क्या आप 1500 वर्ष पुराने सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में खड़े बाण स्तम्भ के रहस्य के बारे में जानते हैं ?
जब बाण स्तम्भ के बारे में खोजते खोजते हमें जिन बातो की जानकारी प्राप्त हुई उन बातो पर हम आश्चर्य से भर उठे, आखिर ऐसा ज्ञान या ऐसी सटीक जानकारी आज से हजारो साल पहले भारतीयों के पास कैसे थी ? यह कैसे संभव हो सकता है की जिस ज्ञान के बारे में हमने कुछ सौ साल पहले जाना उससे भी एडवांस ज्ञान भारत में हजारो साल पहले भी मौजूद था। डेढ़ हजार साल पहले इतना उन्नत विज्ञान भारतीयों के पास था इस पर विश्वास नहीं हो रहा था।
Baan Stambh in Somnath Temple |
सोमनाथ मंदिर में आकर कुछ ऐसी ही स्थिति हमारी हो गई थी। वैसे सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण तथा गौरवशाली रहा हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर में ही स्थित हैं। एक वैभवशाली, सुन्दर शिवलिंग !! इतना समृद्ध की उत्तर-पश्चिम दिशा से आने वाले सभी आक्रांताओ की सबसे पहली नजर इसी सोमनाथ मंदिर पर ही पड़ती थी।
अनेको बार सोमनाथ मंदिर पर हमले हुवे लूटपाट हुई। सोना, चाँदी, हिरा, बहुमूल्य रत्न आदि गाड़ियाँ भर भर आक्रांता ले गए। इतनी संपत्ति लूटने के बाद भी सोमनाथ मंदिर पुनः उसी वैभव के साथ खड़ा रहता था। सोमनाथ का मंदिर भारत के पश्चिम समुद्र तट पर स्थित है तथा प्रतिदिन विशाल अरब सागर भगवान् सोमनाथ का चरण पखारता हैं। अभी तक इस अरब सागर ने कभी भी अपनी मर्यादा का उलंघन नहीं किया हैं। न जाने कितने आँधी, तूफ़ान, चक्रवात आये लेकिन किसी भी आंधी तूफान चक्रवात से मंदिर को नुक्सान नहीं पहुँचा।
Somnath temple |
इस मंदिर प्रांगण में एक खम्बा स्थित हैं। जिसको बाणस्तम्भ के नाम से जाना जाता हैं। इस स्तम्भ का निर्माण उस प्राँगण में कब कराया गया इसकी तो कोई जानकारी नहीं पता लग सकी लेकिन लगभग छठी शताब्दी में इस बाणस्तम्भ का नाम इतिहास में आता हैं। इसका मतलब यह नहीं की इस बाणस्तम्भ का निर्माण छठी शताब्दी में ही किया गया हो, हो सकता हैं की इसका निर्माण छठी शताब्दी से बहुत पहले ही की गई हो। सबसे जरुरी बात यह है की यह बाणस्तम्भ का निर्माण क्यों हुआ इस बाणस्तम्भ की क्या उपयोगिता हैं यहाँ?
बाणस्तम्भ को देखने से ऐसा लगता हैं की यह एक दिशासूचक की तरह हैं इसके ऊपर एक बाण हैं जो सीधे दक्षिण की तरफ सुनसान समुद्र की तरफ इशारा करता हैं। कोई दिशासूचक एक खास दिशा या किसी विशेष जगह की तरफ का दिशा बताती हैं लेकिन सुनसान वीरान समुद्र की तरफ यह बाणस्तम्भ किस दिशा की तरफ या किस जगह की तरफ इशारा कर रहा हैं ?आखिर यह बाणस्तम्भ क्या बताना चाहता हैं ?
