की आ बैल मुझे मार। तेजी से अपने पथ पर दौड़ रही ट्रेन को बिना वजह रोक देने से वही हुआ जिसकी आशंका थी डिब्बे के अंग्रेजो का गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ गया वो अब और अभद्र अभद्र गालिया देने लगे उस भारतीय पर नस्लवादी टिप्पड़ी करने लगे। तभी ट्रेन का गार्ड आया वो गुस्से में चिल्लाने लगा "किसने ट्रेन रोकी ?" पता चलने पर गार्ड ने अपनी लाल पिली आँखे कर के उस भारतीय से पूछा क्या "तुम्हे नहीं मालूम की चलती हुई ट्रेन को चैन खींच कर रोकना अपराध हैं ?"


 उस भारतीय ने बहुत ही शांत और सहज भाव में कहा की "श्रीमान यहाँ से "लगभग 220 गज पर ट्रेन की पटरी टूटी हुई हैं यदि मैं चैन नहीं खींचता तो ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाता सैकड़ो लोगो  चली जाती।" यह बात सुनते ही डिब्बे के सभी अंग्रेजो आश्चर्य से भर गए और उनको और गुस्सा आया ये क्या जानता हैं ये हमारे साथ मजाक कर रहा हैं इसको सजा दो तभी उस भारतीय ने फिर कहा की " श्री मान आपलोग मेरे साथ चलिए और आगे खुद अपनी आँखों से देख लीजिये।" फिर उसके बाद गार्ड साथ में वो भारतीय और डिब्बे के कुछ अंग्रेज साथ टूटे पटरी को देखने चल दिए रास्ते में अंग्रेजो ने उस भारतीय का खूब उपहास उड़ाया लेकिन जब सभी जगह पर पहुँचे  सबका मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रहा गया। सबके मुँह पर सिर्फ एक ही  डब्बे में बैठ कर आपने कैसे अनुमान लगा लिया की आगे पटरी टूटी हुई हैं ?


तब उस भारतीय ने बताया की मै ट्रेन के गती पर अपना ध्यान लगाया था तभी ट्रेन की गति में मुझे कम्पन्न महशुस हुई और ऐसा कम्पन्न तभी होता हैं जब आगे पटरी टूटी हुई हो या पटरी का नट ढ़ीला हो। सैकड़ो अंग्रेजो की जान बचाने वाले उस भारतीय का उपहास उस डिब्बे में नहीं उड़ रहा था बल्कि अपनी शांति और बौद्धिक क्षमता के दम पर एक भारतीय अभियंता ने बिना कुछ बोले उपहास उड़ाने वाले अग्रजो का ही उपहास बना दिया।
 वह भारतीय कोई और नहीं बलिक महान अभियंता भारत के सबसे पहले सिविल इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वरैया थे।  जिनका जन्म 15 सितम्बर 1860 कर्णाटक के कोलर जिला में हुआ था। इनके जन्मदिन को श्रीलंका भारत तथा तंज़ानिया में इंजीनियर दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। भारत ऐसे विलक्षण प्रतिभाओ का देश हैं जिससे अनेक विलक्षण कहानियाँ सुनने को मिलती हैं।

भारत में प्रत्येक वर्ष प्रत्येक विश्वविद्यालय में 15 सितम्बर को इंजीनियर दिवस के रूप में मनाया जाता हैं और मोक्षगुंडम विश्वरैया को याद किया जाता हैं। बारह साल की उम्र में ही पिताजी का साया सर से उठ जाने के कारण मोक्षगुंडम की पढाई की राह कठिनाइयों से भर गई उन्होंने अपना प्रारंभिक शिक्षा चिक्कबल्लापुर तथा माध्यमिक शिक्षा बैंगलोर से ग्रहण की। मोक्षगुंडम बचपन  तेज विद्यार्थियों में से अव्वल थे।

1881 ईस्वी में उन्होंने BA की डिग्री सेंट्रल कॉलेज बैंगलोर से प्राप्त की। बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इन्होने डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग की डिग्री प्रात की। बॉम्बे के पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट में भी मोक्षगुंडम ने सेवाएं दी थी बाद में इंडियन इर्रिगेशन कमीशन से भी उनको बुलावा आया।

कृष्णा राजा सागर डैम मैसूर , टिगरा डैम ग्वालियर तथा खड़कवासला रिजर्वायर आदि बड़े डैम का निर्माण कार्य भी मोक्षगुंडम द्वारा बिना किसी नुक्सान के सफलता पूर्वक संपन्न किया गया था। 


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