इस बाणस्तम्भ के थोड़ा नज़दीक जाने पर एक संस्कृत में श्लोक लिखा दिखा
"आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत
अबाधित ज्योतिरमार्ग "
इन पंक्तियों का अर्थ यह हैं की "समुद्र में यहाँ से दक्षिण ध्रुव तक बिना किसी बाधा वाला ज्योतिरमार्ग हैं।" इसका सरल अर्थ यह है की बाणस्तम्भ से लेकर दक्षिण ध्रुव के बिच सीधी रेखा में कोई भी जमीं का टुकड़ा या अवरोध नहीं हैं " यदि मान भी ले छठी शताब्दी में इस स्तम्भ को बनाया गया और यह संस्कृत श्लोक लिखा गया तो आज से लगभग 1400 साल पहले क्या दक्षिण ध्रुव की जानकारी हम भारतीयों के पास थी ? यदि दक्षिण ध्रुव की जानकारी भारतीयों के पास थी तब तो उत्तरी ध्रुव की भी अवश्य जानकारी होगी फिर तो पूरा इतिहास दुबारा लिखने की जरुरत हैं।
आखिर ऐसा कैसे संभव हैं ? और यदि संभव है तो हम कितने समृद्धशाली थे। भारत को विश्वगुरु कहा जाता हैं फिर पाठपुस्तक में भारतीय वैज्ञानिक दीखते क्यों नहीं हैं आप गणित उठालीजिये या रसायन या फिर भौतिकी हर जगह विदेशी वैज्ञानिक ही आपको दीखते हैं। हमने यह भी सुना हैं की दशमलव प्रणाली और शून्य की खोज भी भारत ने की थी लेकिन इन सब बातो को कितना प्रसारित किया गया और इन सब बातो पर कितनी शोध की जाती हैं ? इतना समृद्धशाली ज्ञान का स्रोत क्या क्या था ? आखिर ऐसा क्या हैं जो हम भारतीयों से जानबूझ कर छुपाया जा रहा है।मंदिरो में, धर्म में ज्ञान विज्ञान दीखता हैं तो उस पर सब मौन क्यों हो जाते हैं क्या अम्बेडकर और आइंस्टीन ही सबसे बुद्धिमान व्यक्ति थे ?क्या भारतीयों की खोज एक समुद्रीलुटेरा वास्कोडिगामा ने ही किया ? क्या भारत की खोज कभी सम्पूर्ण हो सकती हैं ?
बाणस्तम्भ पर संस्कृत लिखे इस श्लोक का बहुत ही गूढ़ अर्थ और रहस्य हैं आखिर यह इशारा किस प्रयोजन के लिए था और आखिर ज्योतिरमार्ग के पीछे क्या रहस्य था? इस मार्ग का उपयोग कौन करता था ? मार्ग किस समय चालू हालत में था ? यात्रा का माध्यम क्या था ?क्या कोई समुद्री नाँव थी या कोई एडवांस नाव था? हजार प्रश्न उठने लगे हमारे लिए इनका अर्थ जानना असंभव हो गया।
संस्कृत में एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं कौन सा अर्थ कहा लगेगा यह बात कोई संस्कृत विद्वान् ही बता पाएगा। सरल अर्थ यह है की "इस मंदिर से बाण की दिशा में सीधे दक्षिण ध्रुव या अंटार्कटिक तक बिच में कोई भी रुकावट या अवरोध नहीं हैं। " इस बात की सत्यतता जाँच करना आजके कथित मॉडर्न युग में कोई असंभव कार्य नहीं हैं। गूगल मैप पर देखने से थोड़ा खोजने से इस संस्कृत के श्लोक की सत्यता पर विश्वास हो जाता हैं। फिर भी मूल प्रश्न वही रह जाता हैं आखिर हजारो साल पहले इतना गूढ़ ज्ञान भारतीयों था और यदि था भी तो उसका विकास आज तक क्यों नहीं हुआ। उसका सदुपयोग क्यों नहीं हुआ ? उन समृद्ध ज्ञान का क्या स्रोत था ?
इसका सीधा सा मतलब हैं की बाण स्तम्भ का निर्माण जब हुआ था उस समय भारतीयों को पृथ्वी के भौगोलिक स्थिति का पूरा गया था पृथ्वी गोल है इसका भी ज्ञान था साथ ही अपने कक्ष पर तथा सूर्य के चारो तरफ चक्कर लगाती हैं इसका भी ज्ञान था ?
भारत में तो संस्कृत को पोथी पतरा की भाषा बोल के प्राचीन बोल के मजाक उड़ा दिया जाता हैं लेकिन वैज्ञानिको ने संस्कृत को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा बताया हैं हम भारतीय तो अंग्रेजी पढ़ने में बिजी हैं। पूजा पाठ थोड़े करानी हैं।
भारत को समझना होगा की बाणस्तम्भ का रहस्य या अशोक स्तम्भ का रहस्य या खगोल शास्त्र का आयुर्वेद का ज्ञान आदि आदि ज्ञान कितना जरुरी हैं हम पुरे विश्व पहले सभ्य ही नहीं सबसे पहले ज्ञानी भी हैं। कोई भी ज्ञान विज्ञान बिना पूजा पाठ और बिना पोथी पतरा के प्राप्त नहीं किया जा सकता और यदि येनकेन प्रकारेण ज्ञान प्राप्त हो भी गया तो उसका सदुपयोग नहीं दुरूपयोग ही होगा। प्लास्टिक का खोज होगा, परमाणु बम बनेंगे और पकिस्तान जैसे राक्षसों के हाथ में होंगे बिना पूजा पाठ बिना पोथी पतरा के ज्ञान विनास का कार्य करता हैं और आज पृथ्वी उसी विनास के मुहाने पर खड़ी हैं।
बाण स्तम्भ जैसे जैसे कई प्रमाण हैं की हम भारतीय लाखो करोडो साल से समृद्धशाली ज्ञान के जनक हैं सुई से लेकर विमान सबकुछ की खोज हम भारतीयों ने ही की आखिर हम लोगो के लिए यह 2019 नहीं कलयुग का प्रथम चरण यानी की कलियुगाब्द 5118वा वर्ष चल रहा हैं। कलयुग में 4 लाख 32000 वर्ष होते हैं इससे पहले द्वापर युग उससे पहले त्रेतायुग उससे भी पहले सतयुग बित चूका हैं। हमारा इतिहास कुछ हजार साल का नहीं लाखो करोड़ो साल का हैं। और धर्म पर लाखो हमले हुवे लेकिन इतिहास कभी मिट नहीं सकता जो सत हैं उसे कोई भुला नहीं सकता।
भारत की खोज मनु महाराज ने वास्कोडिगामा के सभी पितरो से करोडो पहले ही की थी यदि वास्कोडिगामा की भी बात करू तो उसको खुद गुजरात के कान्हा ने अरब से भारत अपने बड़े बड़े नावों से समुद्री लहरों से बचाते हुवे भारत लाया था। लेकिन पाठ्य पुस्तक की बात से ऐसा बताया जाता हैं की हम भारतीयों के पास कोई दिशा ही नहीं थी, हम भटक रहे थे वो तो धन्यवाद लुटेरा जी का की उन्होंने हमारी खोज कर ली और सारी दुनिया हमें बचाने दौड़ी चली आई और इतना बचाई की 1947 के बाद आज तक उन्ही की कानून कोर्ट में चल रहे हैं और हम विष्वगुरू की जगह जॉब सीकर बन चुके हैं।
अगले अंक में ऐसे ही ज्ञान की बातो के साथ फिर उपस्थित होऊंगा तब तक लिए सादर चरण स्पर्श _/\_
बाणस्तम्भ को देखने से ऐसा लगता हैं की यह एक दिशासूचक की तरह हैं इसके ऊपर एक बाण हैं जो सीधे दक्षिण की तरफ सुनसान समुद्र की तरफ इशारा करता हैं। कोई दिशासूचक एक खास दिशा या किसी विशेष जगह की तरफ का दिशा बताती हैं लेकिन सुनसान वीरान समुद्र की तरफ यह बाणस्तम्भ किस दिशा की तरफ या किस जगह की तरफ इशारा कर रहा हैं ?आखिर यह बाणस्तम्भ क्या बताना चाहता हैं ?
इस बाणस्तम्भ के थोड़ा नज़दीक जाने पर एक संस्कृत में श्लोक लिखा दिखा
"आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत
अबाधित ज्योतिरमार्ग "
इन पंक्तियों का अर्थ यह हैं की "समुद्र में यहाँ से दक्षिण ध्रुव तक बिना किसी बाधा वाला ज्योतिरमार्ग हैं।" इसका सरल अर्थ यह है की बाणस्तम्भ से लेकर दक्षिण ध्रुव के बिच सीधी रेखा में कोई भी जमीं का टुकड़ा या अवरोध नहीं हैं " यदि मान भी ले छठी शताब्दी में इस स्तम्भ को बनाया गया और यह संस्कृत श्लोक लिखा गया तो आज से लगभग 1400 साल पहले क्या दक्षिण ध्रुव की जानकारी हम भारतीयों के पास थी ? यदि दक्षिण ध्रुव की जानकारी भारतीयों के पास थी तब तो उत्तरी ध्रुव की भी अवश्य जानकारी होगी फिर तो पूरा इतिहास दुबारा लिखने की जरुरत हैं।
baan stambh to antarktik google map |
बाणस्तम्भ पर संस्कृत लिखे इस श्लोक का बहुत ही गूढ़ अर्थ और रहस्य हैं आखिर यह इशारा किस प्रयोजन के लिए था और आखिर ज्योतिरमार्ग के पीछे क्या रहस्य था? इस मार्ग का उपयोग कौन करता था ? मार्ग किस समय चालू हालत में था ? यात्रा का माध्यम क्या था ?क्या कोई समुद्री नाँव थी या कोई एडवांस नाव था? हजार प्रश्न उठने लगे हमारे लिए इनका अर्थ जानना असंभव हो गया।
संस्कृत में एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं कौन सा अर्थ कहा लगेगा यह बात कोई संस्कृत विद्वान् ही बता पाएगा। सरल अर्थ यह है की "इस मंदिर से बाण की दिशा में सीधे दक्षिण ध्रुव या अंटार्कटिक तक बिच में कोई भी रुकावट या अवरोध नहीं हैं। " इस बात की सत्यतता जाँच करना आजके कथित मॉडर्न युग में कोई असंभव कार्य नहीं हैं। गूगल मैप पर देखने से थोड़ा खोजने से इस संस्कृत के श्लोक की सत्यता पर विश्वास हो जाता हैं। फिर भी मूल प्रश्न वही रह जाता हैं आखिर हजारो साल पहले इतना गूढ़ ज्ञान भारतीयों था और यदि था भी तो उसका विकास आज तक क्यों नहीं हुआ। उसका सदुपयोग क्यों नहीं हुआ ? उन समृद्ध ज्ञान का क्या स्रोत था ?
इसका सीधा सा मतलब हैं की बाण स्तम्भ का निर्माण जब हुआ था उस समय भारतीयों को पृथ्वी के भौगोलिक स्थिति का पूरा गया था पृथ्वी गोल है इसका भी ज्ञान था साथ ही अपने कक्ष पर तथा सूर्य के चारो तरफ चक्कर लगाती हैं इसका भी ज्ञान था ?
भारत में तो संस्कृत को पोथी पतरा की भाषा बोल के प्राचीन बोल के मजाक उड़ा दिया जाता हैं लेकिन वैज्ञानिको ने संस्कृत को एकमात्र वैज्ञानिक भाषा बताया हैं हम भारतीय तो अंग्रेजी पढ़ने में बिजी हैं। पूजा पाठ थोड़े करानी हैं।
भारत को समझना होगा की बाणस्तम्भ का रहस्य या अशोक स्तम्भ का रहस्य या खगोल शास्त्र का आयुर्वेद का ज्ञान आदि आदि ज्ञान कितना जरुरी हैं हम पुरे विश्व पहले सभ्य ही नहीं सबसे पहले ज्ञानी भी हैं। कोई भी ज्ञान विज्ञान बिना पूजा पाठ और बिना पोथी पतरा के प्राप्त नहीं किया जा सकता और यदि येनकेन प्रकारेण ज्ञान प्राप्त हो भी गया तो उसका सदुपयोग नहीं दुरूपयोग ही होगा। प्लास्टिक का खोज होगा, परमाणु बम बनेंगे और पकिस्तान जैसे राक्षसों के हाथ में होंगे बिना पूजा पाठ बिना पोथी पतरा के ज्ञान विनास का कार्य करता हैं और आज पृथ्वी उसी विनास के मुहाने पर खड़ी हैं।
बाण स्तम्भ जैसे जैसे कई प्रमाण हैं की हम भारतीय लाखो करोडो साल से समृद्धशाली ज्ञान के जनक हैं सुई से लेकर विमान सबकुछ की खोज हम भारतीयों ने ही की आखिर हम लोगो के लिए यह 2019 नहीं कलयुग का प्रथम चरण यानी की कलियुगाब्द 5118वा वर्ष चल रहा हैं। कलयुग में 4 लाख 32000 वर्ष होते हैं इससे पहले द्वापर युग उससे पहले त्रेतायुग उससे भी पहले सतयुग बित चूका हैं। हमारा इतिहास कुछ हजार साल का नहीं लाखो करोड़ो साल का हैं। और धर्म पर लाखो हमले हुवे लेकिन इतिहास कभी मिट नहीं सकता जो सत हैं उसे कोई भुला नहीं सकता।
भारत की खोज मनु महाराज ने वास्कोडिगामा के सभी पितरो से करोडो पहले ही की थी यदि वास्कोडिगामा की भी बात करू तो उसको खुद गुजरात के कान्हा ने अरब से भारत अपने बड़े बड़े नावों से समुद्री लहरों से बचाते हुवे भारत लाया था। लेकिन पाठ्य पुस्तक की बात से ऐसा बताया जाता हैं की हम भारतीयों के पास कोई दिशा ही नहीं थी, हम भटक रहे थे वो तो धन्यवाद लुटेरा जी का की उन्होंने हमारी खोज कर ली और सारी दुनिया हमें बचाने दौड़ी चली आई और इतना बचाई की 1947 के बाद आज तक उन्ही की कानून कोर्ट में चल रहे हैं और हम विष्वगुरू की जगह जॉब सीकर बन चुके हैं।
अगले अंक में ऐसे ही ज्ञान की बातो के साथ फिर उपस्थित होऊंगा तब तक लिए सादर चरण स्पर्श _/\_
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